‘लोक लेखापरीक्षा के माध्यम से सुशासन और जवाबदेही को प्रोत्साहन’ विषय पर 27वें महालेखापरीक्षा सम्मेलन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 27-10-2014

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1.सबसे पहले मैं, इस सम्मेलन से मुझे जोड़ने के लिए नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा तथा उनके कार्यालय को हार्दिक धन्यवाद देना चाहूंगा। मुझे 27वें महालेखापरीक्षा सम्मेलन में उपस्थित होकर खुशी हो रही है। मैं आरंभ में ही भारत की लेखापरीक्षा संस्थान को बधाई देता हूं जिसका 150 से ज्यादा लंबा इतिहास है।

2. 1858 में सर्वोच्च लेखापरीक्षा प्राधिकारी को महालेखापरीक्षक कहा जाता था। संविधान को अंगीकार किए जाने पर,भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा लिखे जाने से पहले इस प्राधिकारी का पदनाम चार बार बदला गया था।

3. हमारे संविधान के अनुच्छेद 148के तहत महालेखापरीक्षक एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकारी है जो न तो विधायिका का हिस्सा है और न ही कार्यपालिका का। अनुच्छेद 151 में कहा गया है कि नियंत्रक एवं महालेखापरीक की रिपोर्टें संघ के मामले में राष्ट्रपति को तथा राज्य के मामले में राज्यपाल को प्रस्तुत की जाती हैं तथा वे इन रिपोर्टों को संसद अथवा राज्य विधानसभा में प्रस्तुत कराएंगे।

4. यह स्पष्ट है कि हमारे राष्ट्रनिर्माताओं ने हमारे देश के शासन एवं जवाबदेही के ढांचे में लोक लेखापरीक्षा की प्रमुख भूमिका की परिकल्पना की थी। यह संकल्पना नई नहीं है। हमारे पुराने निबंधों, प्राचीन प्रशासन संबंधी पांडुलिपियों,विशेषकर अर्थशास्त्र में, कौटिल्य ने लेखा तथा लेखापरीक्षा के लिए व्यापक व्यवस्थाओं का निर्धारण किया था। वित्तीय प्रबंधन के संगठनात्मक ढांचे में दो अलग-अलग पदानुक्रम होते थे। एक कोषाध्यक्ष तथा एक नियंत्रक-लेखपरीक्षा और दोनों ही सीधे ही राजा के प्रति उत्तरदायी होते थे। वह ऐसे अधिकारियों से लोक लेखापरीक्षा करवाने को बहुत प्राथमिकता देते थे जिन्हें भ्रष्ट न किया जा सके। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि इस सम्मेलन के दौरान प्रतिभागियों को इस परिकल्पना की प्राप्ति पर विचार-विमर्श करने का अवसर मिलेगा। मैं इस अवसर पर यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि, बिना किसी अपवाद के, अभी तक के सभी नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षकों ने अनुकरणीय साहस, सत्यनिष्ठा तथा शानदार कार्य का प्रदर्शन किया है।

देवियो और सज्जनो,

5. सुशासन संविधान के ढांचे के तहत बड़ी जनसंख्या के कल्याण के लिए राज्य की संस्थाओं के माध्यम से हमारे आर्थिक एवं सामाजिक संसाधनों के दक्षतापूर्ण एवं कारगर प्रबंधन हेतु शक्ति का उपयोग ही सुशासन है। लेखापरीक्षा संस्थाएं लोकतांत्रिक कामकाज में सुशासन का शुभारंभ करने में सहयोगी भूमिका निभाती है।

6.लोक कार्मिकों की जवाबदेही किसी भी सुशासन ढांचे, खासकर लोकतांत्रिक राजव्यवस्था का अभिन्न अंग होती है। लोकसेवकों की जवाबदेही के तहत सरकारी कार्य के दौरान ईमानदारी, कानूनी दायित्वों का अनुपालन तथा जनसेवाओं की दक्षतापूर्ण सुपुर्दगी के लिए प्रतिबद्धता शामिल है। पिछले वर्षों के दौरान शासन के लिए जिम्मेदार लोगों की जवाबदेही की मांग विश्वभर में तेज हुई है। हमारे संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका को विधायिका के प्रति जवाबदेह बनाया गया है। विधायिका को नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक द्वारा सौंपी गई रिपोर्टें, जवाबदेही को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाती है।

7.भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के तहत कार्यरत भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग द्वारा की गई लेखापरीक्षाएं सरकार के तीन स्तरों तथा राज्य के अन्य उपकरणों को अपनी सेवाएं देती हैं। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा अकेली ऐसी लेखापरीक्षा संस्था है जिसपर लेखांकन का दायित्व भी है। संविधान ने इस संस्था को ऐसे स्थान पर रखा है जहां उसे हमारे देश के वित्तीय प्रशासन में लगी हुई विभिन्न एजेंसियों के कार्यनिष्पादन के बारे में जानकारी मिल सके।

8.व्यापक लेखापरीक्षा दायित्व नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा को राष्ट्रीय तथा उप-राष्ट्रीय स्तरों पर कार्यक्रम तथा परियोजना कार्यान्वयन तक पहुंच प्रदान करते हैं। आप विभिन्न कार्यान्वयन प्राधिकारियों के बीच सरकारी धन के आबंटन एवं प्रवाह पर नजर रखते हैं। इसके बाद आप उनके त्वरित तथा कारगर उपयोग का मूल्यांकन करके रिपोर्ट देते हैं, अच्छी परिपाटियों का प्रचार करते हैं तथा व्यावधानों की पहचान करके रास्ते को दुरस्त करने का अवसर देते हैं। विभिन्न शासन संबंधी संस्थाओं की लेखापरीक्षा के द्वारा आपको जो परिदृश्य उपलब्ध होता है वह देश में सुशासन को बढ़ावा देने के लिए मूल्यवान सूचना प्रदान करता है।

देवियो और सज्जनो,

9.लेखापरीक्षा साध्य की दिशा में एक साधन है न कि स्वयं में एक साध्य। लेखापरीक्षा के निष्कर्ष सुशासन के मापदंड होते हैं, परंतु इनकी उपयोगिता तभी सिद्ध होती है जब सभी भागीदार विशेषकर कार्यपालिका, विधायिका तथा नागरिक इन निष्कर्षों की विश्वसनीयता पर भरोसा करें तथा शासन की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए इनका प्रयोग करें। इससे लोक लेखापरीक्षकों पर खूब परिश्रम और स्वतंत्रतापूर्वक, पेशेवराना ढंग से लेखा परीक्षा करने तथा ईमानदारी और संतुलित तरीके से रिपोर्ट देने का भारी दायित्व आ जाता है। लेखापरीक्षक तथा लेखापरीक्षित संस्था, दोनों को यह समझना होगा कि लेखापरीक्षा का अंतिम उद्देश्य शासन कार्यनीतियों के कार्यान्वयन में सुधार लाना है। इस प्रयोजन के लिए लेखापरीक्षा को सुधार का एक साधन माना जाना चाहिए।

10.कार्यपालिका की जवाबदेही उस विधायिका को हिसाब देने से उत्पन्न होती है जिसने उसे कर लगाने और विस्तार करने के लिए अधिकृत किया है। यहां मैं यह उल्लेख करना चाहूंगा कि संसद में वित्तीय प्रस्तावों तथा वित्तीय मामलों पर बारीकी से अध्ययन करने के लिए और अधिक समय लगाए जाने की जरूरत है। लेखापरीक्षा की रिपोर्ट किसी लोक कार्यकर्ता से हिसाब लेने के लिए अधिकृत प्राधिकारी को उसके बारे में कार्य का स्तर के बारे में निर्णय लेने तथा सुधारों की सिफारिश करने के लिए बहुमूल्य सूचना देता है। भारत में यह जिम्मेदारी लोक लेखा समिति तथा लोकउद्यम संबंधी समिति में निहित है जो विधायिका की ओर से कार्य करते हैं। इन विधायन समितियों के कारगर संचालन, तथा उनके और लेखा प्राधिकारियों के बीच निकट का सहयोग लेखापरीक्षा की कारगरता तथा उसके माध्यम से शासन परिपाटियों का खाका तैयार होता है।

11.लोक लेखापरीक्षा की सीमा तथा उसके उद्देश्य के बारे में कोई स्थाई स्थिति नहीं है। उनको समाज की चिंताओं से आकार मिलता है जो कानूनों के अधिनियमन तथा न्यायिक निर्णयों से प्रकट होते हैं।

12.पिछले दिनों हमारे देश में लोक लेखापरीक्षा की सीमाओं के बारे में जन-चर्चाएं तथा न्यायिक विवाद होते रहे हैं। न्यायिक निर्णयों ने किसी भी संस्था द्वारा, चाहे वह सरकारी हो या निजी क्षेत्र की, जन संसाधनों के उपयोग में संसदीय जवाबदेही सुनिश्चित करने में हमारी लेखा संस्था की प्रमुख भूमिका को रेखांकित किया है। सरकारी संस्थाओं का निष्पादन लेखापरीक्षा तथा जनता के संसाधन के उपयोग से पैदा होने वाले राजस्व में से राज्य को अपना उचित हिस्सा प्राप्त होने के बारे में सुनिश्चितता के लिए निजी संस्थाओं के लेन-देन को सत्यापित करने का नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का अधिकार अब सुस्थापित हो गया है। आपके लेखापरीक्षा दायित्वों में आमूल-चूल बदलाव से आपको अपने लेखापरीक्षा प्रक्रिया को संचालित करने वाली उचित वित्तीय और प्रक्रियाओं के विकास को बढ़ावा मिला है। इसके लिए आपके विभाग में समुचित क्षमता विकास की जरूरत है। मुझे उम्मीद है कि उपशीर्षों ‘लेखापरीक्षा के नए क्षेत्र’ तथा ‘भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग में क्षमता निर्माण’ पर सम्मेलन की सिफारिशों में इन मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा।

देवियो औ सज्जनो,

13.जन सेवाओं की सुपुर्दगी के लिए प्रयुक्त मंच लेखापरीक्षा के कार्य को प्रभावित करते हैं। आज ‘डिजीटल भारत’ के सरकारी कामकाज का आधार बनने के कारण लेखापरीक्षा की पारंपरिक पद्धतियों में बदलाव आवश्यक है। आपको लेखापरीक्षा के कौशल, लागत और दायरे को बढ़ाने के लिए ई-शासन द्वारा प्रदान किए जा सकने वाले फायदे का लाभ अपनी मानक प्रचालन प्रक्रियाओं में पुन:सुधार करके भली-भांति उठाना होगा। उन्होंने कहा कि हमें याद रखना चाहिए कि राष्ट्रीय लोकवित्त के प्रहरियों के तौर पर, नियंत्रक और महालेखापरीक्षक संस्था की राष्ट्रीय विकास तेज करने में एक सकारात्मक और प्रमुख भूमिका है।

14.राज्यों में, जहां नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की भूमिका लेखांकन की है। वहां बिना समुचित विचार से समझौता किए सेवाओं में सुधार की गुंजाइश है। आपको राज्यों के साथ सरकारी लेखों और वित्तीय प्रबंधन के आधुनिकीकरण के लिए उनके कार्यक्रमों से सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिए। आप द्वारा जो साझीदारियां विकसित की गई हैं उन्हें लेखांकन को जवाबदेही का कारगर उपकरण बनाने के लिए जारी रखना होगा।

15.लोक कार्यकर्ताओं द्वारा सामान तथा सेवाओं की समयबद्ध सुपुर्दगी नागरिक का अधिकार है। यहां कोई राज्य से उपहार नहीं है। बहुत से राज्यों ने तुरंत सुपुर्दगी के लिए कानून बनाए हैं। नियंत्रण और महालेखापरीक्षा की संस्था इस लोकप्राधिकारियों द्वारा निष्पादन मानकों की प्राप्ति पर अपनी कार्यान्वयन लेखापरीक्षा के द्वारा कानूनी अधिकार के सफल कार्यान्वयन को सुगम बना सकती हैं।

देवियो और सज्जनो,

16.हेनले के सर वाल्टर के 13वीं सदी के हाउसबैंड्री संबंधी निबंध में कहा गया है, ‘लेखापरीक्षकों को वफादार तथा विवेकशील होना चाहिए, अपने काम को जानना चाहिए... इस प्रकार लेखापरीक्षाओं के लिए यह कहना जरूरी नहीं है कि उन्हें इतना विवेकशील,इतना वफादार तथा अपने काम का इतना ज्ञान होना चाहिए कि उन्हें लेखांकन से जुड़ी बातों के बारे में किसी और को बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।’

17.एक ऐसी लेखापरीक्षा प्रणाली के महत्व को, जिसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप ना हो, सार्वभौमिक रूप से माना गया है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा की संस्था भी इसका अपवाद नहीं है। आपकी संस्था की क्षमता तथा स्वतंत्रता पर इस तरह के भरोसे से आप पर आपके ज्ञान को अद्यतन रखने तथा उच्चतम पेशेवर मानकों को बनाए रखने की जिम्मेदारी आ जाती है। ज्ञान तेजी से बहुगुणित हो रहा है।

मुझे विश्वास है कि आप समसामयिक प्रासंगिकता के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले अद्यतन घटनाक्रमों से खुद को संसूचित रखने में सफल होंगे।

18.याद रखें कि राष्ट्रीय लोक वित्त के प्रहरी के रूप में भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षा की राष्ट्रीय विकास में तेजी लाने में सार्थक तथा प्रमुख भूमिका है। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। मैं आपके सभी प्रयासों में सफलता की कामना करता हूं।

धन्यवाद! 
जयहिन्द