भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संविधान उद्यान के लोकार्पण समारोह में संबोधन (HINDI)

जयपुर : 03.01.2023

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1. इस उद्यान के लोकार्पण समारोह में भाग लेकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। इतने सुंदर और सूचना-प्रद ‘संविधान उद्यान’ की परिकल्पना करने तथा इसे वर्तमान स्वरूप प्रदान करने के लिए मैं राज्यपाल श्री कलराज मिश्र जी तथा इस कार्य से जुड़ी टीम के सभी सदस्यों की सराहना करती हूं। संविधान उद्यान के साथ-साथ इस राजभवन परिसर में मयूर स्तम्भ, राष्ट्रीय ध्वज स्तम्भ, महात्मा गांधी और महाराणा प्रताप की प्रतिमा का लोकार्पण करके मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। मुझे विश्वास है कि इन प्रतीकों में समाहित उच्च आदर्शों की प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों को मिलेगी।

2. आज राजस्थान के सौर ऊर्जा उत्पादन को नेशनल ग्रिड से जोड़ने वाले प्रोजेक्ट का उद्घाटन हुआ। इसके साथ ही 1000 मेगावाट वाली बीकानेर सोलर विद्युत परियोजना का भी शिलान्यास हुआ। पर्यावरण संरक्षण और ग्रीन एनर्जी पर स्वावलंबन की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम है।

देवियो और सज्जनो,

3. राष्ट्रपति के रूप में, राजस्थान की यह मेरी पहली यात्रा है। पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा, महाराणा प्रताप और दुर्गादास राठौर जैसे वीर योद्धाओं से लेकर स्वाधीनता के बाद ‘परमवीर चक्र’ विजेता मेजर शैतान सिंह और कारगिल युद्ध के शहीदों तक, राजस्थान के लोगों ने वीरता और बलिदान की अमिट गाथाएं लिखी हैं। पन्ना धाई और भामाशाह के आदर्शों की मिसाल आज भी दी जाती है और सदैव दी जाती रहेगी। ऐसी विभूतियों की इस धरती को मैं सादर नमन करती हूँ।

4. हमारे संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है। समानता तथा महिला सशक्तीकरण के संदर्भ में राजस्थान के एक महत्वपूर्ण योगदान को मैं रेखांकित करना चाहूंगी। वर्ष उन्नीस सौ उन्तीस में राजस्थान के श्री हर बिलास शारदा ने बाल-विवाह को समाप्त करने के लिए एक अधिनियम की रचना की थी, जो ‘शारदा ऐक्ट’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार, राजस्थान का इतिहास महिलाओं की गरिमा और सशक्तीकरण का इतिहास भी है। इतिहास के ऐसे गौरवशाली आयामों पर, राजस्थान के सभी निवासी गर्व का अनुभव करते होंगे, यह मेरा दृढ़ विश्वास है।

देवियो और सज्जनो,

5. हमारा लोकतन्त्र विश्व का सबसे बड़ा और जीवंत लोकतन्त्र है। हमारे इस महान लोकतन्त्र का आधार है - हमारा संविधान। इस समारोह में भाग लेकर, संविधान निर्माताओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने का अवसर भी मुझे मिल रहा है। एक कृतज्ञ राष्ट्र के निवासियों की ओर से भारत के अतुलनीय संविधान के असाधारण निर्माताओं की स्मृति को मैं नमन करती हूं।

6. इस उद्यान में, हमारे संविधान के निर्माण की लगभग तीन वर्षों की ऐतिहासिक यात्रा का कलात्मक विवरण दर्शाया गया है। सुरुचिपूर्ण चित्रों, प्रतिमाओं तथा अन्य माध्यमों के जरिए हमारे आधुनिक इतिहास के एक प्रमुख अध्याय की यहां प्रस्तुति की गई है। इसके लिए, मैं सभी कलाकारों की सराहना भी करती हूं और उन्हें बधाई भी देती हूं।

देवियो और सज्जनो,

7. हमारे संविधान निर्माताओं ने मसौदे को सरल रखा। उनका ध्यान केंद्रित था संविधान की मूल भावनाओं और उद्देश्यों को हासिल करने में। हमारे संविधान की मूल भावनाएं हैं – सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता।

8. डॉक्टर आंबेडकर ने कहा था, और मैं उनके शब्दों को दोहराती हूँ :- "मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। एक संविधान चाहे जितना बुरा हो, वह अच्छा साबित हो सकता है, यदि उसका पालन करने वाले लोग अच्छे हों।” बाबासाहब संवैधानिक नैतिकता यानि Constitutional Morality पर बहुत ज़ोर देते थे। उन्होंने कहा था कि प्राचीन काल में भारत में अनेक गणतन्त्र थे। जहां राज सत्ताएं थीं, वे भी या तो निर्वाचित थीं या उनमें राजाओं की शक्तियाँ सीमित थीं। प्राचीन बौद्ध संघों में संसदीय प्रक्रिया के उन सभी नियमों का पालन किया जाता था जो आधुनिक युग में सर्वविदित हैं। सदस्यों के बैठने की व्यवस्था, प्रस्ताव रखने, कोरम, मतों की गणना, मत-पत्रों द्वारा वोटिंग और निंदा प्रस्ताव आदि संबंधी नियम चलन में थे। प्राचीन भारत में ‘सभा’ और ‘समिति’ जैसे लोकतांत्रिक संस्थान अस्तित्व में थे। हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत-भूमि की प्राचीन लोकतान्त्रिक परंपराओं को, हमारे आधुनिक लिखित संविधान के रूप में, पुनर्जन्म दिया था।

देवियो और सज्जनो,

9. समाज के प्रत्येक वर्ग के प्रति संवेदनशीलता, लोकतंत्र के प्रत्येक स्तर, तथा प्रशासन के प्रत्येक पक्ष के प्रति सजगता के कारण, हमारे संविधान निर्माताओं ने एक विस्तृत संविधान की रचना की। अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन, संघ और राज्यों के बीच संबंध से जुड़े व्यापक प्रावधान, संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं, विशेष सहायता प्रदान करने योग्य वर्गों के संबंध में विशेष प्रावधानों सहित, अनेक क्षेत्रों में, विस्तृत व्यवस्था का आधार, संविधान निर्माताओं ने हमें सौंपा है।

10. हमारे दूरदर्शी संविधान निर्माताओं का स्पष्ट विचार था कि भावी पीढ़ियों को अपनी आवश्यकता के अनुसार व्यवस्था का निर्माण करने का पूरा अधिकार होना चाहिए। इसीलिए, उनके द्वारा, हमारे संविधान में ही, संवैधानिक संशोधन के प्रावधान भी शामिल किए गए। संविधान-सम्मत संशोधन की प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अब तक कुल 105 संशोधन किए जा चुके हैं। इस प्रकार, हमारा संविधान एक जीवंत दस्तावेज है जो समय के साथ बदलती हुई जन-मानस की आशाओं और आकांक्षाओं को समाहित करने में पूरी तरह सक्षम है।

देवियो और सज्जनो,

11. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने पत्र ‘यंग इंडिया’ में लिखा था कि मैं ऐसे भारत के लिए काम करूंगा जिसमें गरीब से गरीब आदमी को भी लगे कि अपने देश को बनाने में मेरी बात भी मानी जाती है। भारतीय संविधान पर आधारित हमारा लोकतंत्र बापू के उस विचार के अनुरूप आगे बढ़ रहा है।

12. मैं आज संविधान सभा की उन पंद्रह (15) महिला सदस्यों का विशेष उल्लेख करना चाहती हूं जिन्होंने लगभग एक सौ (100) वर्ष पहले के समाज में अपनी पहचान बनाई तथा भारतीय इतिहास को स्वर्णिम योगदान दिया। सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, अम्मू स्वामीनाथन, हंसाबेन मेहता, मालती चौधरी और बेगम ऐजाज रसूल जैसी महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़कर बड़े-बड़े कार्य किए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि स्वाधीन भारत में पहली बार, वर्तमान संसद में, महिला सांसदों की संख्या एक सौ (100) से अधिक हो गई है। लोकसभा में बयासी (82) तथा राज्यसभा में तैंतीस (33) महिला सांसदों का प्रतिनिधित्व होना एक record है। हमारी बहनें, अपने संघर्ष तथा योग्यता के बल पर पंचायत भवन से लेकर संसद भवन तक अपनी उपस्थिति और योगदान को निरंतर बढ़ा रही हैं तथा समाज और देश की सेवा कर रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

13. मैं समझती हूँ कि इस ‘संविधान उद्यान’ के निर्माण का मुख्य उद्देश्य, संविधान के आदर्शों के प्रति जागरूकता बनाए रखना है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उद्देश्य है, जो हमारे देश के लोकतन्त्र को मजबूत बनाए रखने की दिशा में एक कलापूर्ण प्रयास है। इस प्रयास के लिए मैं एक बार फिर राजस्थान सरकार और राज्य के सभी निवासियों को बधाई देती हूँ। हमारे देशवासी, संवैधानिक आदर्शों पर चलते हुए, प्रगति के नए कीर्तिमान स्थापित करेंगे, इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी की विराम देती हूं।

धन्यवाद!   
जय हिन्द!   
जय भारत!

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