भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का धर्म-धम्म सम्मेलन 2023 में सम्बोधन (HINDI)

भोपाल : 03.03.2023

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इस धर्म-धम्म सम्मेलन का आयोजन करने के लिए मध्य-प्रदेश की राज्य सरकार, Sanchi University of Buddhist-Indic Studies, तथा India Foundation की मैं सराहना करती हूं।इस सभागार को आदरणीय कुशाभाऊ ठाकरे जी का नाम दिया गया है। मुझे उनके सानिध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। जन-सेवा के कार्य मेंध र्म-धम्म के आदर्शों के अनुरूप,निस्वार्थ और सम्पूर्ण समर्पण का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले ठाकरे जी का स्मरण करना सभी को नैतिकता, धर्म और सेवा-भाव से जोड़ता है।

I feel very happy to note that delegates from several countries are participating in this Convention. Their participation in this Convention underlines the universal appeal of the ideals of Dharma-Dhamma. I am sure that they are happy to be in Madhya Pradesh where Sanchi and Bharhut are located. The Stupa complexes at Sanchi and Bharhut have been great symbols of the eternal Indian message of Dharma-Dhamma since ancient times. The great banyan tree of Indian spirituality has its roots in India and its branches and vines are spread all over the world. The delegates of this Convention are messengers of eastern humanism which forms the core of all the major schools of Indian philosophy.

For scholars, there are different schools of philosophy. But mystics of the world speak the same language. When realised souls decided to become compassionate teachers or gurus, their traditions came into existence. Many such traditions originated in India and have been flourishing across the world. These traditions are based on philosophies that did not spring from merely intellectual exercises. These philosophies are based on actual experiences of the realised souls who were seekers of the Ultimate Truth and had realised it for themselves. That is why, these philosophies are called ‘darshana’ or "direct vision” and the founder of every school is called a seer, that is, ‘drashtaa’ or ‘daarshanik’.

देवियो और सज्जनो,

अपनी आध्यात्मिक दृष्टि को महर्षि पतंजलि ने इन शब्दों में व्यक्त किया था, ‘दु:खमे वसर्वम् विवेकिन:”। और भगवान बुद्ध ने कहा था "सर्वम्दु :खम्”। कालान्तर में गुरुनानक ने कहा, "नानक दुखिया सब संसार।” लेकिन इन सभी ईश्वरीय विभूतियों ने, दुख से निकलने का मार्ग भी सुझाया। मानवता के दुख के कारण का बोध कराना,और उस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना, पूर्वके मानववाद की विशेषता है, जो आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की पद्धति स्थापित की।भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को प्रकाशित किया। गुरु नानक देवजी ने ‘नाम सिमरन’ का रास्ता सुझाया, जिसके लिए कहा जाता है "नानक नाम जहाज है, जो चढ़े सो उतरे पार”।

धर्म-धम्म की अवधारणा, भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है।हमारी परंपरा में कहा गया है, "धार्यते अनेन इति धर्म:” अर्थात जो सबको धारण करता है, यानी आधार देता है, वह धर्म है।धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है।राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करुणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण तथा समाज- व्यवस्था, पूर्व के मानववाद का व्यावहारिक रूप है। नैतिकता पर आधारित ऐसी व्यवस्था को बचाए रखना और मजबूत बनाना हर व्यक्ति का कर्तव्य माना गया है।हमारी परंपरा में यह कहा जाता है कि जिस समाज में धर्म की रक्षा की जाती है,वह समाज भी धर्म का संरक्षण प्राप्त करता है - धर्मो रक्षति रक्षित:।

Ladies and gentlemen,

The path of dhamma or virtue is a humane path. Loving kindness or ‘Metta’, compassion or ‘Karuna’, selfless joy or‘Mudita’ and equanimity or ‘Upekkha’ are important elements of eastern humanism as propounded by the Buddha. Eastern humanism looks at the universe as a moral stage and not as a material battle-ground. In the building and sustaining of this moral order, every individual has to be action-oriented and not rely on fate. The great Indian epic ‘Mahabharata’ contains this statement by Bhishma Pitamaha, "I consider personal effort to be above all. Belief in fate makes man dull. पौरुषम् हिपरम्म न्ये, दैवम् निश्चित्य मुह्यते”।

Eastern humanism believes that blind impulses lead to individual fights and even wars between countries. When India proclaims on the global stage that the entire world is but one family, "Vasudhaiva Kutumbakam”, it proclaims its commitment to eastern humanism. We feel happy that the international community was very enthusiastic in adopting June 21 as "The International Day of Yoga” in 2015. This highlights the universal appeal of eastern humanism. When India emphasises that peace, not war, is the way forward, India expresses its commitment to eastern humanism. In recent times, India has been trying to correct many prevailing global perceptions about the idea of progress, development and a fair world order.

देवियो और सज्जनो,

मुझे यह देखकर गर्व होता है कि हमारे देश की परंपरा में धर्म को, समाज व्यवस्था और राजनीतिक कार्यकलापों में, प्राचीन काल से ही केंद्रीय स्थान प्राप्त है। आज से दो हज़ार वर्ष से भी पहले, हमारे देश में ‘धर्म-महामात्य’ के पद को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। पुरुषार्थ-चतुष्टय की अवधारणा में अर्थ और काम के साथ-साथ धर्म और मोक्ष को स्थान दिया गया था। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई, उस पर धर्म- धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हमारा राष्ट्रीय प्रतीक-चिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में धर्म-चक्र सुशोभित है। लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी के पीछे" धर्म चक्र प्रवर्तनाय” का प्राचीन ध्येय-वाक्य अंकित है,जो सारनाथ में दिए गए भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है और हमारे लोकतंत्र को उस महान शिक्षा से जोड़ता है।

राष्ट्रपति भवन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण प्रतीक है। राष्ट्रपति भवन के सबसे प्रमुख कक्ष में,भगवान बुद्धकी लगभग 1500 साल पहले की एक प्रतिमा शोभायमान है जो अभय मुद्रा में,सभी उपस्थित व्यक्तियों को, आशीर्वाद प्रदान करती है। भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां राष्ट्रपति भवन में विद्यमान हैं। गया में पीपल के जिसवृक्ष के नीचे समाधिस्थ होकर सिद्धार्थ गौतम, भगवान बुद्ध बने थे, उसके दो पौधे मंगवाकर राष्ट्रपति भवन के उद्यानों में लगाए गए। मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी द्वारा लगाए गए वे पौधे भगवान बुद्ध की विरासत के साथ राष्ट्रपति भवन के संबंध को जीवंत बनाए रखेंगे। राष्ट्रपति भवन के ‘स्टेट कॉरिडोर’ में धर्म-धम्म परंपरा का कलात्मक रूप देखा जा सकता है। वहां श्री मद् भगवद्गीता के लगभग 70 श्लोक, कुशल कलाकारों द्वारा लिखे गए हैं। हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, महाकारुणिक भगवान बुद्ध के अहिंसा तथा करुणा के संदेश को अपने जीवन-मूल्यों तथा कार्यों के द्वारा प्रसारित करते थे। बापू की प्रार्थना का आरंभ एक बौद्ध मंत्र से होता था। उनकी प्रार्थना में गीता तथा अन्य उपनिषदों के श्लोक पढ़े जाते थे। हम सभी जानते हैं कि गांधीजी ने एक आदर्श राज्य की अवधारणा को राम राज्य का नाम दियाथा।

धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में, ‘सर्वेभवंतु सुखिन:’, ‘भवतु सब्ब मंगलम्’ और ‘सरबत दा भला’ की प्रार्थनाएं हमारे जीवन का हिस्सा रही हैं। यही, पूर्व के मानववाद का सार-तत्वहै। और यही, आजके युग की सबसे बड़ी जरूरत भी है। यह सम्मेलन, मानवता की एक बड़ी जरूरत को पूरा करने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है।इसलिए मैं एक बार फिर सभी आयोजकों की सराहना करती हूं। मैं यह मंगलकामना करती हूं कि समस्त विश्व-समुदाय, पूर्व के मानववाद से लाभान्वित हो और धरती-माता की सभी सन्तानें शांतिपूर्ण तथा सुखमय जीवन व्यतीत करें।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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