भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का भारतीय विद्या भवन नागपुर के सांस्कृतिक केन्द्र के उद्घाटन के अवसर पर सम्बोधन

नागपुर : 05.07.2023

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आज भारतीय विद्या भवन के सांस्कृतिक केंद्र का उद्घाटन करके मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। मैं इस सांस्कृतिक केंद्र के निर्माण और भारतीय विद्या भवन से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। महाराष्ट्र राज्य और नागपुर शहर भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा के प्रमुख केन्द्र रहे हैं। इस केन्द्र की स्थापना से भारतीय विद्या भवन द्वारा भारतीय संस्कृति के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण योगदान दिया जा रहा है।

भारतीय जीवन मूल्यों को समाज में फिर से स्थापित करने के पावन उद्देश्य से कन्हैया लाल मुन्शी जी ने गांधी जी की प्रेरणा से भारतीय विद्या भवन की स्थापना वर्ष 1938 में की थी। कन्हैया लाल मुन्शी जी महान स्वाधीनता सेनानी और उच्च कोटि के विद्वान और लेखक थे।

संविधान सभा के महत्वपूर्ण सदस्य के रूप में उन्होंने संविधान निर्माण में विशेष भूमिका निभाई। वे भारतीय संस्कृति के निष्ठावान संवाहक थे। वे आजीवन भारतीय परम्पराओं को सुदृढ़ बनाने के लिए समर्पित रहे। भारतीय विद्या भवन के रूप में उन्होंने अपने प्रयासों को संस्थागत रूप दिया।

देवियो और सज्जनो,

3. कन्हैया लाल मुन्शी जी को भारतीय विद्या भवन की स्थापना करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? इसका उत्तर देते हुए, सन 1964 में, भारतीय विद्या भवन मद्रास की आधारशिला रखते समय मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति और महान शिक्षाविद डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहा था,and I quote,"Mr. Munshi felt that there was some spiritual inadequacy, bordering on illiteracy, among the students of our country. They go through their routine; they pass their examinations, and yet do not seem to know what the first principles of Indian culture are! It was his ambition to endow every one of our graduates with knowledge of the spiritual purpose of true education.”

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि लगभग आठ दशकों की अवधि में भारतीय विद्या भवन की एक उत्कृष्ट बौद्धिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में अलग पहचान बनी है। पूरे विश्व में फैले इस संस्था से जुड़े 350 से अधिक संस्थान, आधुनिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। साथ ही वे भारतीय जीवन मूल्यों और परम्पराओं के संरक्षण और प्रचार के लिए अहम भूमिका भी निभा रहे हैं। मुझे यह जानकर विशेष प्रसन्नता हुई है कि युवा पीढ़ी को संस्कृत भाषा की समृद्ध विरासत से जोड़ने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। मुझे यह बताया गया है कि इन प्रयासों के लिए इस संस्था को मेरे पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जी द्वारा वर्ष 2002 के लिए प्रतिष्ठित गांधी शान्ति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था।

देवियों और सज्जनो,

यहां आने से पहले, मैं ‘रामायण दर्शनम् हॉल’ में गई जहां रामायण के विभिन्न प्रसंगों को बड़ी सुन्दरता से चित्रकला के माध्यम से दर्शाया गया है। रामायण, राम की जीवन यात्रा भी है और रामायण में राम बसते भी हैं। राम के जीवन मूल्यों की दृढ़ता और राम के जीवन का गतिमय संघर्ष सम्पूर्ण मानवता के लिए अनुकरणीय और प्रेरणादायी है। पिता की आज्ञा का अनुपालन, भ्रातृ प्रेम, एक राजा के रूप में कर्त्तव्य-पालन, ऐसे कई आयामों में राम का जीवन आदर्श आचरण की मिसाल है। रामायण की कथा मर्यादा पुरुषोतम राम के चरित्र के माध्यम से समाज और परिवार की मर्यादाओं का भी विवरण है।

देवियो और सज्जनो,

इस सांस्कृतिक केंद्र में निर्मित ‘भारत माता सदनम्’ में स्थापित भारत माता की सुन्दर प्रतिमा का दर्शन करके मुझे विशेष प्रसन्नता हुई है। हम चाहे देश में हो या विदेश में, सबसे पहले हम भारतीय हैं।

मातृभूमि की महिमा के सम्बन्ध में मैं रामायण के एक प्रसंग का विवरण करना चाहूंगी। श्रीराम, अपने अनुज लक्ष्मण से कहते है:

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते ।     
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ॥     
अर्थात : " लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इससे मेरा मन प्रभावित नहीं हो     
रहा। जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।”

यानि स्वर्णमयी लंका में भी राम का हृदय अयोध्या में ही जुड़ा हुआ था।

मैं मानती हूं कि मातृभूमि, मातृभाषा और मां सबसे बढ़कर हैं। मैं देखती हूं कि आज की युवा पीढ़ी आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर देश-विदेश में ज्ञान अर्जित कर रही है, बड़ा अच्छा काम कर रही है। अपनी जन्म-स्थली से दूर रहकर हमारे युवा स्थानीय भाषा और संस्कृति से भी जुड़ रहे हैं, जो अच्छा है।

लेकिन मैं सभी लोगों से कहना चाहूंगी कि आप लोगों का कर्त्तव्य बनता है कि आप अपने परिवार, समाज और समुदाय में अपनी मातृभाषा का प्रयोग करें, अपने बच्चों को मातृभाषा का ज्ञान दें। दूसरी भाषा और संस्कृति को सीखना और उसका ज्ञान प्राप्त करना अच्छा है। आप जीवन में कुछ भी बनें, लेकिन अपनी मातृभाषा, अपनी मातृभूमि को आप कभी नहीं भूलिएगा। भारतीयता ही हमारी identity है, यह विश्व में भारतवासियों की पहचान है।

हाल ही में अपनी सूरीनाम की यात्रा के दौरान भी मुझे भारतीयता को करीब से अनुभव करने का अवसर मिला। सूरीनाम में इस वर्ष भारतीय मूल के लोगों के सूरीनाम में प्रवेश का 150 वर्ष का उत्सव मनाया जा रहा है। सूरीनाम के वर्तमान राष्ट्रपति भी भारतीय मूल के हैं।

उन्होंने मुझे बताया कि कैसे भारतीय मूल के लोगों ने सूरीनाम के विकास में अहम भूमिका निभाई है। वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों को अपनी संस्कृति, अपनी जड़ों से जुड़े हुए देख कर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हुआ।

देवियो और सज्जनो,

आज पूरा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। मुझे यह देखकर प्रसन्नता हुई है कि देश की आजादी से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं तथा स्वाधीनता सेनानियों और परम वीर चक्र विजेताओं के योगदान को पेंटिंग्स के रूप में ‘भारत माता सदनम्’ में दर्शाया गया है। यह अत्यंत आवश्यक है कि हम युवा पीढ़ी को भारतीय स्वाधीनता संग्राम के मूल्यों से जोड़ें, उन्हें स्वाधीनता से जुड़े संघर्षों और अमर सेनानियों के बलिदान के बारे में बताएं।

मैं इस सांस्कृतिक केन्द्र की परिकल्पना के लिए पंजाब के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित जी तथा भारतीय विद्या भवन की पूरी टीम को विशेष बधाई देती हूं। श्री बनवारी लाल पुरोहित जी का नागपुर से विशेष सम्बन्ध रहा है और यहां के विकास में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

यह नया सांस्कृतिक केंद्र नागपुर शहर के सांस्कृतिक परिदृश्य में एक और महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में अपना स्थान बनाएगा। मुझे विश्वास है कि यह केंद्र, नागपुर और आसपास के क्षेत्रों के लोगों विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी को भारतीय संस्कृति से परिचित कराने में प्रमुख भूमिका निभाएगा। मैं आप सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए मंगल कामना करती हूं।

जय हिन्द!   
जय भारत!   
जय भारतीय संस्कृति!

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