भारत की माननीय राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु द्वारा सीजीआईएआर जेंडर इम्पैक्ट प्लेटफॉर्म और आईसीएआर द्वारा आयोजित "अनुसंधान से प्रभाव तक: उचित और सक्रिय कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर" विषय पर अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन।

नई दिल्ली : 09.10.2023

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मुझे इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आकर वास्तव में खुशी हो रही है, जिसमें दुनिया भर से प्रतिष्ठित हस्तियां और प्रतिष्ठित वैज्ञानिक शामिल हुए हैं। मैं आप सभी का नई दिल्ली में स्वागत करती हूं। इस सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए मुझे बहुत संतुष्टि हो रही है जो सक्रिय, उचित और न्यायसंगत कृषि-खाद्य प्रणालियों के लिए अनुसंधान और प्रभाव के बीच अंतर को समाप्त करने पर केंद्रित है।

देवियो और सज्जनो,

मैं समझती हूँ की इस सम्मेलन का विषय, "अनुसंधान से प्रभाव तक: उचित और सक्रिय कृषि-खाद्य प्रणालियों की ओर", बड़ा उचित विषय है। आखेट करने वाले प्राइमेट्स से लेकर खाद्य पदार्थों की खेती करने वालों तक मनुष्य का विकास एक आकर्षक सभ्यतागत यात्रा का सार प्रस्तुत करता है। विडंबना है कि जैसे-जैसे हम आधुनिक युग में प्रवेश कर रहे हैं, हम अभी भी "उचित और सक्रिय कृषि-खाद्य प्रणाली" की चुनौती से जूझ रहे हैं। इस विषय का प्रत्येक शब्द न केवल वांछनीय, महान और महत्वाकांक्षी है, बल्कि समय की आवश्यकता को भी दर्शाता है।

यदि किसी समाज में न्याय नहीं है, तो उसके समृद्ध होने पर भी उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। कोई भी विचार प्रणाली, कोई भी संस्था या कोई भी व्यवस्था यदि अन्यायपूर्ण हो तो वह अस्थिर रहेगी। लेकिन जब महिला-पुरुष न्याय की बात आती है, तो सबसे पुराने विज्ञान के रूप में जाना जाने वाले कृषि क्षेत्र में, आधुनिक समय में भी इसकी कमी पाई जाती है।

मैं आपको याद दिला दूं कि कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधान ने उद्योगों और सेवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ऐसी कठिन परिस्थितियों में, कृषि ने आशा जगाए रखी। अन्न के बिना मानव समाज जीवित नहीं रह सकता। हालाँकि, महामारी ने कृषि-खाद्य प्रणालियों और समाज में संरचनात्मक असमानता के बीच एक मजबूत संबंध को भी सामने ला दिया है। महामारी के वर्षों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की अधिक नौकरियाँ गई, जिससे प्रवास शुरू हुआ।

वैश्विक स्तर पर हमने देखा है कि महिलाओं को लंबे समय से कृषि-खाद्य प्रणालियों से बाहर रखा गया है। उदाहरण के लिए, महिलाएं खेतों में अवैतनिक श्रमिक, खेत जोतने वाली और किसान हैं लेकिन जमीन की मालिक नहीं हैं। वे कृषि संरचना के सबसे निचले पिरामिड का बड़ा भाग हैं, लेकिन उन्हें निर्णय लेने वालों की भूमिका में आने के लिए आगे बढ़ने के अवसर से वंचित किया जाता है।

महिलाएं हमारे लिए खाद्य सामग्री बोती हैं, उगाती हैं, काटती हैं, खाद्य की साफ-सफाई करती हैं और उसका विपणन करती हैं। अनाज को खेत से थाली तक पहुंचाने के लिए उनकी आवश्यकता पड़ती है । लेकिन फिर भी, दुनिया भर में, उन्हें भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंडों और ज्ञान, स्वामित्व, संपत्ति, संसाधनों तथा सामाजिक नेटवर्क जैसी बाधाओं से रोका जाता है। उनके योगदान को स्वीकार नहीं किया गया, उनकी भूमिका को हाशिए पर रखा गया है और कृषि-खाद्य प्रणालियों की पूरी श्रृंखला में उनके होने को स्वीकार नहीं किया जाता है। हमें इस दास्तां को बदलना होगा। भारत में, हम विधायी तरीकों और सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने वाले परिवर्तनों को देख रहे हैं। इस क्षेत्र में महिलाओं के सफल उद्यमी बनने की अनेक कहानियाँ हैं। आधुनिक नारी "अबला" नहीं बल्कि "सबला" है अर्थात वे असहाय नहीं बल्कि शक्तिशाली हैं। हमें सिर्फ महिला विकास नहीं, बल्कि महिला नेतृत्व वाले विकास की जरूरत है। इसलिए हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियों को अधिक उचित, समावेशी और न्यायसंगत बनाना न केवल वांछनीय है बल्कि यह पृथ्वी और मानव जाति की भलाई के लिए महत्वपूर्ण भी है।

मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान के सलाहकार समूह (सीजीआईएआर) का जेंडर इंपैक्ट प्लेटफॉर्म महिलाओं को परिवर्तन की वस्तु के रूप में नहीं बल्कि एजेंटों के रूप में ध्यान केंद्रित करके खाद्य प्रणाली अनुसंधान के केंद्र में समानता और समावेशन लाने पर काम कर रहा है। मैं सीजीआईएआर-आईसीएआर को अपनी बधाई और शुभकामनाएं देता हूं जो कृषि-खाद्य प्रणालियों में लिंग और सामाजिक समावेशन के महत्वपूर्ण मुद्दों को एक साथ निदान कर रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

कोविड-19, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन के संकट ने कृषि-खाद्य प्रणालियों के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं को बढ़ा दिया है। जलवायु परिवर्तन से अस्तित्व को खतरा बना हुआ है। समय निकलता जा रहा है और हमें अभी, तेजी से और शीघ्रता से कार्रवाई करने की आवश्यकता है। एक ओर, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, बर्फ की चट्टानें पिघलने और प्रजातियों के विलुप्त होने से खाद्य उत्पादन में बाधा आ रही है और कृषि-खाद्य चक्र भी स्थाई और पर्यावरण अनुकूल नहीं बन पा रहा है । इससे जलवायु से जुड़ी कार्रवाई नहीं हो पा रही है और ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि हो रही है।

इसलिए, हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियाँ एक दुष्चक्र का सामना कर रही हैं और इस "चक्रव्यूह" को तोड़ना जरूरी है। साथ ही, हमें जैव विविधता को बढ़ाने और पारिस्थितिकी तंत्र को सम्हालने की आवश्यकता है ताकि सभी को अधिक समृद्ध और उपयोगी भविष्य के साथ-साथ कृषि-खाद्य प्रणालियों के माध्यम से खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान की जा सके।

देवियो और सज्जनो,

भारत सरकार ने "वोकल फॉर लोकल" का आह्वान किया है। हमें, कृषि-खाद्य प्रणालियों में भी इसे अपनाना जरूरी है। हमें अपने उपभोग पैटर्न को बदलने की जरूरत है। हमें न केवल अपने स्वास्थ्य के लिए बल्कि पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए स्थानीय स्तर की चीजों को अपनाना आवश्यक है। हमें विभिन्न प्रकार के भोजन को शामिल करने के लिए अपने आहार में विविधता लाने की भी आवश्यकता है। हमें चावल-गेहूं की अपनी छुपी हुई मांग ख़त्म करने की व्यवस्था से हटना होगा। इस संदर्भ में, हम सभी मोटे-अनाज पर वैश्विक सम्मेलन, जिसे श्री अन्न भी कहा जाता है, को याद करें, जो इस वर्ष मार्च में इसी सभागार में आयोजित किया गया था। भारत के लगातार प्रयासों के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा-अनाज वर्ष घोषित किया गया है।

महामारी में कृषि की मूलभूत ताकत का पता चला, इसने इस क्षेत्र की सबसे बड़ी कमजोरी को भी उजागर किया। कृषि को केवल व्यावसायिक आधार पर बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। इस क्षेत्र का सामाजिक दायित्व मानवता के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। इसी तरह, दुनिया के कुछ हिस्सों में चल रहे संघर्षों ने कृषि-खाद्य प्रणालियों की अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम प्रक्रियाओं के लिए बाधा खड़ी की है, चाहे वह प्रमुख मध्यवर्ती इनपुट की उपलब्धता और कीमत हो या आउटपुट की आपूर्ति या विपणन हो।

देवियो और सज्जनो,

पारिस्थितिक रूप से स्थाई, नैतिक रूप से वांछनीय, आर्थिक रूप से किफायती और सामाजिक रूप से उचित उत्पादन के लिए, हमें अनुसंधान करने की आवश्यकता है जो इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सक्षम परिस्थितियां तैयार कर सके। हमें कृषि-खाद्य प्रणालियों को कैसे बदला जाए इसकी एक व्यवस्थित समझ होने की आवश्यकता है। और मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन और यहाँ उपस्थित सम्मानितजन इन उपलब्धियों को हासिल करने के लिए हर प्रकार के उपाय करेंगे।

कृषि-खाद्य प्रणालियाँ लचीली और कुशल होनी चाहिए कि वे सभी के लिए पौष्टिक और स्वस्थ आहार को अधिक सुलभ, उपलब्ध और किफायती बनाने में आने वाले उतार-चढ़ाव और व्यवधानों को झेल सकें। साथ ही, उन्हें अधिक उचित, न्यायसंगत और टिकाऊ भी होना चाहिए। आज, इस क्षेत्र के प्रतिभावान व्यक्ति यहां हैं। मैं आशा और कामना करती हूं कि अगले चार दिनों के दौरान सम्मेलन में सभी मुद्दों पर विचार किया जाएगा और कृषि-खाद्य प्रणालियों में सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होगा।

मैं, अपनी बात उसी भाव से समाप्त करती हूँ, जिस भाव से मैंने प्रारंभ किया था। मैंने इस संबोधन की शुरुआत में कहा था कि इस सम्मेलन की थीम का प्रत्येक शब्द वांछनीय, महान और महत्वाकांक्षी है। मैं, इसमें एक बात जोड़ना चाहूंगी कि अगर हम इस दिशा में सामूहिक रूप से काम करें तो इसे वास्तव में हासिल किया जा सकता है; यदि हम अनुसंधान की क्षमता का उपयोग एक ऐसा दृष्टिकोण विकसित करने के लिए करें जो न्यायसंगत हो और जिसमें सभी के सरोकार शामिल हों।

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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