भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का एकीकृत क्रायोजेनिक इंजन निर्माण केंद्र (आईसीएमएफ), एचएएल के उद्घाटन समारोह के अवसर पर संबोधन

बेंगलुरु : 27.09.2022

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मुझे, इस महत्वपूर्ण अवसर पर आप सभी के बीच आकर बहुत खुशी हो रही है। वास्तव में न केवल हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए क्रायोजेनिक और सेमी-क्रायोजेनिक इंजन बनाने के लिए एक अत्याधुनिक इकाई का होना एक ऐतिहासिक क्षण है। मुझे बताया गया है कि इससे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों की जरूरतें पूरी होंगी, और हमारे देश की कई उपलब्धियां बढ़ेंगी। मैं इस प्रतिष्ठित परियोजना से जुड़े सभी लोगों को बधाई देती हूं।

मुझे पता चला है कि यह केंद्र एचएएल और इसरो के संयुक्त प्रयास से बनाया गयाहै और अंतरिक्ष कार्यक्रमों की महत्ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए हाई-टेक उपकरण लगाए गए हैं। एचएएल ने 1983 में इसरो के साथ सहयोग करके इसरो के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए आवश्यक उपकरणों में अपनी विनिर्माण विशेषज्ञता में वृद्धि की है। इसके बाद जो हुआ उसने दुनिया के सामने हमारे देश की क्षमता को साबित कर दिया।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने रक्षा मामलों में भारत की आत्मनिर्भरता में बहुत बड़ा योगदान दिया है। यह कहा जा सकता है कि एचएएल सेनाओं का बल रहा है। एचएएल ने समय-समय पर विभिन्न विमान प्लेटफार्मों के अनुसंधान, विकास और निर्माण में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन देश का गौरव रहा है। जब इस संस्था ने 1960 के दशक में कार्य करना शुरू किया, तब भारत नया-नया गणराज्य बना था और उस समय घनघोर गरीबी और निरक्षरता की चुनौतियों का सामना कर रहा था। लेकिन हमारे पास अपार क्षमता थी। जिस तीव्र गति से इसरो ने विकास किया है, उसने सबसे उन्नत और तकनीकी रूप से विकसित देशों का भी ध्यान आकृष्ट किया है। इसरो के ईमानदार प्रयासों और समर्पण ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन निर्माण क्षमताओं वाला दुनिया का छठा देश बना दिया है।

इसरो द्वारा लॉन्च किए गए उपग्रह हमें रक्षा और संचार के विभिन्न पहलुओं की गहन जानकारी देते हैं। remote sensing satellites या वे जो संचार, मौसम पूर्वानुमान आदि में मदद करते हैं, उनसे बड़े पैमाने पर लोगों को उनके दैनिक जीवन में मदद मिली है। देश में संचार क्रांति लाने में इसरो के योगदान ने देश के दूर-दराज के इलाकों तक भी पहुंचना संभव बना दिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जैसे ही कोई रॉकेट इसरो द्वारा लॉन्च किया जाता है, यह हमारे देश के 130 करोड़ से अधिक लोगों की आकांक्षाओं को गति प्रदान करता है।

एचएएल और इसरो मिलकर रणनीतिक रक्षा और विकास में योगदान करते हैं। दोनों संगठनों ने विभिन्न उपकरणों और कार्यक्रमों के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, जिसने हमारे देश की सुरक्षा और विकास को और सुदृढ़ किया है। रक्षा संबंधी उपकरणों के विनिर्माण की अपनी उन्नत इकाई के साथ एचएएल हमारे देश के लिए एक अमूल्य संपत्ति साबित हुआ है।

भारत, एक राष्ट्र के रूप में, आत्मनिर्भर भारत बनने के लिए तेजी से कदम उठा रहा है। इस तरह के कदम भारत के लोगों में एक नई आशा और प्रेरणा का संचार करते हैं। मुझे आशा है कि हम प्रगति के इस पथ पर लगातार आगे बढ़ते रहेंगे।

एचएएल और इसरो का गौरवशाली अतीत हमें यह आश्वासन देता है कि भारत के अमृत काल में प्रवेश करते हीये भविष्य में महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभाते रहेंगे। 2047 तक, जब हम स्वतन्त्रता के 100 वर्ष मनाएंगे, तब तक हमारे आसपास की दुनिया काफी बदल चुकी होगी। जिस तरह हम 25 साल पहले समकालीन दुनिया की कल्पना करने की स्थिति में नहीं थे, उसी तरह आज हम कल्पना नहीं कर सकते कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन जीवन को बदलने जा रहे हैं। हमने एक स्वतंत्र देश के रूप में 75 वर्ष पूरे कर लिए हैं। हम अगले 25 वर्षों को भारत को नए रूप में देखने और इसे एक विकसित देश बनाने की अवधि के रूप में देख रहे हैं। यह सुनिश्चित करना हमारी संयुक्त जिम्मेदारी है कि 2047 का भारत कहीं अधिक समृद्ध और मजबूत राष्ट्र बने।

देवियो और सज्जनों,

इस ऐतिहासिक अवसर पर मुझे हमारे पूज्य पूर्व राष्ट्रपति डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम की याद आती है कि वैसे तो हम उन्हें 'भारत के मिसाइल मैन' के नाम से जानते हैं, लेकिन उनके जीवन का एक दूसरा पहलू भी था, जिस पर मैं कुछ प्रकाश डालना चाहूंगी। उन्होंने हमेशा सामाजिक समावेश के साथ-साथ तकनीकी विकास के मार्ग को अपनाया। विज्ञान एक अभूतपूर्व क्रांति ला सकता है और जनता के जीवन को छू सकता है। डॉ कलाम ने भी 'कलाम-राजू स्टेंट' तैयार कर जनता के जीवन को छुआ। यह एक स्वदेशी कोरोनरी स्टेंट था जिसने हजारों रोगियों की मदद की क्योंकि यह आयातित कोरोनरी स्टेंट की तुलना में सस्ता था।

मेरे कहने यह अभिप्राय है कि डॉ. कलाम द्वारा अपनाई गई स्वदेशीकरण की भावना का हमारे समाज पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हमारे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत और शोध से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। मैं, भारत के वैज्ञानिक समुदाय से सामाजिक उत्तरदायित्व के मार्ग पर चलने का आग्रह करती हूं।

हाल ही में, हमने कोविड महामारी के रूप में एक बड़े खतरे का सामना किया। लेकिन हमारे डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के सक्रिय और असाधारण प्रयास ने हमें इस संकट से निपटने में मदद की। महामारी के प्रति हमारी कार्रवाई की हर जगह सराहना हुई है। देश में ही बने टीकों से हमने मानव इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया। हमने वैक्सीन कवरेज में 215 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर लिया है। महामारी से निपटने में हमारी उपलब्धियां कई विकसित देशों से अच्छी रही हैं। इस उपलब्धि के लिए हम अपने वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, नर्सों, पैरामेडिक्स और टीकाकरण से जुड़े कर्मचारियों के आभारी हैं।

देवियो और सज्जनों,

हर चुनौती हमें इसका सामना करने और इसकी पुनरावृत्ति को रोकने की आवश्यकता के बारे में सोचने पर मजबूर करती है। मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि आज हमें न केवल पारंपरिक बल्कि अप्रत्याशित चुनौतियों का भी सामना करने के लिए खुद को तैयार रखने की जरूरत है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि हमारे पिछले अनुभव से सीखते हुए, सरकार ने विशेष रूप से वायरस की खोज और इसकी रोकथाम के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करने की पहल की है।

मुझे यह जानकर खुशी हुई कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने प्रभावी कोविड प्रबंधन के लिए अनुकरणीय सहायता प्रदान की है और यह अपनी अनुसंधान अवसंरचना का विस्तार कर रही है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के अंतर्गत राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV), पुणे भी वायरोलॉजी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ाने के लिए हर संभव कदम उठा रहा है। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान को विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहयोगी प्रयोगशालाओं में से एक प्रयोगशाला के रूप में नामित किया गया है। विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में मांगों को पूरा करने के लिए देश भर में जोनल परिसरों के माध्यम से राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान का विस्तार प्रशंसनीय है। मुझे आज, बेंगलुरु में राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान के पहले ऐसे परिसर का वर्चुअल शिलान्यास करते हुए प्रसन्नता हो रही है।

अंत में, मैं क्रायोजेनिक इंजन निर्माण इकाई के विकास के लिए एक बार फिर एचएएल और इसरो को बधाई देती हूं। मैं, अपनी मातृभूमि को गौरवान्वित करने वाले- यहां उपस्थित सशस्त्र बलों को, वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय को दशहरे की शुभकामनाएं देती हूं। आप सभी को मेरी शुभकामनाएं।

धन्यवाद! 
जय हिन्द! 

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