भारत की माननीया राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन के अवसर पर संबोधन
रांची : 24.05.2023
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आज यहां आपके बीच आकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। झारखंड के लोगों से मेरा पुराना नाता रहा है और उनका गर्मजोशी से स्वागत करना मुझे अद्भुत लगता है। मैं आप सभी के गर्मजोशी भरे स्वागत के लिए और मैं एक बार फिर घर पर आ गई हूं, मुझे ऐसा महसूस कराने के लिए मैं आप सब की आभारी हूं।
आज झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन के उद्घाटन का यह ऐतिहासिक अवसर है। अपने पहले चरण में, इसे वर्ष 1972 में पटना उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच के रूप में स्थापित किया गया था। इस उच्च न्यायालय की स्थापना नवंबर 2000 में झारखंड राज्य के बिहार राज्य से अलग होने के बाद की गई थी। सिर्फ दो दशकों में इसने यह प्रभावशाली प्रगति की है, और न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 12 से बढ़कर 25, दोगुनी से अधिक हो गई है। जिस भवन से यह कार्य कर रहा था वह भवन पहले केवल सर्किट बेंच के लिए था। इसके नए स्वरूप के अनुरूप, न्यायिक व्यवस्था के लिए बड़े और अधिक आधुनिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता थी।
नया भवन आधुनिक सुविधाओं और अत्याधुनिक भौतिक अवसंरचना वाला है। इसमें वकीलों के चैंबर और स्टेट बार काउंसिल बिल्डिंग के अलावा, न्यायाधीशों और रजिस्ट्री के सदस्यों के लिए एक आवासीय परिसर है। वास्तव में उल्लेखनीय बात यह है कि भवन के पूरे परिसर का डिजाइन और निर्माण ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए किया गया है। सबसे बढ़कर यह विभिन्न प्रकार के पेड़ और वन से भरा हुआ इसका हरा-भरा परिसर है। मुझे विश्वास है कि झारखंड उच्च न्यायालय का नया भवन अन्य सार्वजनिक और निजी संगठनों को इसी प्रकार की परियोजनाएं तैयार करते समय पर्यावरण को मूल कारक के रूप में ध्यान रखने के लिए प्रेरित करेगा। ग्लोबल वार्मिंग के युग में यह एक आवश्यकता भी बन गई है।
मैं उन सभी को बधाई देती हूं जिन्होंने इस परियोजना को वास्तविक रूप देने में योगदान दिया है। नया कैंपस देखने में भी अच्छा लग रहा है। आपमें से जो यहां कार्य कर रहे हैं, उनके लिए इस खूबसूरत कैंपस में कार्य करना एक सुखद अनुभव होना चाहिए। काम करने की परिस्थितियों के संदर्भ में, मैं, हाल के वर्षों में देखी गई एक प्रवृत्ति को इंगित करना चाहती हूं। कई कोर्ट भवनों में क्रेच खोले गए हैं, ताकि हमारी बहनें अपने कार्य के साथ-साथ अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी सम्हाल सकें। मुझे यकीन है कि नए भवन में क्रेच की व्यवस्था होगी।
देवियो और सज्जनो,
यह अदालत न्याय का मंदिर है। इस देश के लोग अदालतों को आस्था की दृष्टि से देखते हैं और जब हम 'प्रार्थना' जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं तो कानून की भाषा भी इसी भावना को दर्शाती है। जनता ने स्वयं अदालतों को न्याय देने और गलत को ठीक करने की शक्ति दी है। वे यहाँ न्याय के लिए प्रार्थना लेकर आते हैं। यह वास्तव में एक बहुत ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
एक विषय पर मैंने अक्सर बात की है, अर्थात् न्याय तक पहुंच का प्रश्न। इसमें सुधार करना हमेशा चलने वाला कार्य है। हमें उस प्रक्रिया को जारी रखने के नए तरीके खोजने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।
न्याय तक पहुंच के प्रश्न से कई पहलू जुड़े हैं। लागत इनमें सबसे महत्वपूर्ण है। यह देखा गया है कि मुकदमेबाजी के खर्च से कई नागरिकों तक न्याय की पहुंच नहीं हो पाती है। इसके लिए विभिन्न प्राधिकरणों ने नि:शुल्क कानूनी परामर्श प्रकोष्ठ खोलने सहित कई स्वागत योग्य पहलें की हैं। कई वकील भी निशुल्क सेवाएं प्रदान करते हैं। मैं सभी हितधारकों से नवीन रूप से सोचने और न्याय की पहुंच का विस्तार करने के नए तरीके तलाशने का आग्रह करती हूं।
न्याय तक पहुंच का एक अन्य पहलू भाषा है। जैसा कि भारत में अदालतों की प्राथमिक भाषा अंग्रेजी रही है, आबादी का एक बड़ा वर्ग इस कारण पीछे छूट गया है। न्याय की भाषा समावेशी होनी चाहिए, ताकि किसी मामले विशेष के पक्षकार और इच्छुक नागरिक, व्यवस्था में प्रभावी हितधारक बन सकें। सर्वोच्च न्यायालय ने एक अच्छी शुरुआत की है की उसने अपने निर्णयों को कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराना शुरू किया, और कई अन्य अदालतें भी अब ऐसा कर रही हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि समृद्ध भाषाई विविधता वाले झारखंड जैसे राज्य में यह कारक और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है। मुझे विश्वास है कि अधिकारी अदालती प्रक्रियाओं को उन लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं जो अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं को अच्छी तरह समझ पाते हैं।
न्याय तक पहुँच से पूर्व इन बाधाओं और अन्य बाधाओं को पार करने में सामान्य तौर पर, दो कारक अत्यधिक उपयोगी हैं। एक तकनीक, जो दिन पर दिन हमारी दुनिया को बदल रही है। इस नई इमारत में नवीनतम तकनीकी सुविधाएं हैं और यह सुविधाएं अत्यधिक मददगार साबित होंगी। दूसरा कारक है कानून और न्याय के क्षेत्र में विशेषकर युवा पीढ़ी का उत्साह। युवा ही हैं जो ऐसे नवाचार लाएँगे जिनसे न्याय तक पहुंच में सुधार होगा।
देवियो और सज्जनो,
एक अन्य प्रश्न विचाराधीन कैदियों की न्याय तक पहुंच का है। मैंने पिछले वर्ष संविधान दिवस पर इसके बारे में बात की थी। मैं इस मामले पर, मेरे दिल के करीब रहने वाली बात किए बिना नहीं रह पाती क्योंकि मैं न्यायाधीशों, कानूनी दिग्गजों, बार के सदस्यों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की एक विशिष्ट सभा को संबोधित कर रही हूं। इस समस्या के पीछे एक कारण यह है कि अदालतों पर कार्य का अत्यधिक बोझ है, जो न्याय तक पहुंच को भी नुकसान पहुंचाता है। मैं मानती हूं कि यह समस्या जटिल है, किन्तु फिर भी यह सच्चाई है कि बड़ी संख्या में लोग वर्षों तक विचाराधीन कैदियों के रूप में जेलों में बंद हैं। जेलें खचाखच भरी हुई हैं, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो गया है। हमें समस्या के मूल कारण का पता लगाना चाहिए। और जब मैं 'हम' कहती हूं, तो हम में पूरा समाज शामिल है।
फिर भी, यह अच्छा है कि इस समस्या पर व्यापक रूप से ध्यान दिया गया है, इस मुद्दे पर बहस हो रही है तथा कानून से जुड़े कुछ विद्वान इस मामले को समझ रहे हैं। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि विशेष रूप से भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं के लिए न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ और समावेशी बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। मुझे विश्वास है कि हम सब मिलकर जल्द ही इसका समाधान निकाल लेंगे।
देवियो और सज्जनो,
ऐसे शानदार भवन में उच्च न्यायालय आ जाने पर मैं झारखंड की जनता, न्यायाधीशों और वकीलों को बधाई देती हूं, ऐसा भवन जो न्याय की शीघ्रता और शक्ति का प्रतीक है। मुझे विश्वास है कि यह नया भवन एक नई ऊर्जा देगा और न्यायाधीश, वकील और प्रशासनिक कर्मचारी और अधिक समर्पण, प्रतिबद्धता और दक्षता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। आप सबको मेरी शुभकामनाएं।
धन्यवाद।
जय हिन्द!