भारत की माननीया राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का गुवाहाटी उच्च न्यायालय के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर संबोधन

गुवाहाटी : 07.04.2023

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गुवाहाटी उच्च न्यायालय के लिए ऐतिहासिक इस अवसर पर यहां आपके बीच आकर वास्तव में मुझे खुशी हो रही है। जनसेवा के 75 वर्ष पूरे करना निस्संदेह बड़े गर्व की बात है। सबसे पहले मैं इस न्यायालय से जुड़े सभी लोगों - अतीत और वर्तमान के न्यायाधीशों, वकीलों और न्यायालय के कर्मचारियों - को इस उत्कृष्ट संस्थान में महत्वपूर्ण योगदान के लिए बधाई देती हूं। मैं समग्र रूप से पूर्वोत्तर की जनता को और विशेष रूप से असम के लोगों को भी बधाई देती हूं, क्योंकि उनका भी इस उपलब्धि में महत्वपूर्ण योगदान है।

75 वर्ष की अवधि इतिहास में एक छोटी अवधि है, लेकिन यह वास्तव में व्यक्तियों और उनके द्वारा खड़े किए गए संस्थानों के लिए एक लंबा समय है। पिछले साल हमने आजादी के 75 वर्ष का जश्न मनाना आरंभ किया था। पूरा देश इसे देशभक्ति के साथ 'आजादी का अमृत महोत्सव' के रूप में मना रहा है। इस तरह के मील के पत्थर हमें उस भूतकाल के बारे में बताते हैं जिससे हमारा वर्तमान बना है। यह आज के समारोह पर भी लागू होता है। आज का अवसर हमें उन लोगों की दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता की याद दिलाता है, जिन्होंने इस संस्था को शुरुआती वर्षों में आकार दिया।

गुवाहाटी उच्च न्यायालय, निश्चित ही भारत के न्यायिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वर्ष 1948 में इसकी स्थापना के बाद, छह दशकों से अधिक समय तक सात राज्य इसके अधिकार क्षेत्र में आते थे और अभी भी चार राज्य इसके अधिकार क्षेत्र में हैं। एक समय में, इसके अधिकार क्षेत्र में असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश भी थे। वर्ष 2013 में मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा राज्यों के अलग-अलग उच्च न्यायालय बन जाने के बाद, गुवाहाटी उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में असम, नागालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश राज्य हैं, गुवाहाटी में इसकी प्रमुख सीट और कोहिमा, आइजोल और ईटानगर में तीन स्थायी बेंच हैं।

गुवाहाटी उच्च न्यायालय से कई कानूनी दिग्गज भी बनकर निकले हैं और इसने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है, जिनमें से कुछ भारत के मुख्य न्यायाधीश भी बने हैं। इसके कई ऐतिहासिक निर्णयों से भी यह चर्चा में रहा है। मुझे विश्वास है कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय आने वाले वर्षों में इसी तरह लोगों की सेवा करता रहेगा।

देवियो और सज्जनो,

आठ राज्यों वाले उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को अष्ट-लक्ष्मी के क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। उगते सूरज का यह क्षेत्र इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है कि कैसे विभिन्न समुदाय ऐतिहासिक रूप से एक साथ रह सकते हैं। परिणामस्वरूप, इस क्षेत्र की समृद्ध जातीय और भाषाई विविधता है। ऐसे क्षेत्र में संस्थानों को बहुत अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार होना जरूरी होता है, क्योंकि क्षेत्र की जनता भिन्न-भिन्न परंपराएं और कानून को मानती है। पहाड़ी क्षेत्रों के स्थानीय लोग प्रतिकूल प्रणालियों को अपनाने के बजाय समझौता प्रक्रियाओं को पसंद करते हैं। यहाँ प्रचलित विवाद समाधान के लिए प्रचलित कुछ रूढ़िगत प्रथाओं से न केवल शीघ्र समाधान होता है बल्कि ये अत्यधिक प्रभावी भी हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में लागू होने वाले कानून अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन पूरे क्षेत्र की न्याय व्यवस्था एक साझा उच्च न्यायालय द्वारा संभाली जा रही है।

इसे देखते हुए प्रसन्नता होती है कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र के तहत कुछ राज्यों में चल रहे प्रथागत कानूनों का सम्मान करता है। स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस संस्था ने इस क्षेत्र में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बढ़ाने में सहयोग दिया है। इस प्रकार इस न्यायालय को भौगोलिक रूप से और साथ ही जातीय रूप से बहुत भिन्नता वाले क्षेत्र में न्याय प्रदान करने में गर्व महसूस करना चाहिए।

देवियो और सज्जनो,

जब मैं, गुवाहाटी उच्च न्यायालय की उपलब्धियों के बारे में विचार कर रही थी, तो मेरे मन में हमारे समाज में न्याय की भूमिका पर भी विचार आया। हमारे आधुनिक गणतंत्र भारत की नींव हमारे माननीय संविधान पर रखी है, और इसकी आधारशिला न्याय है। संविधान निर्माताओं का विजन हमारे गौरवशाली स्वतंत्रता संग्राम से सामने आया था। उन्होंने स्वतंत्र भारत की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र के रूप में की जहां सभी नागरिक हर दृष्टि से समान हों। समानता का अर्थ केवल कानून के समक्ष समानता नहीं था। यही कारण है कि न्याय की उनकी धारणा काफी व्यापक थी। न्याय में आर्थिक और सामाजिक न्याय भी शामिल हैं। यह केवल दो या तीन पहलुओं तक नहीं सिमट गया है। हर पीढ़ी का यह कर्तव्य है कि वह न्याय शब्द को सार्थक बनाए।

मेरा मानना ​​है कि आज के समय में हमें पारिस्थितिक न्याय के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। पर्यावरणीय गिरावट से दुनिया के कई समुदायों के साथ अन्याय हुआ है। हमें अन्य प्रजातियों के साथ-साथ संपूर्ण पारिस्थितिकी के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, क्योंकि मानव जाति ने समग्र रूप से बहुत क्षति की है, अर्थात प्रकृति माता के परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अन्याय किया है। पारिस्थितिक न्याय की दिशा में कई माध्यमों से कार्य किया जा सकता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि कानून से जुड़े लोग भी इसमें सार्थक योगदान देंगे। न्याय के बारे जो मैंने पहले कहा है, उसे मैं दोहराती हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि न्याय की परिभाषा के अनुसार इसे समावेशी होना चाहिए और सभी के लिए सुलभ होना चाहिए। हालांकि, कई कारकों से न्याय तक पहुंच नहीं हो पाती है। न्याय की लागत उनमें से एक है। हमें मुफ़्त कानूनी सलाह की पहुंच का विस्तार करते रहना जरूरी है। न्याय की भाषा एक और बाधा है, लेकिन उस दिशा में प्रशंसनीय प्रगति की गई है और उच्च न्यायपालिका ने अधिक से अधिक क्षेत्रीय भाषाओं में निर्णय उपलब्ध कराने शुरू कर दिए हैं। कानूनी प्रक्रियाओं को समावेशी बनाने के लिए भाषा के क्षेत्र में और नए प्रयोग किए जाने चाहिए।

हमें न्याय के प्रशासन में प्रौद्योगिकी की बढ़ती भूमिका से कई समस्याओं का समाधान हो रहा है जो लंबे समय से व्यवस्था को प्रभावित कर रही थीं। मेरा आग्रह है कि विशेष रूप से युवा पीढ़ी - युवा वकील और कानून के विद्यार्थी कानूनी क्षेत्र में तकनीकी समाधान खोजें जो गरीबों और जरूरतमंदों की मदद कर सके।

देवियो और सज्जनो,

मैं एक बार फिर न्याय और न्यायशास्त्र की सेवा के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर गुवाहाटी उच्च न्यायालय से जुड़े सभी लोगों को बधाई देती हूं। मैं सबको इस महान संस्था की आगे यात्रा के लिए शुभकामनाएं देती हूं। आने वाले उत्सव रोंगाली बिहू के माहौल में, मैं आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं।

धन्यवाद,  
जय हिन्द!  
जय भारत!

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