भारत की राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति के अंगरक्षक को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया

राष्ट्रपति भवन : 27.10.2022

भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज (27 अक्तूबर, 2022) को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति के अंगरक्षक (पीबीजी) को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया।

इस अवसर पर अपने संक्षिप्त सम्बोधन में राष्ट्रपति ने परेड द्वारा उल्लेखनीय प्रदर्शन, सुसज्जित और निपुण घोड़ों के रखरखाव और प्रभावशाली समारोह पोशाक के लिए कमांडेंट, अधिकारियों, जेसीओ और पीबीजी के अन्य रैंकों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह आयोजन और भी विशेष हो जाता है जब राष्ट्रपति के अंगरक्षक अपनी स्थापना के 250 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है और देश भर में 'आजादी का अमृत महोत्सव' भी मनाया जा रहा है।

राष्ट्रपति ने पीबीजी को उसके सभी कार्यों में उत्कृष्ट सैन्य परंपराओं, पेशेवर कुशलता और अनुशासन के लिए प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्र उन पर गर्व करता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वे समर्पण, अनुशासन और वीरता, राष्ट्रपति भवन की उच्चतम परंपराओं को बनाए रखने के लिए प्रयास करेंगे और भारतीय सेना की अन्य रेजिमेंटों के लिए एक आदर्श रोल मॉडल बनेंगे।

राष्ट्रपतिके अंगरक्षक भारतीय सेना में सबसे पुरानी रेजिमेंट है, जिसे वर्ष 1773 में गवर्नर-जनरल के अंगरक्षक (बाद में वायसराय के अंगरक्षक) के रूप में तैयार किया गया था। भारत के राष्ट्रपति के अपने गार्ड के रूप में इसे भारतीय सेना की एकमात्र सैन्य यूनिट होने का विशेष गौरव प्राप्त है और इसे राष्ट्रपति की सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर धारण करने का विशेषाधिकार प्राप्त है। तत्कालीन वायसराय, लॉर्ड रीडिंग द्वारा वर्ष 1923 में बॉडीगार्ड के 150 वर्ष की सेवा पूरी करने के अवसर पर राष्ट्रपति के अंगरक्षक को यह सम्मान प्रदान किया गया था। इसके बाद प्रत्येक उत्तराधिकारी ने अंगरक्षक को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया।

27 जनवरी, 1950 को रेजिमेंट का नाम बदलकर राष्ट्रपति के अंगरक्षक कर दिया गया था। प्रत्येक राष्ट्रपति ने रेजिमेंट को सम्मानित करने की परंपरा को जारी रखा है। जैसी कि औपनिवेशिक युग में प्रथा थी, हथियारों के एक कोट के स्थान पर राष्ट्रपति का मोनोग्राम बैनर पर दिखता है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई, 1957 को राष्ट्रपति के अंगरक्षक को अपना सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर प्रदान किया।

जैसा कि आज के समय में इनको राष्ट्रपति के अंगरक्षक (पीबीजी) के रूप में जाना जाता है को, तत्कालीन गवर्नर-जनरल, वारेन हेस्टिंग्स द्वारा बनारस (वाराणसी) में तैयार करने की अनुमति दी थी। आरंभ में इसमें 50 घुड़सवार सैनिक थे, बाद में इसमें 50 घुड़सवार और जोड़ दिए गए। आज, राष्ट्रपति के अंगरक्षक में विशेष शारीरिक विशेषताओं वाले चुने गए पुरुषों का एक समूह होता है। उन्हें एक कठिन और शारीरिक रूप से कठोर प्रक्रिया के बाद चुना जाता है।

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