भारत की राष्ट्रपति ने भोपाल में 7वें अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन किया

राष्ट्रपति भवन : 03.03.2023

भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज 3 मार्च, 2023 को भोपाल में इंडिया फाउंडेशन द्वारा सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय के सहयोग से आयोजित किए गए 7वें अंतर्राष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन किया।

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय आध्यात्मिकता का पवित्र वट-वृक्ष भारत में हैं किन्तु इसकी शाखाएं पूरे विश्व में फैली हुई हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि विद्वानों के लिए दर्शन की अलग-अलग परिभाषाएँ हैं। लेकिन विश्व के रहस्यवादियों की एक ही भाषा है। जब सिद्धों ने दयाभाव से शिक्षक या गुरु बनाना स्वीकार किया, तो उनकी परंपराएं आगे बढ़ीं। ऐसी कई परंपराएं भारत में जन्मी हैं और पूरे विश्व में फल-फूल रही हैं।

राष्ट्रपति ने कहा कि धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है। हमारी परंपरा में कहा गया है, "धार्यते अनेन इति धर्म:” अर्थात जो सबको धारण करता है, यानी जो आधार देता है, वह धर्म है। धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है। राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करुणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण तथा समाज- व्यवस्था, पूर्व के मानववाद का व्यावहारिक रूप है। नैतिकता पर आधारित ऐसी व्यवस्था को बचाए रखना और मजबूत बनाना हर व्यक्ति का कर्तव्य माना गया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा पूर्व का मानववादी दृष्टिकोण सम्पूर्ण जगत को एक नैतिक मंच के रूप में देखता है, भौतिक संघर्ष के मैदान के रूप में नहीं देखता। इस नैतिक व्यवस्था के निर्माण और उसे बनाए रखने में, प्रत्येक व्यक्ति को कर्म-उन्मुख होना चाहिए और भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए। हमारे मानववादी दृष्टिकोण का मानना है कि अंधे आवेगों से व्यक्तिगत झगड़े और यहां तक ​​कि देशों के बीच युद्ध भी हो जाते हैं। जब भारत वैश्विक मंच पर "वसुधैव कुटुम्बकम" की उद्घोषणा करता है कि पूरा विश्व एक परिवार है, तो यह पूर्व का मानववादी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता की घोषणा करता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह गर्व की बात है कि हमारे देश की परंपरा में धर्म को, समाज व्यवस्था और राजनीतिक कार्यकलापों में, प्राचीन काल से ही केंद्रीय स्थान प्राप्त है। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई, उस पर धर्म- धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। हमारा राष्ट्रीय प्रतीक-चिन्ह सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज में धर्म-चक्र सुशोभित है। महात्मा गांधी, भगवान बुद्ध के अहिंसा तथा करुणा के संदेश को अपने जीवन-मूल्यों तथा कार्यों के द्वारा प्रसारित करते थे।

राष्ट्रपति ने कहा कि मानवता के दुख के कारण का बोध कराना और उस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना, पूर्व के मानववाद की विशेषता है, जो आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में सबके कल्याण के लिए प्रार्थनाएं हमारे जीवन का हिस्सा रही हैं। यही, पूर्व के मानववाद का सार-तत्व है।

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