भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का ईशा योग केंद्र में महाशिवरात्रि समारोह के अवसर पर संबोधन
कोयम्बटूर : 18.02.2023
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ओम नम शिवाय! जो 'शिव' अर्थात 'शुभ'- इस ब्रह्मांड में मंगलकारी, उदार, परोपकारी हैं, उनको मैं नमन करती हूँ।
मैं आज बहुत ही धन्य महसूस कर रही हूं। आज सुबह, मुझे माँ मीनाक्षी के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। मैंने देवी मां से सभी की भलाई के लिए प्रार्थना की।
आदियोगी के सान्निध्य में, महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यहां आकर मैं खुद को धन्य महसूस कर रही हूं। मुझे विश्वास है कि आप भी मेरी तरह यहाँ के वातावरण की special vibrations को अनुभव कर रहे होंगे। हम अपने भीतर प्रवाहित होने वाली ऊर्जा रूप को महसूस कर रहे हैं जो पूरे ब्रह्मांड को जीवित रखती है। पिछले सप्ताह ही मैं वाराणसी में थी, जो शिव का प्रथम आवास रही है और मुझे काशी विश्वनाथ मंदिर और काल भैरव मंदिर में भगवान के विभिन्न रूपों का दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। दिसंबर के अंत में, मुझे श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन स्वामी के समक्ष प्रार्थना करने का सौभाग्य मिला और आज मैं यहां वेल्लियांगिरी पहाड़ियों के निचले हिस्से में हूं, जो दक्षिण कैलाश कहलाता है और स्वयंभू भगवान शिव का एक अन्य निवास स्थान है।
हम भगवान शिव को पिता- 'शिव बाबा' कहते हैं। लेकिन उनका अर्ध-नारीश्वर रूप भी है अर्थात आधे पुरुष और आधे स्त्री का रूप वे धारण करते हैं। यह रूप हर इंसान के पुरुष और स्त्री पक्ष को दर्शाता है और दोनों में समानता हो यह भी बतलाता है। आज के समय का gender balance उस छवि में बहुत खूबसूरती से दिखाई देता है|
कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि भगवान शिव हमारी समग्र धार्मिक भावनाओं और आध्यात्मिक सोच के मूल में हैं। जरा परम प्राप्ति और मुक्ति के विभिन्न मार्गों पर विचार करें जिन्हें मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण भी कहते हैं। विश्व की विभिन्न परंपराएं प्रेम या भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग, योग मार्ग आदि की ओर ले जाती हैं। और इन सभी पथों का एकमात्र मार्गदर्शक भगवान शिव को माना जाता है। कोई साधक अपने पसंदीदा भगवान का भक्त हो या एक ज्ञानी जो निरपेक्ष की तलाश कर रहा हो या एक योगी जो आध्यात्मिक मिलन के लिए प्रयास कर रहा हो- भगवान शिव की शरण में जाने से निश्चित रूप से लक्ष्य की ओर बढ़ता है।
इसी तरह, भगवान शिव सभी के लिए देवता हैं, क्योंकि उनके विभिन्न रूप हैं जो हमसे मेल खाते हैं। वह एक गृहस्थ हैं, हम अधिकांश की तरह उनका परिवार है। लेकिन वह एक सन्नयासी भी हैं जो सब कुछ त्याग कर श्मशान या ऊंचे पहाड़ों पर निवास करते हैं। वह पहले योगी, आदियोगी हैं, और वे पहले ज्ञानी भी हैं जिन्होंने, उदाहरण के लिए, पाणिनि की व्याकरण प्रणाली को प्रेरित किया, जो मानव जाति की सबसे बड़ी बौद्धिक उपलब्धियों में से एक है।
भगवान शिव, अपने नाम के अनुरूप उदार देव हैं, लेकिन फिर भी अनगिनत मिथकों में उन्हें अति रौद्र देवता के रूप में भी वर्णित किया गया है, जो उनके एक अन्य नाम 'रुद्र' से पता चलता है। शायद इसीलिए भगवान राम और रावण दोनों उनकी आराधना करते थे। इस तरह वह रचनात्मक और विध्वंशक दोनों प्रकार की ऊर्जाओं का प्रतीक हैं। वास्तव में वह विरोधाभासों से पार हैं, क्योंकि वे विध्वंश के साथ सृजन भी करते हैं, जिससे ब्रह्मांड की पुनः उत्पत्ति और कायाकल्प होता है। भगवान शिव का यह पहलू जो तांडव नृत्य में जीवंत हो उठता है, यहां से कुछ दूर स्थित पहाड़ी पर किया गया था।
हम नश्वर, श्रद्धा से भगवान शिव के समक्ष झुक कर उनको नमन ही कर सकते हैं? इस संबोधन की शुरुआत 'ओम नमः शिवाय' मंत्र से करने का मेरा यही अभिप्राय था। आदि शंकराचार्य चाहते थे कि हम सभी अपने भीतर शाश्वत शिव को जानें और अनुभव करें। वे अपने मधुर निर्वाण शतकम में कहते हैं:
न मे मृत्युशंका न मे जातिभेद:,
पिता नैव मे नैव माता न जन्म:।
न बन्धुर्न मित्रम् गुरूर्नैव शिष्य:,
चिदानन्दरूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥
अर्थात:
I have no fear of death, no caste or creed,
I have no father, no mother, for I was never born,
I am not a relative, nor a friend, nor a teacher nor a student,
I am the form of consciousness and bliss,
I am the eternal Shiva...
नास्तिकों को यह विश्वास और मिथक की तरह लग सकता है। हालाँकि, यह सुखद आश्चर्य है कि आधुनिक विज्ञान ने भी शिव के कुछ रहस्यों को उजागर करना शुरू किया है। 20 वीं शताब्दी के आरंभ में, जब भौतिकी ने नए आविष्कार किए और वैज्ञानिकों ने sub-atomic particles के हिलने की छवियां बनाईं, तो पारंपरिक मूर्तियों में दिखाए गए नृत्यमग्न शिव या नटराज के नृत्य-कदम के समान ट्रेसिंग लाइनें पाई गई। मैं जो कह रही हूं वह निश्चित रूप से एक सर्वज्ञ सिद्धांत है। इससे पता चलता है कि प्राचीन संतों ने अपने गहरे ध्यान में ब्रह्मांड की वास्तविकता को अनुभव किया और फिर अपनी भाषा और प्रतीकों में अभिव्यक्त किया। भगवान शिव उस निरपेक्ष के ही प्रतीक हैं।
इसलिए कई विद्वान नास्तिक भी भगवान शिव से हैरान होते हैं। पक्के समाजवादी राममनोहर लोहिया अज्ञेयवादी भी थे, लेकिन भगवान शिव कहे जाने वाले इस परम तत्व को वे भली-भांति समझते थे। उन्होंने 1956 में 'राम और कृष्ण तथा शिव' नामक एक निबंध में लिखा था, जिसे मैं यहाँ उद्धृत कर रही हूँ:
"जबकि राम और कृष्ण ने मानव स्वरूप में रहे, लेकिन शिव का न जन्म हुआ और न ही मृत्यु हुई। परमात्मा की तरह वह अनंत हैं, लेकिन परमात्मा से हटके, उनके जीवन में समय और कई स्थलों की ऐसी घटनाएं भी हैं, जिससे वे तुलना में परमात्मा स्वरूप से भिन्न प्रतीत होते हैं। वह शायद मनुष्य को ज्ञात एकमात्र गैर-आयामी मिथक या अवधारणा वाले हैं। निश्चित रूप से कोई अन्य इस संबंध में उनके बराबर नहीं है।"
साथी साधकों,
आज महाशिवरात्रि है, जो भारत के अधिकांश हिस्सों में सर्दियों की समाप्ति और गर्मी के आगमन पर आती है। महाशिवरात्रि, इस प्रकार अज्ञानता के अंधकार के अंत और ज्ञान का मार्ग खोलने की भी प्रतीक है। जीवन के उच्च आदर्शों की तलाश करने वालों के लिए आज का दिन विशेष रूप से महत्व रखता है। आज हमें आधुनिक युग के प्रसिद्ध ऋषि सद्गुरु-जी का भी सान्निध्य प्राप्त है, जिन्होंने विश्व के हर कोने में हमारे आदिकालीन गुरुओं की शिक्षाओं का प्रचार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। देश-विदेश के अनगिनत लोगों, विशेषकर युवाओं ने उनसे आध्यात्मिक प्रगति करने की प्रेरणा पाई है। सद्गुरु जी हमें अपनी कथनी और कार्यों के माध्यम से हमारी सामाजिक जिम्मेदारी के बारे में भी हमें शिक्षा देते हैं।
आज, विश्व पहले से अधिक संघर्षों में बंटा तो हुआ ही है साथ ही यह एक अभूतपूर्व पारिस्थितिक संकट का भी सामना कर रहा है। प्रकृति माता और उसके सभी बच्चों के साथ सामंजस्य बनाते हुए एक संतुलित और करुणापूर्ण जीवन की पहले कभी इतनी आवश्यकता अनुभव नहीं की गई थी जितनी आज की जा रही है। यह महाशिवरात्रि हमारे अंदर के अंधकार को दूर करे और हम सभी को अधिक पूर्ण और समृद्ध जीवन की ओर ले जाए। मैं, इस पथ पर आपकी सुखद यात्रा की कामना करती हूं, कहा भी जाता है:
शिवास्तेपन्थानःसन्तु।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक प्रकाश प्रतिदिन हमारे पथों को प्रकाशित करे।
धन्यवाद,
नमस्ते!
जय हिन्द!