भारत के राष्ट्रपति के पद पर कार्यभार ग्रहण करने के अवसर पर श्री प्रणब मुखर्जी का स्वीकृति अभिभाषण
नई दिल्ली : 25-07-2012
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श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील,
श्री हामिद अंसारी,
श्रीमती मीरा कुमार,
न्यायमूर्ति एस.एच. कापडिया,
संसद सदस्यो,
महामहिमगण, मित्रो और देशवासियो,
आपने मुझे जो उच्च सम्मान दिया है, मैं उससे अभिभूत हूं। यह सम्मान, इस पद पर बैठने वाले को आनंदित करता है, और उससे यह भी अपेक्षा करता है कि वह देश की भलाई के लिए कार्य करते हुए व्यक्तिगत अथवा पक्षपात की भावना से ऊपर उठकर काम करे।
इस पद की प्रमुख जिम्मेदारी, संविधान के संरक्षक के रूप में काम करने की है। मैं अपने संविधान की सुरक्षा, संरक्षा तथा रक्षा, जैसा कि मैंने शपथ में कहा है, न केवल उसके शब्दों से बल्कि उसकी भावना से, करने के लिए प्रयत्नशील रहूंगा। हम सभी, भले ही किसी भी दल और क्षेत्र से हों, अपनी मातृभूमि की वेदी पर सहयोगी हैं। हमारा संघीय संविधान, आधुनिक भारत के विचार का जीता जागता स्वरूप है और यह न केवल भारत को बल्कि आधुनिकता को भी परिभाषित करता है। आधुनिक राष्ट्र कुछ बुनियादी सिद्धांतों पर निर्मित होता है जैसे, लोकतंत्र, अथवा हर एक नागरिक को बराबर का अधिकार; धर्मनिरपेक्षता, अथवा हर एक धर्म को बराबर स्वतंत्रता; हर एक क्षेत्र और भाषा को बराबर अधिकार; लैंगिक समानता तथा इनमें सबसे अधिक, आर्थिक समानता। हमारा विकास वास्तविक लगे इसके लिए जरूरी है कि हमारे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को यह महसूस हो कि वह उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है।
बंगाल के एक छोटे से गांव में दीपक की रोशनी से, दिल्ली की जगमगाती रोशनी तक की इस यात्रा के दौरान, मैंने विशाल और कुछ हद तक, अविश्वसनीय बदलाव देखे हैं। उस समय मैं बच्चा था, जब बंगाल में अकाल ने लाखों लोगों को मार डाला था, वह पीड़ा और दु:ख मैं भूला नहीं हूँ। हमने कृषि, उद्योग और सामाजिक ढांचे के क्षेत्र में बहुत कुछ हासिल किया है, परंतु यह सब उसके मुकाबले कुछ भी नहीं है, जो आने वाले दशकों में, भारत की अगली पीढ़ियां हासिल करेंगी।
हमारा राष्ट्रीय मिशन वही बना रहना चाहिए जिसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, अंबेडकर तथा मौलाना आजाद की पीढ़ी ने भाग्य से भेंट के रूप में हमारे सुपुर्द किया था : गरीबी के अभिशाप को खत्म करना और युवाओं के लिए ऐसे अवसर पैदा करना, जिससे वे हमारे भारत को तीव्र गति से आगे लेकर जाएं। भूख से बड़ा अपमान कोई नहीं है। सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें उनका उत्थान करना होगा जो कि सबसे गरीब हैं जिससे गरीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोश से मिट जाए।
वह बात जो हमें यहां तक लेकर आई है वही हमें आगे लेकर जाएगी। भारत की असली कहानी है इसकी जनता की भागीदारी। हमारी धनसंपदा को किसानों और कामगारों, उद्योगपतियों और सेवा-प्रदाताओं, सैनिकों और असैनिकों द्वारा अर्जित किया गया है। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा तथा सिनागॉग के प्रशांत सह-अस्तित्व में, हमारा सामाजिक सौहार्द दिखाई देता है; और ये हमारी अनेकता में एकता के प्रतीक हैं।
शांति, समृद्धि का पहला तत्त्व है। इतिहास को प्राय: खून के रंग से लिखा गया है; परंतु विकास और प्रगति के जगमगाते हुए पुरस्कार शांति से प्राप्त हो सकते हैं न कि युद्ध से। बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध और उत्तरार्द्ध के वर्षों की अपनी कहानी है। यूरोप और सही मायने में पूरे विश्व ने, दूसरे विश्व युद्ध और उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद, खुद को फिर से स्थापित किया और परिणामस्वरूप, संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी महान संस्थाओं का उदय हुआ। जिन नेताओं ने लड़ाई के मैदान में, बड़ी-बड़ी सेनाएं उतारी, और तब उनकी समझ में आया कि युद्ध में गौरव से कहीं अधिक बर्बरता होती है, तो इसके बाद उन्होंने दुनिया की सोच में परिवर्तन करके उसे बदल डाला। गांधी जी ने हमें उदाहरण प्रस्तुत करके सिखाया और हमें अहिंसा की परम शक्ति प्रदान की। भारत का दर्शन पुस्तकों में कोई अमूर्त परिकल्पना नहीं है। यह हमारे लोगों के रोजाना के जीवन में फलीभूत हो रहा है, जो मानवीयता को सबसे अधिक महत्त्व देते हैं। हिंसा हमारी प्रकृति में नहीं है; इन्सान के रूप में जब हम कोई गलती करते हैं तब हम पश्चाताप तथा उत्तरदायित्व के द्वारा खुद को उससे मुक्त करते हैं।
परंतु शांति के इन प्रत्यक्ष पुरस्कारों के कारण इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया है कि अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है। हम चौथे विश्व युद्ध के बीच में हैं, तीसरा विश्व युद्ध शीत युद्ध था, परंतु 1990 के दशक की शुरुआत में, जब यह युद्ध समाप्त हुआ, उस समय तक एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमरीका में बहुत गर्म माहौल था। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा युद्ध है; और यह विश्व युद्ध इसलिए है क्योंकि यह अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकता है। दूसरे देशों को इसकी जघन्यता तथा खतरनाक परिणामों के बारे में बाद में पता लगा, जबकि भारत को इस युद्ध का सामना उससे कहीं पहले से करना पड़ रहा है। मुझे अपनी सशस्त्र सेनाओं की वीरता, विश्वास तथा दृढ़ निश्चय पर गर्व है, जो उन्होंने हमारी सीमाओं पर इस खतरे से लड़ते हुए दिखाया है; अपने बहादुर पुलिस बलों पर गर्व है, जिन्होंने देश के अंदर शत्रुओं का सामना किया है; तथा अपनी जनता पर गर्व है जिन्होंने असाधारण उकसावे के बावजूद शांत रहकर आतंकवादियों के कुचक्र को बेकार कर दिया। भारत के लोगों ने, घावों का दर्द सहते हुए परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो हिंसा भड़काते हैं और घृणा फैलाते हैं, उन्हें एक सच्चाई समझनी होगी। वर्षों के युद्ध के मुकाबले शांति के कुछ क्षणों से, कहीं अधिक उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। भारत आत्म-संतुष्ट है तथा समृद्धि के ऊंचे शिखर पर बैठने की इच्छा से प्रेरित है। यह अपने इस मिशन में, आतंकवाद फैलाने वाले खतरनाक लोगों के कारण विचलित नहीं होगा।
भारतवासियों के रूप में, हमें भूतकाल से सीखना होगा; परंतु हमारा ध्यान भविष्य पर केंद्रित होना चाहिए। मेरी राय में, शिक्षा वह मंत्र है जो कि भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम ग्रंथों में, समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तंभों पर खड़ा किया गया है; हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर-एक कोने में पहुंचाकर, इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। हमारा ध्येय वाक्य स्पष्ट है; ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए।
कभी-कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़ जाता है। समाचार सदैव खुशनुमा नहीं होते। भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है जो देश की मनोदशा में निराशा भर सकती है और इसकी प्रगति को बाधित कर सकती है। हम कुछ लोगों के लालच के कारण अपनी प्रगति की बलि नहीं दे सकते।
मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूं जहां उद्देश्य की समानता से सबका कल्याण संचालित हो; जहां केंद्र और राज्य केवल सुशासन की परिकल्पना से संचालित हों; जहां हर-एक क्रांति सकारात्मक क्रांति हो; जहां लोकतंत्र का अर्थ केवल पांच वर्ष में एक बार मत देने का अधिकार न हो बल्कि जहां नागरिकों के हित में बिना भय और पक्षपात के बोलने का अधिकार हो; जहां ज्ञान विवेक में बदल जाए; जहां युवा अपनी असाधारण ऊर्जा तथा प्रतिभा को सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रयोग करें। जब पूरे विश्व में निरंकुशता समाप्ति पर है; जब उन क्षेत्रों में लोकतंत्र फिर से पनप रहा है जिन क्षेत्रों को पहले इसके लिए अनुपयुक्त माना जाता था; ऐसे समय में भारत आधुनिकता का मॉडल बनकर उभरा है।
जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने सुप्रसिद्ध रूपक में कहा था कि भारत का उदय होगा, शरीर की ताकत से नहीं बल्कि मन की ताकत से, विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकट्ठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है—हरा, नीला अथवा लाल, बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की उस प्रखर चमक को पैदा करें, जो प्यार का रंग है।
हमारा दायित्व है काम करना, परिणाम खुद ही आ जाएंगे।
किसी भी जनसेवक के लिए, गणतंत्र का प्रथम नागरिक चुने जाने से बड़ा, कोई पुरस्कार नहीं हो सकता।
जय हिंद।