पांडिचेरी विश्वविद्यालय के तेईसवें दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
पुदुच्चेरी : 25-09-2013
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मुझे आज पांडिचेरी विश्वविद्यालय के तेईसवें दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर तथा इस शुभ अवसर के लिए आज यहां आए हुए विद्यार्थियों के उल्लास और रोमांच को देखकर प्रसन्नता हुई है।
2. मुझे इस अवसर का उपयोग पुदुच्चेरी आने के लिए करने पर भी खुशी हो रही है। यह एक खूबसूरत शहर है जो एकइम इसकी भव्य हवेलियों, सुंदर मार्गों और शांत सैरगाहों के प्रति प्रशंसा का भाव जगा देता है। यह महान तमिल कवि भरतीदासन की जन्मभूमि है। तमिल के एक अन्य विख्यात कवि सुब्रमण्य भारतीयार ने अपनी कुछ यादगार कविताएं लिखने के लिए इस स्थान को चुना। श्री अरविंद यहां एक पूरे विश्व में श्रद्धा के पात्र आश्रम की स्थापना करने के लिए आए।
मित्रो,
4. दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय के शैक्षिक कार्यक्रम में एक ऐतिहासिक दिन होता है। यह शिक्षण के एक दौर के पूर्ण होने का अवसर होता है। मैं आज अपनी डिग्री और डिप्लोमा प्राप्त करने वाले सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं। स्नातक होना एक ऐसी नई यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है जिसमें यहां प्राप्त ज्ञान और कौशल की परीक्षा होगी। ऐसा समय भी आएगा जब आप आसानी से सफलता हासिल कर लेंगे, वहीं कभी आपको कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। कष्ट की घड़ियां आपके सच्चे साहस की परीक्षा लेंगी। आपकी कठोर मेहनत, अनुशासन, प्रतिबद्धता और आपका संकल्प कठिन रास्तों को पार करने में मदद करेंगे। जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहें। खेद के लिए कोई गुंजायश न छोड़ें।
5. विद्यार्थी के जीवन में विश्वविद्यालय की भूमिका का डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सार्थक ढंग से उल्लेख किया है, ‘‘एक विश्वविद्यालय कलाकार का स्टूडियो है अथवा होना चाहिए जहां कोई मिट्टी या पत्थर या लकड़ी को आकार देने के लिए गढ़ा या काटा या तराशा नहीं जाना है, बल्कि विभिन्न प्रवृत्तियों, भिन्न क्षमताओं, परिवर्तनशील मनोदशाओं तथा वंशानुगत प्रवृत्तियों अथवा संस्कार वाले अनगिनत किस्मों के मनुष्यों को न केवल सुघड़ आकार में बल्कि ऐसे उपयोगी साधन के रूप में तैयार किया जाना है जो दूसरों के और उससे कहीं अधिक स्वयं के काम आ सकें। इस तरह प्राप्त उत्पाद को न केवल एक पूर्ण साभ्रांत व्यक्ति बल्कि समाज के सच्चे रूप में उपयोगी और कारगर सदस्य तथा देश के वफादार, मददगार और त्यागशील नागरिक होना चाहिए।’’ विद्यार्थियों के तौर पर, आपको एक प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली का लाभ प्राप्त है। अब आप जब ऐसे दौर में प्रवेश कर रहे हैं जहां आपको समाज को कुछ वापस लौटाना है, अपना योगदान करना है और महत्त्वपूर्ण बनना है। भारत एक महत्वांकांक्षी राष्ट्र है। हमें शिखर पर हुंचना है परंतु इसके लिए सभी के त्याग की जरूरत है। आप सभी सक्षम और बुद्धिमान हैं। हमारे देश को आगे बढ़ाना आपका कर्तव्य है। हमारे देश के लक्ष्य को साकार करने के लिए जो कुछ आवश्यक है, वह सभी कुछ करें।
मित्रो,
8. देश के विकास में उच्च शिक्षा के प्रमुख महत्त्व से सभी अवगत हैं। यदि हमें एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ना है, तो शिक्षण प्रणाली को प्रगति के नक्शे पर प्रमुख स्थान देना होगा। हमारी भावी पीढ़ी को तैयार करने के लिए उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों का अभाव है। भारतीय विश्वविद्यालयों की गणना विश्व के सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में नहीं होती है। यदि हम अपने अतीत को देखें तो पाएंगे कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी की शुरुआत से लेकर लगभग अठारह सौ वर्षों तक हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली का विश्व पर प्रभुत्व रहा। मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी विश्व स्तर के विश्वविद्यालयों की पीठ थे। आइए, मिलकर अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली को एक बार पुन: प्रदीप्त करने के लिए जरूरी बदलाव लाएं।
9. हमें बदलाव के साथ चलना है। यह जानकर संतुष्टि होती है कि बारहवीं योजना अवधि के दौरान, हमने विस्तार, समता, उत्कृष्टता, शासन, धन की उपलब्धता और मानीटरिंग पर ध्यान दिया है। उच्च शिक्षा क्षेत्र में सही भावना के साथ दूरगामी बदलाव लाने के लिए इन पहलुओं को कार्यान्वित करना होगा। शैक्षिक पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिए। मूल्यांकन प्रणाली को अधिक विश्वसनीय और वस्तुनिष्ठ बनाना होगा।
प्रिय विद्यार्थियो,
11. अंत में, मैं कहना चाहूंगा कि वर्षों की मेहनत के बाद आप सब तैयार हैं। आपने यहां जो क्षमताएं हासिल की हैं, उन्हें आपको राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में खुलकर प्रयोग करना होगा। मैं आप सभी को एक सफल आजीविका और भावी सार्थक जीवन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। आपके सभी स्वप्न पूरे हों। मैं पाण्डिचेरी विवविद्यालय और इससे जुड़े सभी लोगों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!