राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार 2011 और 2012 प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 20-09-2013
Download : Speeches (220.58 किलोबाइट)
1. आरंभ में, मैं श्री खामलियाना और श्री मोहम्मद अब्दुल बारी तथा फाउंडेशन फॉर एमिटी एंड सॉलिडेरिटी, नई दिल्ली को बधाई देता हूं। आज उन्हें प्रदान किया गया राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना पुरस्कार, हमारे देश में सांप्रदायिक सद्भावना को बढ़ावा देने और इसके विभिन्न प्रकार के लोगों के भीतर राष्ट्रीय अखण्डता को मजबूत बनाने में उनके उल्लेखनीय प्रयासों का सम्मान है।
देवियो और सज्जनो,
2. सद्भावना और सहिष्णुता भारतीय लोकाचार, हमारी परंपरा और हमारे इतिहास की प्रमुख नींव है। ऋग्वेद में भी सहज परंतु दृढ़ता से प्रतिपादित किया गया है कि ‘सत्य एक है, विद्वान इसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।’ ‘एकम् सत्, विप्रा: बहुधा वदन्ति।’ इसी विरासत के कारण, भारत ने स्वयं विभिन्न पंथों, सुधार आंदोलनों तथा सदियों से हमारी चेतना को प्रभावित करने वाली पुनर्जागरण लहरों को अपनाया और आत्मसात् किया।
3. हमारे संस्थापकों को ये आदर्श इतने प्रिय थे कि हमारे संविधान का निर्माण करते हुए उन्होंने इस संबंध में एक विशेष प्रावधान किया। इसलिए हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य ‘‘पंथ, भाषा और क्षेत्रीय या प्रांतीय भिन्नताओं से परे भारत के सभी लोगों के बीच सौहार्द और सामान्य भाइचारे की भावना को प्रोत्साहन’’ देना निर्धारित किया गया है।
4. परंतु इस पवित्र दायित्व के बावजूद, राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के बावजूद और हमारे कानून द्वारा प्रदत्त सुरक्षा के बावजूद, हमारे प्रशासनिक तंत्र द्वारा किए गए समस्त उपायों के बावजूद ऐसा क्यों है कि सांप्रदायिकता हमारे समाज से समाप्त होती नहीं दिखाई दे रही है? ऐसा क्यों है कि हम अपने इतिहास से सबक नहीं लेते बल्कि उन्हीं गलतियों को दोहराते रहते हैं?
5. हमारी कोई भी संस्था घृणा का प्रचार नहीं करती। कोई पंथ मतभेद का प्रचार नहीं करता। इसके विपरीत उन्होंने बताया है कि शांति और बंधुत्व का प्रसार करना प्रत्येक व्यक्ति और कुल मिलकार समाज का नैतिक कर्तव्य है। हम इसे कायम रखने और अमल में लाने के लिए क्या कर सकते हैं? हम नकारात्मक ताकतों के विरुद्ध कैसे सतर्क रह सकते हैं और उनके खतरनाक इरादों को कैसे सफलतापूर्वक नाकाम कर सकते हैं?
देवियो और सज्जनो,
6. भारतीय समाज की शक्ति और सहनशीलता हमारे बहुलवाद और अनेकता में निहित है। यह अनूठी खूबी कहीं और से नहीं लाई गई है और न ही यह अनायास हमारे समाज में आई है- बल्कि भारतीय चेतना की सहिष्णुता और विवेक द्वाराइसे सुविचारित ढंग से प्रोत्साहित और पोषित किया गया है। ये सिद्धांत हमारे पंथनिरपेक्ष ढांचे की बुनियाद हैं। यद्यपि सामाजिक शांति और सद्भाव कायम रखना सरकार का दायित्व है, परंतु इस दायित्व को प्रत्येक नागरिक के कर्तव्यों से अलग नहीं किया जा सकता है।
7. जिन विशिष्ट विजेताओं को हम आज सम्मानित कर रहे हैं उनका अनुकरण होना चाहिए। हमें उनकी उपलब्धियों में अपने निजी तथा सामूहिक प्रयासों के योगदान को जोड़ना होगा। हममें से हर एक को शांति, सद्भावना, बंधुत्व तथा सहमति के लिए अपने अपने कार्यक्षेत्र में निजी योगदान देने के बारे में सोचना होगा।
8. ऐसा कभी नहीं होता कि बातचीत से विभिन्न विचारों, नजरियों तथा आकांक्षाओं का संगम न हो पाए। यह जीवंत संस्कृतियों, धर्मों तथा सभ्यताओं की विभिन्न धारणाओं को एक साथ लाती है तथा उनका सम्मिश्रण करती है। इसलिए यह जरूरी है कि हम अपने बीच में से उनको सम्मानित करें और उनका अभिनंदन करें जो इन उपायों को बढ़ावा देते हैं तथा रूढ़िवादी, अतिवादी तथा सैन्यवादी ताकतों का हिम्मत से सामना करते हैं।
9. सतत् चौकसी उन लोगों के विरुद्ध हमारी सुरक्षा है जो हमारे देश की एकता को नुकसान पहुंचाते हैं। हमें अपने राष्ट्रपिता के उन शब्दों पर ध्यान देना चाहिए, जब उन्होंने सांप्रदायिक संघर्ष से व्यथित होकर कहा था ‘‘सांप्रदायिकता की अव्यवस्था कई मुँह वाला राक्षस है: अंत में यह सभी को चोट पहुंचाता है, उनको भी जो इसके लिए मुख्यत: जिम्मेदार हैं।’
10. इन मूल्यों को बहुत कम आयु से ही समाविष्ट किया जाना चाहिए। गांधी जी का यह दृढ़ विश्वास था कि सांप्रदायिक संघर्ष का सर्वोत्तम हल इसमें है कि हर व्यक्ति सर्वोत्तम ढंग से अपने धर्म का पालन करे तथा दूसरे धर्मों और उनके अनुयायियों के लिए समान आदर रखे।
11. मैं गृह मंत्रालय तथा राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भावना फाउंडेशन को इन पुरस्कारों की स्थापना के लिए बधाई देता हूं।
12. मैं एक बार पुन: पुरस्कार विजेताओं को तथा देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक सद्भावना बनाने के लिए प्रयासरत व्यक्तियों और संस्थाओं की हार्दिक सराहना करता हूं तथा उनके कार्य में सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं उन्हें कहना चाहूंगा, ईश्वर आपके साथ रहे।
जय हिन्द !