अखिल भारतीय प्रबंधन एसोसिएशन के भारत प्रबंधन पुरस्कार 2013 प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

नई दिल्ली : 11-04-2013

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सबसे पहले मैं इस अवसर पर सभी पुरस्कार विजेताओं को बधाई देना चाहूंगा। भारत प्रबंधन पुरस्कार 2013 के इस खुशी के मौके पर आपके बीच आकर मुझे प्रसन्नता हो रही है। यह ऐसे प्रतिष्ठत कारपोरेट पुरस्कार हैं जो विभिन्न व्यक्तियों तथा संगठनों द्वारा भारतीय व्यापार प्रबंधन में विशिष्ट योगदान को मान्यता प्रदान करते हैं।

हमारे देश में आज ऐसा कारपोरेट नेतृत्व मौजूद है जो भारतीय व्यापार को उत्कृष्टता के मॉडल के रूप में विकसित कर सकता है। भारतीय प्रबंधकों को पूरी दुनिया में उनकी प्रबंधन क्षमता के लिए जाना जाता है। बहुत से वैश्विक व्यापारिक प्रतिष्ठानों का नेतृत्व आज भारतीय प्रबंधकों तथा प्रौद्योगिकीविदों द्वारा किया जा रहा है।

विपणन क्षेत्र के एक प्रख्यात विशेषज्ञ फिलिप कोटलर ने एक बार कहा था, ‘‘आज आपको अपने स्थान पर टिके रहने के लिए तेजी से दौड़ना होगा।’’ हमने अपने सामने भारत को विश्व के कुछ सर्वोच्च देशों के बीच स्थापित करने की चुनौती रखी है। भारत की बढ़ती हैसियत के अनुरूप प्रबंधन के सिद्धांतों का अनुप्रयोग न केवल व्यापार और उद्योग में, बल्कि सामाजिक परिवर्तन तथा शासन जैसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं में भी होना चाहिए। हमारी प्रगति इस बात से तय होगी कि हम इस परिवर्तन का प्रबंधन कैसे करते हैं। भारत प्रबंधन पुरस्कार इसी जरूरत के द्योतक हैं तथा इस वर्ष के पुरस्कार विजेता भी इसी सच्चाई का प्रतीक हैं।

1957 में स्थापित, अखिल भारतीय प्रबंधन एसोसियेशन, निरंतर देश में प्रबंधन उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के कार्य में लगी रही है। इसने भारतीय उद्यमियों की, अपनी प्रबंधन क्षमता का उपयोग परिवर्तन और प्रगति के लिए सहायक उपकरण के रूप में करने के लिए प्रेरित किया है।

देवियो और सज्जनो, हमारे देश की आर्थिक संभावनाएं आज अधिकांश लोगों, खासकर यहां उपस्थित कारपोरेट मुखियाओं और नीति निर्माताओं के मस्तिष्कों को उद्वेलित करती रही हैं। यह सच है कि पिछले दो वर्षों के दौरान हमारा आर्थिक विकास धीमा पड़ा है। यह भी सच है कि जब तक हमारे बहुत से वर्तमान वृहत् आर्थिक संकेतकों, जैसे कि मूल्य स्तर, वित्तीय संतुलन तथा मौजूदा लेखा संतुलन में सुधार नहीं आता तब तक 9 प्रतिशत से ऊंचे स्तर तक आर्थिक विकास को ले जाना मुश्किल होगा और यदि हम देश से निर्धतना के उन्मूलन के उद्देश्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो इस प्राप्त करना अत्यावश्यक है।

परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2003-04 से 2012-13 के दशक के दौरान हमारी अर्थव्यवस्था का औसत वार्षिक आर्थिक विकास 7.93 प्रतिशत के अच्छे स्तर पर था। इन दस वर्षों के दौरान, 2008-09 से 2012-13 की 5 वर्ष की अवधि में विश्व का आर्थिक विकास बहुत ही धीमा, कमजोर तथा अनिश्चित था। हालांकि 2012-13 के दौरान 5.0 प्रतिशत की हमारी सकल घरलू उत्पाद विकास दर 10 वर्षों में सबसे कम रही है परंतु यह जी-7 के देशों से ऊंची है। अंतरराष्ट्रीय आकलन यह बताते हैं कि अगले दो वर्षों के दौरान हमारी विकास दर इन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से बेहतर बनी रहेगी।

हमने विकास में तेजी लाने के लिए एक वैश्विक कार्यनीति अपनाई है। इस दिशा में हमने अपने व्यापार तथा निवेश सेक्टरों को धीरे-धीरे उदारीकृत किया है। 44 प्रतिशत पर, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात विश्व अर्थव्यवस्था के साथ हमारी अर्थव्यवस्था के एकीकरण की गहनता का प्रतीक है। इसलिए यह उम्मीद करना मुश्किल होगा कि भारत की अर्थव्यवस्था इतने लंबे वैश्विक वित्तीय संकट के दुष्प्रभावों से बची रह पाए।

हमारे सामने तात्कालिक चुनौती विकास में कमी को वापस पटरी पर लाना है। अगले दो से तीन वर्षों में हमारे लिए 7 से 8 प्रतिशत की विकास दर फिर से प्राप्त करना संभव है। परंतु इसके लिए हमें देश में निवेश में पुन: जान डालनी होगी।

2003-04 के बाद उच्च आर्थिक विकास से निवेश में तेजी आई थी लेकिन 2007-08 से निवेश दर घटनी जारी है। मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण के लिए कठोर मौद्रिक नीति, परियोजनाओं के लिए समुचित प्रक्रियात्मक लचीलेपन में कमी तथा वैश्विक मंदी के कारण निर्यात मांग में कमी के कारण भारत में निजी सेक्टर निवेश प्रभावित हुआ है।

सकारात्मक निवेश परिवेश को मजबूत करने के लिए हमें व्यावसायिक परियोजना के शासन में सुधार लाना होगा। एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत की स्थिति ऋण प्राप्त करने तथा निवेशकों की सुरक्षा के मामले में बेहतर है। परंतु व्यवसाय शुरू करने, निर्माण स्वीकृति प्राप्त करने, करों का भुगतान तथा संविदा लागू करने के मामले में हम अपने कई प्रतिस्पर्धियों से पीछे हैं।

हमें उद्योग को सुविधा प्रदान करने और समयबद्ध स्वीकृति की जरूरत के लिए अपनी प्रणालियों को और अधिक द्रुत बनाना चाहिए। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि विभिन्न लाइसेंसों और उनके समयबद्ध कार्यान्वयन के अनुमोदन के सम्बन्ध में प्रमुख परियोजनाओं की मॉनीटरिंग और समीक्षा के लिए निवेश पर एक मंत्रिमंडल समिति का गठन किया गया है।

हमारे देश के वित्तीय बचत का एक बड़ा हिस्सा सरकारी घाटे को पूरा करने में चला जाता है। घाटे को कम किया जाना चाहिए ताकि बचत की बड़ी मात्रा निवेश के लिए उपलब्ध हो सके। राजस्व समेकन के प्रयासों द्वारा राजस्व घाटे को निरंतर कम करके 2016-17 तक 3 प्रतिशत के लक्ष्य तक लाना संभव होना चाहिए।

देवियो और सज्जनो, हमें भारत की आर्थिक संभावनाओं के अपने आकलन में यथार्थवादी बनना होगा। इन दिनों दिखाई दे रहा निराशा का माहौल अकारण है। विदेशी निवेशक हमारी अर्थव्यवस्था के प्रति आशावादी हैं। 2012 में, विदेशी संस्थागत निवेशकों का निवल निवेश 2011 के 39000 करोड़ रुपए से काफी अधिक होकर 1.6 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

एक महत्त्वपूर्ण सर्वेक्षण के अनुसार, चीन और अमरीका के बाद भारत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश का तीसरा सबसे पसंदीदा स्थान है। अप्रैल, 2012 और जनवरी, 2013 के बीच हमारी अर्थव्यवस्था में एक लाख करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष विदशी निवेश किया गया है। हमारे ढांचागत सेक्टर में इन निवेशों के लाभकारी प्रयोग की काफी गुंजायश है। अवसंरचना के साथ घनिष्ठता से जुड़े ऑटोमोबाइल, इस्पात और सीमेंट जैसे क्षेत्रों में भारत के अधिकांश प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में उच्च विकास हुआ है।

उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के 2014 में उबरने की संभावना है क्योंकि उनकी आर्थिक विकास दर के 2013 के 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 2014 में 2.2 प्रतिशत होने की उम्मीद है। हमें घरेलू उद्योग, विशेषकर अपने निर्यात उद्यमों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाकर इस विकास परिवेश का लाभ उठाना चाहिए।

देवियो और सज्जनो, जनशक्ति और प्रौद्योगिकी, औद्योगिक प्रगति के प्रमुख प्रेरक हैं। प्रचुर जनशक्ति भारत के तुलनात्मक लाभ को रेखांकित करती है। 2015 तक, दो-तिहाई भारतीय कामकाजी आयु वर्ग में होंगे। तब तक अकेले विनिर्माण क्षेत्र में ही, 100 मिलियन अतिरिक्त रोजगार पैदा करने होंगे।

हमारी जनशक्ति को प्रगति का साझीदार बनाने के लिए, चहुंमुखी प्रयास करने आवश्यक हैं। अधिक से अधिक संख्या में तकनीकी संस्थाएं स्थापित करनी होंगी। गुणवत्ता के मामले में पिछड़े हुए मौजूदा तकनीकी संस्थाओं को उच्चीकृत करना चाहिए। 400 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओं के उन्नयन की परिकल्पना वाली व्यावसायिक प्रशिक्षण सुधार परियोजना जैसी और पहलें आवश्यक है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि अखिल भारतीय प्रबंधन एसोसिएशन ने जन शक्ति विकास के अपने निरंतर प्रयासों के अन्तर्गत एक कौशल विकास और प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की है।

हमारे देश के प्रबंधन पेशेवरों की संख्या ऐसे कार्मिकों की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। 2011-12 में देश के वाणिज्य और प्रबंधन विषयों में नामांकन की संख्या 34 लाख थी। इसमें वृद्धि की जानी चाहिए और इसके लिए प्रबंधन शिक्षा के और अधिक संस्थानों की आवश्यकता है। यह प्रसन्नता की बात है कि ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान 7 नए भारतीय प्रबंधन संस्थान स्थापित किए गए थे। निजी क्षेत्र को भी इसमें प्रमुख भूमिका निभानी चाहिए और प्रबंधकीय जनशक्ति के एक प्रमुख निर्माता के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी चाहिए।

प्रौद्योगिकी, प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने की हमारे घरेलू उद्योग की क्षमता तय करेगी। हमारे अनुसंधान और नवान्वेषण प्रयासों का लक्ष्य उत्पादन प्रक्रिया को सरल बनाने, गुणवत्ता सुधारने और कौशल का लाभ प्राप्त करने के लिए प्रौद्योगिकी के उन्नयन का होना चाहिए। बाजार और जनसाधारण के व्यापक उपयोग के समाधान विकसित करने के लिए उद्योग को अकादमिक और अनुसंधान संस्थानों के साथ साझीदारी करनी चाहिए।

नवान्वेषण में आगे बने रहने के लिए हमें अभी बहुत प्रयास करने होंगे। भारत में, विश्व के 50 में से एक पेटेंट के लिए आवेदन किया जाता है। हमारी पेटेंट व्यवस्था के सम्मुख एक ओर, नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने तथा दूसरी ओर, बाजार प्रतिस्पर्धा को कायम रखने तथा सुगम्यता और वहनीयता सुनिश्चित करने का कठिन दायित्व है।

प्रबंधन के प्रख्यात विचारक स्वर्गीय पीटर ड्रकर के शब्दों में, ‘‘नवान्वेषण उद्यमशीलता का विशिष्ट उपकरण है- यह ऐसा कार्य है जो आय सृजन की नई क्षमता वाले संसाधन प्रदान करता है।’’ ऐसे अनेक जमीनी स्तर के नवान्वेषण हैं जिनमें बाजार योग्य उत्पाद में विकसित होने की क्षमता है। हमारे उद्योगों को ऐसे लघु प्रयासों को सहयोग देना चाहिए ताकि नए और बेहतर उत्पादों के लाभ समाज को हासिल हो सकें।

देवियो और सज्जनो, एक ज्ञानवान अर्थव्यवस्था की ओर भारत के प्रस्थान के प्रबंधन के लिए हमारे देश को दूरद्रष्टा व्यवसाय नेतृत्व की आवश्यकता है। हम चाहते हैं कि भारतीय उद्योग हमारी विकास प्रक्रिया को प्रगाढ बनाने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करे। हमारे उद्योगों का लक्ष्य सभी को आर्थिक विकास में भागीदार बनाने का होना चाहिए।

मुझे, अपनी अर्थव्यवस्था के उज्जवल भविष्य में अडिग विश्वास है। भारत प्रबंधन पुरस्कार विजेता इस विश्वास के प्रतीक हैं। मैं, उन सभी को एक बार फिर सभी को देश की प्रगति में योगदान करने के लिए बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि वे राष्ट्र निर्माण की दिशा में व्यापक चिंतन के लिए अन्य प्रबंधकों और उद्यमियों को प्रेरित करेंगे। मैं, अखिल भारतीय प्रबंधन एसोसिएशन को भी उनके भावी प्रयासों की सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद 
जय हिन्द!