49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण
नई दिल्ली : 10-11-2014
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प्रख्यात हिंदी कवि डॉ. केदारनाथ सिंह को भारतीय साहित्य में असाधारण योगदान के लिए 49वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने के शुभ अवसर पर आज आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में मेरे लिए प्रसन्नता की बात है। मैं इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को जीतने के लिए उन्हें बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि वह आने वाले वर्षों में हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहेंगे।
2. परोपकारी दम्पत्ति, साहू शांति प्रसाद जैन और स्व. श्रीमती रमा जैन भारतीय ज्ञानपीठ के प्रवर्तक थे, जिन्होंने भारतीय साहित्य में योगदान के लिए भारतीय लेखकों को सम्मानित और पुरस्कृत करने के इस श्रेष्ठ प्रयास को शुरू किया और बाद में इसे संस्थागत स्वरूप प्रदान किया। यह वास्तव में, हमारे देश के साहित्यिक मानचित्र को स्वरूप प्रदान करने का एक उल्लेखनीय और स्वागत योग्य कदम था। मैं भारतीय ज्ञानपीठ और उसके ट्रस्टियों को इसके प्रख्यात संस्थापकों के स्वप्न को साकार करने के अथक कार्य के लिए बधाई देता हूं।
3. मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि भारतीय ज्ञानपीठ पिछले सात दशकों से विभिन्न भारतीय भाषाओं के सुप्रसिद्ध लेखकों की कृतियों के हिंदी अनुवाद के प्रकाशन के अलावा हिंदी के मौलिक आधुनिक साहित्यिक कृतियों को प्रोत्साहित कर रहा है। उन्होंने एक हजार से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन किया है, जिन्हें समाज के सभी वर्गों के पाठकों द्वारा सराहा गया है। भारतीय ज्ञानपीठ प्रशंसनीय रूप से बहुत सी क्षेत्रीय भाषाओं और उनके लेखकों को आगे लेकर आया है तथा भारतीय साहित्य को समृद्ध बनाने के योगदान के लिए उन्हें पुरस्कृत किया है। यह वास्तव में एक सराहना योग्य कार्य है और मैं साहित्यिक प्रयासों के जरिए राष्ट्रीय एकता की दिशा में कार्य करने के लिए उन्हें बधाई देता हूं।
4. भारत बहुत सी भाषाओं वाला देश है तथा हम प्रत्येक वर्ष अपनी साहित्यिक विरासत में योगदान देने वाली कुछ उत्कृष्ट कृतियों के रचना करके अपनी भाषायी विविधता का सम्मान करते हैं। अब हमारी साहित्यिक विविधता के सौंदर्य, उसकी गहनता और मुखरता को विश्व के सभी कोनों तक पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए। मैं इस विशिष्ट सभा से इस मिशन की दिशा में अथक प्रयास करने का आग्रह करता हूं।
5. सभी भारतीय भाषाओं में हिंदी के पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं की संख्या सबसे अधिक है तथा केदारनाथ सिंह इस सम्मान के माध्यम से पंत, दिनकर, अज्ञेय, महादेवी, नरेश मेहता, निर्मल वर्मा, कुंवर नारायण, श्रीलाल शुक्ल और अमरकांत जैसे विशिष्ट साहित्यकारों की जमात में शामिल हो गए हैं।
6. डॉ. केदारनाथ सिंह ने वास्तविकता तथा कल्पना दोनों ही धरातलों का समान सुगमता से अनुसंधान करते हुए अपनी कविता के द्वारा हमारे समक्ष पद्य तथा काव्यात्मक गद्य का अनोखा सम्मिश्रण प्रस्तुत किया है। उनकी कविता अर्थ, रंग और स्वीकार्यता का एक कोलॉज प्रस्तुत करती है। एक अनोखे व्यक्तित्व के धनी, श्री केदारनाथ सिंह का दृष्टिकोण न केवल आधुनिक सौंदर्य-शास्त्र के प्रति वरन परंपरागत ग्रामीण समुदायों के प्रति भी संवेदनशील है, परंतु वे सदैव जीवन नामक महोत्सव के प्रति प्रतिबद्ध रहे हैं।
देवियो और सज्जनो,
7. डॉ. सिंह एक प्रख्यात अध्यापक भी हैं, जिन्होंने भारत में शिक्षा के एक प्रतिष्ठित संस्थान जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया है। मुझे यह प्रसन्नता है कि उनके जैसे दूरदर्शी और कवि को कैनवस के रूप में अपने समक्ष अनगिनत युवाओं का लाभ मिला। मुझे विश्वास है कि उनके बहुत से विद्यार्थी उनके अनुभव और अंतर्दृष्टियों से लाभान्वित होकर अनेक प्रकार से हमारे राष्ट्रीय जीवन और विरासत को समृद्ध बनाने में योगदान देंगे।
8. मेरी यह हार्दिक इच्छा है कि नई पीढ़ी भारतीय प्राचीन ग्रंथों के गहन अध्ययन की ओर प्रवृत्त हो। इससे न केवल नैतिकता का मार्ग प्रशस्त होगा वरन् राष्ट्र निर्माण के हमारे प्रयासों में भी महती योगदान प्राप्त होगा। मुझे विश्वास है कि भारतीय ज्ञानपीठ हमारे युवाओं को हमारे साहित्य के वैभव से अवगत कराने के उपाय करेगा।
9. मैं एक बार पुन: ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने पर डॉ. केदारनाथ सिंह को बधाई देता हूं और उन्हें आने वाले अनेक वर्षों तक सर्जनात्मक उत्कृष्टता के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!