मुंबई विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
Mumbai : 30-12-2012
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मुझे, मुंबई विश्वविद्यालय के इस दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। यह संस्थान वास्तव में भारत में उच्च शिक्षा का उद्गम स्थल है। इसकी स्थापना पूर्व मद्रास और कोलकाता विश्वविद्यालयों के साथ 1857 में की गई थी और इसकी ऐसे अनेक नेताओं को शिक्षित करने में प्रमुख भूमिका थी जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलवाई।
डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर, महादेव गोविंद रानाडे, रामकृष्ण गोपाल भंडारकर, मंगेश वागले, वामन अबाजी मोदक ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी और हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसी संस्थान से मैट्रिक तक पढ़ाई की थी। आज स्नातक बनने जा रहा प्रत्येक विद्यार्थी उन महान नेताओं और शिक्षाविदों के समूह में शामिल हो रहा है जिन्होंने इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। मैं, आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं। आज के दिन आप न केवल अपने बल्कि अपने माता-पिता, परिवार और शिक्षकों के स्वप्न पूरे कर रहे हैं।
मुंबई विश्वविद्यालय को अनेक परोपकारी और हितकारी लोगों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है जिन्होंने इस विरासती दीक्षांत हॉल की विशिष्ट और शाश्वत भव्यता में योगदान दिया है। इसका रंगीन कांच का काम और मेहराबें मौन सुन्दरता बिखेरती हैं और यह यहां उपस्थित हम सभी के मन में ज्ञान के प्रति आदर को बढ़ाते हैं। मैं समझता हूं कि फोर्ट परिसर विश्व के अपनी तरह के सर्वाधिक सुन्दर परिसरों में से एक है। यह इतिहास और परम्परा के सभी रूपों के प्रति विश्वविद्यालय की निष्ठा का प्रतीक है।
वर्षों के दौरान विश्वविद्यालय ने अपने संबद्ध संस्थानों और कॉलेजों की एक मातृ संस्था के रूप में गहरी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इसने वीरमाता जीजाबाई प्रौद्योगिकी संस्थान, सेंट जेवियर कॉलेज, एस.पी. इंजीनियरिंग कॉलेज तथा सोमैय्या ट्रस्ट के अंतर्गत कॉलेजों के समूह जैसी विख्यात संस्थाओं को विकसित होने में मदद देने और उन्हें स्वायत्ता प्रदान करने में उल्लेखनीय योग्यता दर्शाई है। इसका अपना विभाग, रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान, अब एक डीम्ड विश्वविद्यालय है।
मुंबई नगर ने अपने आसपास शिक्षा के वातावरण को तैयार करने का प्रयास किया और मुंबई विश्वविद्यालय ने आगे बढ़कर गंभीरता और तत्परता के साथ अपना कर्तव्य निभाया है।
आज इसके अंतर्गत 667 से ज्यादा सम्बद्ध कॉलेज और संस्थान हैं जिनमें 6.5 लाख से ज्यादा विद्यार्थी हैं। इसमें 57 विभाग हैं जिनके अंतर्गत मानविकी, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, वाणिज्य, विधि आदि विभिन्न विषय हैं।
मुंबई के विकास के साथ-साथ मुंबई विश्वविद्यालय ने भी विकास किया है। इसके पास कोंकण तट से लेकर भीड़ भरे मुंबई महानगर की सीमाओं तक फैले परिसर और उप-परिसर हैं जो सुदूर ठाणे जिले तक हैं। इससे शहरी और ग्रामीण दोनों नागरिकों की पहुंच मुंबई विश्वविद्यालय तक हुई है और वे इसमें प्रवेश ले पाते हैं।
मुंबई विश्वविद्यालय का एक शानदार इतिहास रहा है और इसे भारत के भविष्य के निर्माण के प्रति एक बार फिर स्वयं को समर्पित करना चाहिए। भारत के युवा अब शिक्षा प्राप्त करना और समाज में उपयोगी भूमिका निभाना चाहते हैं इसलिए यह और भी जरूरी है कि विश्वविद्यालय प्रासंगिक ज्ञान और व्यावहारिक कौशल प्रदान करने के लिए स्वयं को पुन: तैयार करें।
हमारे राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘सच्ची शिक्षा वह है जो आपकी सर्वोत्तम क्षमता को सामने लाए। क्या मानवता की पुस्तक से बेहतर कोई और पुस्तक हो सकती है?’’ आज जब हमारे युवा पारम्परिक मूल्यों और पश्चिमी सभ्यता के बीच फंसकर नैतिक दुविधा का सामना करते हैं, तो मानवता की पुस्तक पढ़ने का बापू का उपदेश इन शंकाओं को दूर कर सकता है। एक बार मानवता की पुस्तक को आत्मसात् करने के बाद, समाज के बहुत से मतभेद और द्वन्द्व खुद ही समाप्त हो जाएंगे।
यदि भारत को वैश्विक शक्तियों के साथ मंच पर विराजमान होना है तो उसे अपनी युवा पीढ़ी को संकुचित होते विश्व के लिए तैयार करना होगा, जिसे ज्ञानवान और सक्षम बनकर तथा पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों के प्रति संवेदनशील रहकर संसाधनों और उत्तरदायित्वों में भागीदारी करनी होगी।
विश्वविद्यालयों को उच्च शिक्षा के प्रहरी की बजाय समाज को समर्थ बनाने में मददगार बनना होगा। हमारे युवाओं को महान राष्ट्र को द्रुत गति से आगे बढ़ाने के लिए सशक्त बनाना होगा।
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि मुंबई विश्वविद्यालय ने नई प्रौद्योगिकियों और अग्रणी विचारशीलता पर ध्यान केन्द्रित किया है। इसने नैनो टैक्नोलॉजी केन्द्र जैसे नए केन्द्र आरंभ किए हैं तथा सतत् विकास प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों के क्षेत्र में नए अंतरराष्ट्रीय सहयोग किए हैं। विकासशील विश्व द्वारा एक दूसरे को और अपनी-अपनी विशेष क्षमताओं को समझने, जलवायु परिवर्तन और संधारणीयता के सम्बन्ध में नई विचारशीलता पैदा करने के लिए ऐसी अधिक से अधिक पहल करने की जरूरत है।
उपाधि और सम्मान करने के लिए यहां एकत्रित आप लोगों को, मैं याद दिलाना चाहूंगा कि शिक्षा का उद्देश्य एक बढ़िया नौकरी या आय प्राप्त करना नहीं बल्कि प्राप्त ज्ञान को राष्ट्र व मानवता की सेवा के लिए प्रयोग करना है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आप सभी मानवता के प्रति परम उत्साह और प्रेम प्रदर्शित करेंगे ताकि हमारी भावी पीढ़ी को एक बेहतर विश्व उपहार में दिया जा सके।
स्मार्ट फोन और टेबलेट कम्प्यूटर के इस युग में विचार चिंतन की गति से भी तेज दौड़ते हैं। हम सभी के लिए विश्व के घटनाक्रमों की अद्यतन जानकारी रखना जरूरी है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई कि मुंबई विश्वविद्यालय ने बार कोडिंग और प्रक्रियाओं के सुधार के लिए संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग के जरिए अपनी परीक्षा प्रौद्योगिकी में दूरगामी बदलाव शुरू किए हैं।
वह दिन दूर नहीं है जब हम ज्ञान और शिक्षण तथा कौशल मूल्यांकन के अबाध नेटवर्क पर आधारित उच्च शिक्षा प्रणाली की शुरुआत के साक्षी बनेंगे। इसके लिए, अध्यापन और शिक्षण वातावरण में मूलभूत बदलाव लाना होगा।
लिखित सामग्री द्वारा व्याख्यान देना और विचार प्रस्तुत करना अब शिक्षण परिवेश के लिए गौण होने जा रहा है। अब प्रोफेसर, लेक्चरर और शिक्षक बहुविध प्रौद्योगिकी मंचों और तरीकों के जरिए विचार सहायकों के रूप में सामने आएंगे। इसका अर्थ यह है कि शिक्षक समुदाय को तात्कालिक भविष्य के लिए फिर से अध्ययन करना होगा, फिर से जुड़ना होगा और पुन: प्रशिक्षण हासिल करना होगा।
इसी के साथ, उन्हें महात्मा गांधी के उन शब्दों को ध्यान में रखना चाहिए जो उन्होंने 1942 में सेवाग्राम में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहे थे, ‘‘विद्यार्थियों के साथ घनिष्ठता स्थापित करने वाला अध्यापक उन्हीं में से एक हो जाता है, उन्हें सिखाने से ज्यादा उनसे सीखता है। एक सच्चा अध्यापक स्वयं को अपने विद्यार्थियों का विद्यार्थी समझता है। यदि आप इस प्रवृत्ति के साथ अपने विद्यार्थियों को पढ़ाएंगे, तो आपको उनसे ज्यादा लाभ होगा।’’
मैं, मुंबई नगर और महाराष्ट्र सरकार से आग्रह करता हूं कि वे इस नए भविष्य की तैयारी और तत्परता, अधिक सक्रियता से करें। जिस प्रकार, शुरुआती वर्षों के दौरान, विश्वविद्यालय के निर्माण और विकास में सहयोग के लिए कुछ परोपकारी लोग आगे आए थे, उसी प्रकार, महाराष्ट्र राज्य और मुंबई के नागरिकों को और अधिक धनराशि जुटाने के तरीकों तथा औद्योगिक घरानों, अन्य विश्वविद्यालयों और केन्द्रीय सरकार के निकायों के साथ साझीदारी करने के लिए आगे आना होगा।
भारत ने विगत कुछ दशकों के दौरान बदलाव, चुनौतियों और आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम एक पंथनिरपेक्ष, विविधतापूर्ण और बहुलवादी समाज बनने की क्षमता दर्शाई है। ऐसा, शिक्षा में इसकी स्थायी आस्था और विश्वास के कारण संभव हुआ है। भारत का, तथा एक महान और शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में जिस विश्व का यह नेतृत्व करने की उम्मीद करता है, उसका भविष्य इसके युवाओं के हाथों में है। युवा आबादी का लाभ उन विश्वविद्यालयों और संस्थानों के माध्यम से उठाया जा सकता है जो सुदूर शिक्षण वातावरण बनाने के प्रति वचनबद्ध हैं। प्रत्येक महत्त्वाकांक्षी विद्यार्थी तक विश्वविद्यालय को पहुंचना चाहिए न कि विद्यार्थी को विश्वविद्यालय तक।
अंत में, मैं आपको शिक्षा की भूमिका और प्रासंगिकता के बारे में स्वामी विवेकानन्द का कथन याद दिलाना चाहूंगा। उन्होंने कहा था, ‘‘जो शिक्षा जीवन के संघर्ष के लिए जन समूह को तैयार करने में मदद नहीं करती, जो चरित्र की शक्ति, परोपकार की भावना और सिंह जैसा साहस पैदा नहीं करती, उसे शिक्षा कहने का क्या फायदा?’’ हमें उनके गूढ़ शब्दों पर चिंतन करना चाहिए और शिक्षा के प्रति अपने विचारों और नज़रिए में बदलाव लाना चाहिए।
मुंबई विश्वविद्यालय के आप सभी स्नातक उन शिक्षकों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों के प्रति साक्षात् सम्मान हैं जिन्होंने वर्षों के दौरान विश्वविद्यालय को वर्तमान प्रतिष्ठा दिलवाने के लिए नि:स्वार्थ कार्य किया है। मैं उन सभी विद्यार्थियों को बधाई देता हूं जिन्हें विश्वविद्यालय ने डिप्लोमा, डिग्री और प्रमाणपत्र प्रदान किए हैं। यह अवसर इस बात की फिर से पुष्टि करता है कि आपने बाहरी दुनिया का सामना करने के लिए ज्ञान और दक्षता अर्जित की है।
मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप एक सकारात्मक प्रवृत्ति और जोरदार उत्साह के साथ जीवन पथ पर आगे बढ़ें। प्रशिक्षण और शिक्षा के अतिरिक्त, चरित्रबल, मानसिक शक्ति और उद्देश्य की सबलता आपके काम आएंगे। मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि अपने ज्ञान का प्रयोग करना आपके हाथ में है परंतु राष्ट्र व मानवता की सेवा के लिए प्रयोग किया गया ज्ञान सदैव ईश्वर की इच्छा के करीब होता है।
मैं, मुंबई विश्वविद्यालय को इसके प्रयासों के लिए शुभकामनाएं देता हूं और इसे एक विश्व स्तरीय संस्था बनने के लिए भरसक प्रयास करने का आग्रह करता हूं। धन्यवाद, जय हिंद!