पोलर सेटेलाइट लॉच वेहिकल (पीएसएलवी)-सी 20 सरल मिशन के प्रक्षेपण के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश : 25-02-2013

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मुझे आज छह उपग्रहों सहित, पोलर सेटेलाइट लांच वेहिकल (पीएसएलवी)-सी 20 सरल मिशन के उल्लेखनीय प्रक्षेपण का अवलोकन करके प्रसन्नता हुई। कार्यक्रमों की सतर्कतापूर्वक कार्यान्वित श्रृंखला के सफल समापन और मिशन के पूर्व प्रक्षेषण की अथक तैयारी के सम्पन्न होने के बाद खुशी मनाने के लिए यहां एकत्रित विशिष्ट वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के बीच होना एक सुखद अहसास है।

मैं, इस मिशन के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि आज प्रक्षेपित सरल अंतरिक्ष यान योजनानुसार कार्य करेगा और अभिकल्पना के अनुसार प्रदर्शन करेगा तथा समुद्र स्थलाकृति विज्ञान, तटीय ऐल्टिमेट्री, समुद्री धारा निगरानी और विश्वव्यापी पशु प्रवासन जैसे अध्ययन के अभीष्ट अनुप्रयोगों को पूर्ण करेगा। पी एस एल वी हमारे देश का एक जाना-माना नाम हो गया है और यह मिशन, इस प्रक्षेपण यान की प्रामाणिकता, सटीकता और विश्वसनीयता के जरिए इस प्रतिष्ठा की एक बार फिर पुष्टि करेगा।

विदेशों के साथ भारत के द्विपक्षीय सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण स्वरूप अतंरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में है। मैं इस संयुक्त मिशन में हार्दिक भागीदारी के लिए फ्रेंच अतंरिक्ष एजेंसी, सेंटर नेशनल डेट्यूडस स्पेस्यिल्स को बधाई देता हूं। यह मिशन दशकों से दो राष्ट्रों के बीच पोषित भारत-फ्रेंच साझीदारी की साझी भावना का प्रतीक है।

देवियो और सज्जनो, जिज्ञासा मानव की दूसरी प्रवृत्ति है और मनुष्य में हमारी धरती मां के पार के रहस्यों को उजागर करने की आकांक्षा रही है। अज्ञात को जानने की इच्छा ने हम में जिज्ञासा की वैज्ञानिक प्रवृत्ति के समावेश की प्ररेणा प्रदान की है।

भारत का अतंरिक्ष कार्यक्रम लगभग आधी शताब्दी पुराना है, यद्यपि खगोल-विज्ञान की हमारी समृद्ध विरासत आर्यभट्ट और भास्कर काल जितनी पुरानी है। डॉ. विक्रम साराभाई, डॉ सतीश धवन, प्रो. यू.आर. राव, प्रो. कस्तूरी रंगन आदि जैसी हस्तियों के नेतृत्व में हमारे प्रतिभावान अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के कारण, हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम ने वर्षों के दौरान उपग्रह, प्रक्षेपण यानों की अभिकल्पना और विकास और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों के मामले में देश को स्वदेशी रूप से क्षमतावान बनाने में सफलता अर्जित की है।

यह जानकर प्रसन्नता होती है कि आत्मनिर्भरता के पथ पर, इसरो ने प्रौद्योगिकी स्तर तथा कार्यनीतिक साजो-समान के स्वदेशीकरण को बढ़ाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। आज भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली, एशिया प्रशांत क्षेत्र में संचार उपग्रहों का सबसे बड़े समूह का गौरवपूर्ण भण्डार है। हमारी प्रक्षेपण क्षमता को पूरे विश्व ने माना है और इसरो लगातार अन्य देशों के उपग्रहों का प्रक्षेपण कर रहा है।

देवियो और सज्जनो, हमारे राष्ट्र की प्रगति के सम्मुख बहुत सी चुनौतियां हैं और प्रौद्योगिकी द्वारा प्रमुख भूमिका निभाए बिना इनका सफलतापूर्वक सामना नहीं किया जा सकता। चाहे सतत् विकास का विकल्प प्रस्तुत करना हो, चाहे एक सुदृढ़ कृषि सेक्टर की स्थापना करनी हो, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना हो, ग्रामीण सेक्टर का निर्माण आदि करना हो, यह सभी के लिए सच है। हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम सदैव एक अनुप्रयोग उन्मुख पहल रही है और इसलिए यह हमारी विकास प्रक्रिया का एक सक्षम साझीदार रही है।

हमारे प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था, ‘‘विज्ञान ही भूख और गरीबी, अस्वच्छता और निरक्षरता, अंधविश्वास और प्राय: जड़ प्रथाओं और परंपराओं, बर्बाद हो रहे विशाल संसाधनों, तथा भूख से त्रस्त लोगों... के एक समृद्ध देश की समस्याओं का समाधान कर सकता है। आज विज्ञान की अनदेखी करने का जोखिम वास्तव में कौन उठा सकता है? हमें हर एक मोड़ पर इसकी सहायता लेनी होगी... भविष्य विज्ञान का है और उन लोगों का है जो विज्ञान को अपना मित्र बना लेते है।’’

हमारी वैज्ञानिक प्रगति इसी विचारधारा पर आधारित है। हमने सरकार को, विशेष कर शहरी केंद्रों से दूर तथा देश के सुदूर इलाकों में रहने वाले लोगों के निकट लाने के लिए अंतरिक्ष अनुप्रयोगों को इस्तेमाल किया है। दूर-शिक्षा और दूर-चिकित्सा जैसे अंतरिक्ष आधारित अनुप्रयोगों से हमारी ग्रामीण आबादी की पहुंच इन बुनियादी जरूरतों तक हो पाई है।

सुदूर स्थलों पर जरूरतमंद और पिछड़ी जनता को स्वास्थ्य देखभाल सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए दूर-चिकित्सा परियोजना से इनसैट उपग्रहों के माध्यम से स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों को नगरों और शहरों के सुपर स्पेशियलिटि अस्पतालों के साथ जोड़ना संभव हो गया है। मुझे बताया गया है कि प्रतिवर्ष 1.5 लाख लोग दूर-चिकित्सा सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।

एडूसैट उपग्रह, गैर-औपचारिक शिक्षा प्रणाली सहित, हमारे स्कूलों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों में दी जाने वाली शिक्षा में बदलाव लाया है। सहक्रियात्मक शिक्षा ने विशेष रूप से पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले हमारे विद्यार्थियों तक शिक्षा की पहुंच को संभव बना दिया है।

कृषि, बागवानी, मात्स्यिकी, पशुधन, जल संसाधन, कम्प्यूटर साक्षरता, सूक्ष्म वित्त और व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में लोगों के प्रशिक्षण के लिए कृषि विश्वविद्यालय, कौशल विकास संस्थान और अस्पताल जैसे संसाधन केंद्रों को जोड़ने वाले ग्राम संसाधन केंद्र संबंधी पहल सराहनीय है। पांच लाख से ज्यादा लोगों ने इस सुविधा का लाभ उठाया है और मुझे विश्वास है कि बहुत से दूसरे लोग भी भविष्य में इसका लाभ उठाएंगे।

हमारे किसानों को मौसम के पूर्वानुमान तथा टेली-कृषि संबंधी पहलों से बहुत लाभ पहुंचा है जो कि उन्हें खेती की विभिन्न पद्धतियां और तकनीकें सिखाते हैं। हमारे प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, हमारे दूर संवेदी क्षमताओं पर काफी निर्भर रहा है।

प्रौद्योगिकी के ऐसे सामाजिक रूप से प्रासंगिक उपयोग, जो हमारे देश के विकास के लक्ष्यों के अनुरूप हों, जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी हैं। हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हम अधिकाधिक नवान्वेषण और परिष्करण के प्रयासों द्वरा अंतरिक्ष तक पहुंचने की लागत में कमी लाएं।

देवियो और सज्जनो, इसरो पर हमारे देशवासियों को बहुत विश्वास है। यह विश्वास तथा भरोसा इस संगठन पर पुन: यह जिम्मेदारी डाल देता है कि वह अपने कार्य निष्पादन के स्तर में सुधार लाए, नई ऊँचाइयां प्राप्त करे तथा नए क्षितिजों की खोज करे।

पिछले तीन वर्षों के दौरान, इसरो ने कारटोसेट-2बी, मेघाट्रोपिकस, रिसेट-1 तथा कई पीएसएलवी प्रक्षेपणों जैसे 15 मिशनों का प्रभावशाली प्रक्षेपण किया है।

पूरा राष्ट्र स्वेदशी क्रायोजेनिक चरण सहित, सेटेलाइट लाँच वेहिकल की सफल उड़ान का बेसब्री से इंतजार कर रहा है। जीएसएलवी मार्क 3 का योजनाधीन प्रायोगिक मिशन, देश में भारी वजन क्षमता की अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली के विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है।

हमारे चंद्रायण मिशन ने देश का गौरव बढ़ाया है। मुझे यह भी विश्वास है कि इस वर्ष प्रक्षेपण के लए निर्धारित, द मार्स आरबिटर मिशन नामक प्रथम भारतीय अन्तर-ग्रहीय परीक्षण सफल रहेगा तथा इससे भारत ऐसे कुछ ही राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो जाएगा जिन्होंने ऐसा कमाल कर दिखाया है।

देवियो और सज्जनो, भारत का विश्व समुदाय के बीच अपना उचित स्थान दिलाने के लिए हमें नवान्वेषण और प्रौद्योगिकी प्रगति को प्रोत्साहन देना होगा। इसरो के इस प्रकार के आंदोलन का अग्रणी बनाना चाहिए।

मुझे विश्वास है कि अपने योग्य, ऊर्जाशील तथा समर्पित पेशेवरों के साथ इसरो भावी वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय चुनौतियों का सामना करेगा तथा नवान्वेषण और सर्जनात्मकता का प्रमुख केन्द्र बना रहेगा। मैं इसरो को इसके भावी मिशनों में सफलता की कामना करता हूं। अंत में मैं यह कहते हुए अपनी बात समाप्त करना चाहूंगा कि अंतरिक्ष में भारत के प्रयास विश्व को हैरत में डालते रहेंगे।

धन्यवाद। 
जय हिन्द!