कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम के प्लेटिनम जयंती समारोह के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

तिरुअनंतपुरम, केरल : 18-07-2014

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1. मुझे केरल के सबसे पुराने इंजीनियरी कॉलेज, कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम के प्लेटिनम जयंती समारोह का उद्घाटन करने के लिए आपके बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है।

2. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम देश के इंजीनियरी शिक्षा में अग्रणी संस्थानों में से है। 1939 में स्थापित इस संस्था की ख्याति और प्रतिष्ठा का श्रेय पूर्व ट्रावनकोर के महाराजा बलराम वर्मा की दूरदृष्टि तथा राज्य द्वारा प्रदत्त सहयोग; कॉलेज की स्थापना के समय से कार्यरत शिक्षकों और विद्यार्थियों के परिश्रम; हजारों पूर्व विद्यार्थियों के निरंतर सहयोग तथा इसके विद्यार्थियों के समर्पण को जाता है। 80 एकड़ के हरित क्षेत्र में फैले हुए इस संस्थन को देखना एक सुखद अहसास है। अपने चार हजार विद्यार्थियों और तीन सौ संकाय सदस्यों के साथ, कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम डॉक्टरेट कार्यक्रमों के अलावा आठ स्नातक और 23 स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान कर रहा है। हमारे देश के एक महत्त्वपूर्ण इंजीनियरी संस्थानों में गिना जाने वाला, कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम राष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले राज्य सरकार के संस्थान के श्रेष्ठ उदाहरण के रूप में उभरा है।

देवियो और सज्जनो,

3. किसी भी राष्ट्र की सौम्य शक्ति के निर्माण में शिक्षा केंद्रीय भूमिका निभाती है। नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘शिक्षा एक ऐसा सबसे शक्तिशाली अस्त्र है जिसका प्रयोग आप विश्व को बदलने के लिए कर सकते हैं।’ इतिहास इस सच्चाई का साक्षी है कि महान राष्ट्रों ने एक योग्य कार्यबल की ताकत से प्रगति की है। हम भारत को विश्व में अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए उच्च विकास कार्यनीति पर चल रहे हैं। इसके लिए ज्ञानजीवी सेक्टरों से महत्त्वपूर्ण सहयोग अपेक्षित है। अर्थव्यवस्था के लिए कुशल कार्मिक तैयार करने वाली एक महत्त्वपूर्ण अकादमिक शाखा, इंजीनियरी है। यह अध्ययन का वह क्षेत्र है जो हमारे विकासात्मक लक्ष्यों को पूर्ण करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। इसलिए हमारे इंजीनियरी कॉलेजों पर ऐसे अत्यंत दक्ष इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को तैयार करने का महत्त्वपूर्ण दायित्व है जो इस पेशे तथा देश के लिए महत्त्वपूर्ण पूंजी बन सकें।

4. इंजीनियरी एक महत्त्वपूर्ण विधा है और उच्च शिक्षा की कुल प्रवेश संख्या में इसका हिस्सा एक चौथाई है। भारत में इंजीनियरी में वार्षिक प्रवेश संख्या ग्यारहवीं पंचवर्षीय अवधि के दौरान तिगुनी होकर इस अवधि के अंत तक 55 लाख हो गई है। हाल के वर्षों में बहुत से इंजीनियरी कॉलेज आरंभ हुए हैं तथा मौजूदा कॉलेजों की क्षमता बढ़ी है। आने वाले वर्षों में और अधिक संस्थानों की परिकल्पना की गई है। हमारे संस्थानों के समक्ष अपने स्तर को गिराए बिना वैज्ञानिक और तकनीकी जनशक्ति का विशाल संवर्ग तैयार करना एक अग्नि परीक्षा है।

5. इंजीनियरी कॉलेजों सहित, हमारे उच्च शैक्षिक संस्थाओं को गुणवत्ता की यात्रा में कुछ और दूरी तय करनी होगी। बहुत से प्रतिभावान विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेशों को प्राथमिकता देते हैं। हमें अपने देश में ही विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करके उन्हें यहीं रोकना होगा। दुर्र्भाग्यवश, प्रतिभावान विद्यार्थियों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकने वाले उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले संस्थान बहुत कम हैं। यह चिंताजनक है कि प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों के मुताबिक भारत का एक भी इंजीनयरी संस्थान अथवा विश्वविद्यालय विश्व के सर्वोच्च दो सौ विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं है। यह प्राचीनकाल में विद्यमान उच्च शिक्षा क्षेत्र के बिल्कुल विपरीत है। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदांतपुरी जैसी शिक्षा पीठों का ईसापूर्व छठी शताब्दी से लेकर लगभग अठारह सौ वर्षों तक विश्व की उच्च शिक्षा प्रणाली पर दबदबा था। तक्षशिला चार विभिन्न सभ्यताओं—भारतीय, चीनी, यूनानी और फारसी के विद्वानों का संगम स्थल था। ईसा की तेरहवीं शताब्दी में अपने पतन से पूर्व कुशल प्रबंधन द्वारा हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय अत्यंत ऊंचे शिखर पर पहुंच गए थे। आज हम अनेक राष्ट्रों से पीछे हैं।

देवियो और सज्जनो,

6. इस प्रमुख स्थान को पुन: प्राप्त करना संभव है परंतु इसके लिए हमारी शैक्षिक प्रणाली में चहुंमुखी बदलाव लाना आवश्यक है। समग्र मूल्यांकन के लिए पाठ्यक्रम के नियमित संशोधन तथा उन्नयन के लिए पाठ्यक्रम सुधार, विकल्प-आधारित क्रेडिट प्रणाली की शुरुआत तथा परीक्षा सुधार होने चाहिए। उत्कृष्टता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना चाहिए। एक या दो विभाग की, जिनमें किसी संस्थान की विशेष क्षमता हो, उत्कृष्टता केंद्र के रूप में बढ़ावा देना चाहिए। पाठ्यक्रम और अनुसंधान पर उद्योग विशेषज्ञों के नियमित विचार प्राप्त करने के लिए उद्योग के साथ औपचारिक सम्पर्क स्थापित किए जाने चाहिए। उद्योग के रुझान के आधार पर इंजीनियरी कार्यक्रमों का आवधिक मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

7. शासन तंत्र से पारदर्शिता और तीव्र निर्णय में सहयोग मिलना चाहिए। पूर्व विद्यार्थियों को जोड़कर उनके अनुभव और विशेषज्ञता को संस्थान के समग्र विकास के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम के पूर्व विद्यार्थियों का, जिनमें से अनेक प्रख्यात वैज्ञानिक, तकनीकीविद् तथा अफसरशाह हैं, एक मजबूत नेटवर्क है। इसका इस्तेमाल संस्थान के लाभ के लिए किया जाना चाहिए। इंजीनियरी शिक्षा में अग्रणी संस्थान होने के नाते मानदण्ड स्थापित करने में आपकी एक अहम भूमिका है।

8. भारतीय संस्थानों के बीच में तथा विदेशी संस्थानों के साथ बौद्धिक सहयोग से ज्ञान सर्जन और आदान-प्रदान को गति मिल सकती है। अन्य ज्ञान-सर्जक संस्थानों के साथ मिलकर प्रमुख क्षेत्रों में विशेषज्ञता पैदा की जा सकती है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी समाधानों के संदर्भ में, यह अत्यंत आवश्यक है कि हमारे संस्थान वर्तमान ज्ञान-नेटवर्क में शामिल हों।

9. भारत हाल ही में, 17 हस्ताक्षरकर्ताओं के प्रमाणन निकायों के बीच हुए इंजीनियरी उपाधियों के एक करार, वाशिंगटन समझौते में एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल हुआ है। इससे विदेश में भारतीय इंजीनियरी की उपाधियों को मान्यता तथा भारतीय इजीनियरों की बेहतर संभावनाओं की दिशा में महत्त्वपूर्ण फायदे होंगे। हमारे इंजीनियरी कॉलेजों का दायित्व है कि वे आवश्यक प्रमाणन मानदण्डों का पालन करें।

देवियो और सज्जनो,

10. भारतीय संस्थानों को मात्र शिक्षण संस्थान बनने के बजाय ज्ञान सर्जन करने वाले संस्थान बनने की दिशा में विकसित होना चाहिए। इसके लिए संस्थागत सहयोग व्यवस्था के जरिए अनुसंधान प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। किसी भी संस्थान की अनुसंधान गतिविधियों को उस क्षेत्र के लिए विशिष्ट मुद्दों और समस्याओं पर केंद्रित किया जाना चाहिए। अनुसंधान में मौजूद संसाधनों के उपयोग में बेहतर दक्षता प्राप्त करने के तरीके खोजने का प्रयास होना चाहिए। संसाधनों के बढ़ते अभाव के समक्ष, प्रौद्योगिक घटनाक्रमों की गति से विकास निश्चित रूप से प्रभावित होगा। इसे जानते हुए दुनियाभर की सरकारों ने नवान्वेषण को प्रोत्साहित करने के लिए एकजुट प्रयास किया है। भारत में, हमने 2010-20 के दशक को नवान्वेषण को समर्पित किया है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति 2013 में नवान्वेषण-आधारित विकास को आवश्यक बताया गया है। इस नीति में हमारी अनुसंधान और विकास प्रणाली को सही आकार देने की जरूरत दर्शाई गई है।

11. इंजीनियरी संस्थान नवान्वेषण की उपजाऊ भूमि हैं। उन्हें विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवान्वेषण नीति 2013 को सफल बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। उन्हें जमीनी नवान्वेषकों को अपने विचारों को ऐसे उपयोगी उत्पादों में विकसित करने के लिए प्रेरणा देनी चाहिए जो आम आदमी को फायदा पहुंचाएं। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम के प्रौद्योगिकी प्रोत्साहन केन्द्र तथा इंजीनियरी अनुसंधान और विकास केन्द्र द्वारा प्रदान की जा रही सुविधाओं से अनुसंधान को बढ़ावा तथा नवान्वेषण को प्रोत्साहन हासिल हो रहा है। मुझे बताया गया है कि इंजीनियरी विज्ञान में महत्त्वपूर्ण खोज को प्रेरित करने के लिए कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम परिसर के भीतर अनुसंधान पार्क स्थापित किया जा रहा है। कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम से उपाधि प्राप्त करने वाले तीस प्रतिशत विद्यार्थी उच्च अध्ययन तथा अनुसंधान कार्यक्रमों में दाखिला लेते हैं, यह तथ्य दर्शाता है कि यह संस्थान अपने विद्यार्थियों में अनुसंधान के प्रति कितनी रुचि जाग्रत करने में सफल रहा है। यह जानकर खुशी होती है कि कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, त्रिवेंद्रम के संकाय सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में प्रस्तुत शोध आलेखों को उनकी अकादमिक उत्कृष्टता के लिए जाना जाता है।

12. इस संस्थान ने अपनी अब तक की यात्रा में विद्यार्थियों की अनेक पीढ़ियों को उल्लेखनीय शिक्षा प्रदान की हैं। इसने ऐसे उत्कृष्ट इंजीनियर तैयार किए हैं जिन्होंने अपने संस्थान और देश को गौरवान्वित किया है। 75 वर्ष पूर्ण होने का अवसर, इस संस्थान की विरासत को आगे बढ़ाने तथा महान सफलता प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है, इस पर विचार करने का एक अवसर है। मुझे विश्वास है कि प्लेटिनम जयंती समारोह के अवसर पर आयोजित सम्मेलनों, महोत्सवों, प्रदर्शनियों तथा गांव के अंगीकरण जैसे कार्यकलापों द्वारा विकास के अगले चरण की शुरु करने के लिए पर्याप्त विचार प्रेरणा मिलेगी। मैं समारोहों के सफल संचालन के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं। मैं आपके उज्ज्वल भविष्य की भी कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिंद!