भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने उड़ीसा मंच द्वारा आयोजित गैर रिहायशी उड़ीयाई सम्मेलन के उद्घाटन पर अभिभाषण

नई दिल्ली : 06-01-2017

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speech1. मेरे लिए उड़ीसा मंच और उड़ीसा सरकार द्वारा आयोजित प्रवासी उड़ीया सम्मेलन, 2017 में उपस्थित होना आनंददायक अवसर है। यह एक सराहनीय,प्रशंसनीय और तथाकथित उद्देश्य में प्रशंसनीय है।

2. मित्रो,कलिंग के महायुद्ध जिसमें उग्र हिंसक,राजा को अशोका ने बदल दिया। अशोका- महान मिशनरी में बदल दिया,उसमें उड़ीसा को सबसे पहले श्रेय जाता है। स्वतंत्रता से ग्यारह वर्ष पूर्व1936 में भाषा के आधार पर सृजन किए जाने वाला यह पहला राज्य है। यह रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया को अपनाने वाला संघ का प्रथम राज्य था जिसमें पूर्व रियासतों के स्वैच्छिक लोकतंत्रीकरण और भारतीय संघ में परिवर्तित हुआ।

3. इस संबंध में सरदार बल्लभ भाई पटेल को उद्धृत करना ठीक होगा,जिन्होंने कहा ‘मुझे एकीकरण की जुड़वा प्रक्रिया और जनतंत्रीकरण को आरंभ करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसने सुदुर उड़ीसा में एक छोटी सी शुरुआत करके पूरे उपमहाद्वीप में फैल गया। भारत के जनतंत्रीकरण के विषय पर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उड़ीसा के नेताओं के बारे में बात न करना मेरे लिए भूल साबित होगी। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और महात्मा गांधी,जो उड़ीसा और भारत के लिए उनकी निःस्वार्थ सेवा और बलिदान से अभिभूत हो गए थे,पर गहरा प्रभाव डालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। ’

4.ये विशेषताएं उत्कमल मणि गोपाल बंधु दास के योगदान से सर्वोत्तम रूप से उदाहरणीय हैं जिन्हें एक दयालु बागी के रूप में वर्णित किया गया है जो केवल चावल और दाल पर निर्भर थे।1921 में उड़ीसा में उनकी यात्रा के दौरान गांधीजी की उनपर दृष्टि पड़ने पर उन्होंने उनसे पूछा कि क्या ऐसे अपर्याप्त भोजन से उनपर बूरा प्रभाव नहीं पड़ेगा?गोपाल बंधु ने उत्तर दिया कि वे इस प्रकार की मंचना स्वराज पाने के लिए इच्छुक हैं। गांधीजी ने अपने लेख में‘माई उड़ीसा टूर’में इस दृढ़ विश्वास की प्रशंसा की और लिखा कि यदि वे भरत में100 गोपाल बंधुओं को एकत्र कर पाए तो भारत को मुक्त कर सकेंगे।

5.वास्तव में स्वराज की सामान्य प्रवृति अपनी समग्र महिमा में पूर्व के इस मोती का मार्ग दर्शन करती रही हैं जिसमें भारत निर्माण को अनेक तरह से योगदान दिया।

6.राज्य के लोगों ने शेष देशवासियों को प्रेरित करते हुए एक गौरवशाली विरासत राज्य के लोगों की विरासत है। प्रवासी उड़ीया की झलक पाकर मेरा ध्यान राज्य के इतिहास की उस गहन काल की ओर चला जाता है। प्रवासी उड़ीया के उदाहरण उद्यमिता और व्यवसाय कौशल के उत्कृष्ट उदाहरण हैं जिनकी अब आवश्यकता है और पूरे भारत में उच्च वृद्धि और विकास के पंजीकरण के लिए इनका प्रयोग किया जाना चाहिए।

7.प्रवासी उड़ीयाओं की बात करते हुए मुझे सुप्रसिद्ध उत्कल गौरब मधुसुदन दास की याद आ रही है जिन्होंने अपने जीवन का व्यापक समय उड़ीसा के बाहर उड़ीसा को एक अलग राज्य के रूप में एकीकृत करने के लिए1903 में उत्कल आ मी लानी के रूप में सर्वप्रथम कदम उठाते हुए आंदोलन के अग्रणी के रूप में बिताया। उन्होंने ही महिलाओं के लिए प्रथम शैक्षिक संस्थान की स्थापना की जो1916 में मुंबई में सर्वप्रथम स्थापित महिला विश्वविद्यालय से काफी पहले1913 में कॉलेज बन गया। यह उस समय का एक मचान प्रयास और हमेशा का योग्य प्रयास था।

8.उनके प्रयासों से महिला कानून स्नातक कानूनी व्यवसाय में बार इन इंडिया के अभ्यास करने वाले सदस्य में प्रवेश कर सकी।1923 तक लीगल प्रेक्टीशनर एक्ट ने लॉ स्नातक महिलाओं को कानूनी अभ्यास करने के अनुमति नहीं दी थी। मधुसूदन दास ने लंदन के पीवी काउंसिल में एक याचिका दायर की और जन हित में महिलाओं के महिला कानूनी वकील बनने की अनुमति देने का समर्थन किया। यह शायद जनहित याचिका का पहला उदाहरण था। अंततः 1923में लीगल प्रेक्टीशनर एक्ट में संशोधन किया गया जिसमें महिला कानून स्नातक को वकील बनने की अनुमति दी गई।

9.इस प्रकार के अंतःदृष्टि उड़ीया नेताओं के शानदार योगदान पर प्रकाश डालती है जिन्होंने उड़ीसा और भारत के लिए व्यापक रूप से योगदान दिया।

10.आज भारत में वस्तुतः पूरे विश्व में उड़ीयाई सबसे आगे हैं,उन्होंने अपनी उत्कृष्टता और योग्यता के बलबूते पर भारत के प्रत्येक कोने में अपनी उपस्थिति दर्ज की है और उच्च शैक्षिक प्राप्तियों के आधार पर उत्कृष्टता प्राप्त की है। आज हमारे पास प्रवासी उड़ीयाई का बड़ा मूल है जो राजनीति,न्याय, पत्रकारिता,नौकरशाही और साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उत्कृष्टता के लिए जाने जाते हैं।

11.राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत नृत्य,संगीत और कला निष्पादन के असंख्य रूपों में प्रतिबिंबित होती है। उड़ीसा का कला,संस्कृति, कला,नृत्य और आर्किटेक्चर में आधिक्य का एक दीर्घ और समृद्ध इतिहास रहा है। हाल ही में अनेक उड़ीया कवि और साहित्यकारों ने साहित्य अकादमी,ज्ञानपीठ और अन्य राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। उड़ीसा को एक शास्त्रीय भाषा के रूप में अब मान्यता दिया जाना समीचिन है।

12.इसलिए मैं यह जानकर खुश हूं कि आप ‘उड़ीसा, एक सौम्य शक्ति’ के सत्र में योगदान दे रहे हैं जो इस क्षेत्र में उड़ीसा के सुदृढ़ता दर्शाएगा।

मुझे विश्वास है कि उड़ीसा और विश्व के अलग-अलग भागों से बड़ी संख्या में एकत्र हुए लोग विविध प्रतिभापूर्ण एकत्र कर पाएंगे और उड़ीसा और भारत की प्रगति विधि,विकास और आगे की प्रगति की के लिए अपनी क्षमताओं और विशेषताओं का उपयोग करेंगे। मुझे विश्वास है कि इस प्रवासी उड़ीया सम्मेलन ऐसे दृष्टिकोण को आगे ले जाएगा।

13.उड़ीसा के लोग जो राज्य और भारत से बाहर हैं और राज्य के आवासी भी हैं उन्हें एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाते हुए सरकार के साथ तत्काल और दूरगामी उपाय करने होंगे।

14.ऐसे समय में जब विश्व बिजली की तेजी से एकत्र हो रहा है,का लाभ उठाना चाहिए और उड़ीसा के भीतर और बाहर आगे के विकास और प्रगति के लिए तालमेल बिठाने के लिए प्रतिभाओं को एकत्र करना होगा।

15.इस संबंध में महसूस करता हूं कि यह सम्मेलन केवल उड़ीसा ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए एक ऐतिहासिक कदम है। रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के एक निकट मित्र,प्रसिद्ध सीएफ एंड्रीयूस ने एक सुविख्यात लेख स्पीरिट ऑफ उड़ीसा इन1927 लिखा। इस लेख के पहले पैरे में उन्होंने देखा कि यदि सेवा का पहला कृत्य प्रेम हो तो उड़ीसा की सेवा करना इतना आसान हो जाएगा जो शेष भारत के लोेगों में पहले कभी नहीं देखा गया था।

16.इन शब्दों के साथ मैं उड़ीसा और प्रावासी उड़ीयाई लोगों के साथ प्रवासी उड़ीया सम्मेलन, 2017 के आयोजन के अवसर पर जुड़ने में बेहद प्रसन्न हूं। मैं इस अवसर पर आप सबको बधाई देता हूं और इस सम्मेलन के सफलता की कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जयहिंद।