कला क्षेत्र फाऊंडेशन में प्रथम रुकमिणी देवी स्मृति व्याख्यान में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

चेन्नई, तमिलनाडु : 07-08-2013

Download : Speeches (202.5 किलोबाइट)

Speech by the President of India, Shri Pranab Mukherjee at the First Rukmini Devi Memorial Lecture at Kalakshetra Foundationमुझे, इस शाम प्रथम रुकमिणी देवी स्मृति व्याख्यान देने के लिए चेन्नै आकर प्रसन्नता हो रही है। कला क्षेत्र एक प्रभामय भूमि है। यह श्रीमती रुकमिणी देवी की संकल्पना के कारण पवित्र हो गई है। हमारी विरासत के सभी महान विषयों के दशकों के दौरान पालन करने के कारण यह और भी पवित्र हो गई है। यह न केवल सौंदर्य और दृश्यमान विरासत का प्रमाण है बल्कि शास्त्रीय कलाओं और गुरु शिष्य परंपरा की शिक्षा के लिए प्रतिष्ठित है।

कला क्षेत्र की स्थापना 1936 में रुकमिणी देवी द्वारा की गई थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत की अमूल्य कलागत परंपराओं को पुनर्जीवित करने की उनकी संकल्पना के शुरुआती समर्थकों में से थे। वास्तव में गुरुदेव बेसेंट मेमोरियल स्कूल, जो बाद में कलाक्षेत्र फाउंडेशन का हिस्सा बन गया, के आरंभिक संरक्षकों में से एक थे। कहा जाता है कि गुरुदेव भी कलाक्षेत्र नाम से इतने मुग्ध हो गए थे कि उन्होंने कहा था कि यदि शांतिनिकेतन स्थापित करते समय यह नाम उनके दिमाग में आ जाता तो अपने संस्थान का नाम यही रख लेते। बेसेंट मेमोरियल स्कूल के संरक्षक से पहले उनका सम्बन्ध अरुंडेल से था। वह, उनके और ऐनी बेसेंट द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति थे, जिनके 1913 में जॉर्ज अरुंडेल प्रधानाचार्य बनाए गए थे।

इस स्थान पर खड़े होकर, अन्य आड़ी तिरछी और गुंथी हुई दृश्यावलियां हमारे सामने आती हैं। तिरुवानमियूर आज जहां हम खड़े हैं, कभी तेजी से फैल रहे शहर की चहल-पहल से दूर मद्रास के बाहरी इलाके में था। श्रीमती रुकमिणी देवी की सतर्क दृष्टि के अधीन यह रेतीला क्षेत्र कला और शिल्प को बढ़ावा देने वाले हरे-भरे पारितंत्र में पल्लवित हो गया। तिरुवानमियूर के लिए जैसे कलाक्षेत्र है वैसे ही बोलापुर के लिए शांति निकेतन है। चेन्नै के लिए जैसे कला क्षेत्र है, कोलकाता के लिए वैसे ही शांति निकेतन है। वे शांति के घर हैं, कला के मंदिर हैं और मानवता के प्रकाश स्तंभ हैं।

उनकी स्थापना एकांतवास के लिए नहीं वरन् कलाओं की रक्षा तथा उनके विकास के लिए यह अनुकूल वातावरण प्रदान करने के लिए की गई थी। यहां रक्षा का तात्पर्य है जीवन के तीव्र चक्र से क्षण भर विराम। सर्जनात्मकता को, खामोशी के साथ-साथ, प्रकृति की उफनती सर्जनात्मक क्षमता के स्रोत से जुड़ने का अवसर, दोनों की ही जरूरत होती है और ये दोनों ही विशेषताएं शांति निकेतन और कलाक्षेत्र दोनों के मूल में है। प्रदर्शन कलाएं विश्वभर में प्रकृति के संसाधनों के क्षय तथा मौसमों के हस से अछूती नहीं रह सकती।

मौसम के लिए संस्कृत शब्द ऋतु, वैदिक संस्कृत शब्द ऋत से लिया गया है जिसका अर्थ है प्रवाह का क्रम या पथ। मानव विचारों की एकपुंजता और एकीकरण तथा सहस्राब्दियों के दौरान विचार, शब्द और गति की विशुद्धता से युक्त सौंदर्यबोध के उत्कर्ष ने शास्त्रीय संस्कृति की अनेक धाराओं को जन्म दिया है। इससे शास्त्रीय संस्कृति की धाराएं हमारे अतीत की कड़ी बन गई हैं। ये हमारी वर्तमान विचारधारा की नींव हैं और इसी युग से वे हमारे भावी कार्यों के मंच हैं।

हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब ऋतुएं बदल रही हैं और भौतिक वातावरण के साथ मानव की परस्पर क्रियाओं के संबंधों में परिवर्तित हो रहा है। अन्य कदमों के साथ-साथ हमें शास्त्रीय संस्कृति में ऋतुओं को बचाने के प्रयास करने चाहिए। कला क्षेत्र की स्थापना करते समय महान कलाकार और दूरदृष्टा श्रीमती रुकमिणी देवी उन कदमों की परिकल्पना के प्रति संवेदनशील थीं जिन्हें उन्हें और उनकी पीढ़ी के अन्य लोगों को, हमारी प्राचीन संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए और उन्हें हमारे देश में जीवंत परंपरा बनाने के लिए उठाना था। आज हमारे सामने, उनको संरक्षित रखने तथा यथासंभव बेहतर तरीके से उनके निरंतर विकास को बनाए रखने का कार्य है जिसमें कलाक्षेत्र जैसी संस्थाएं, इस महत्त्वपूर्ण सामाजिक दायित्व के निर्वाह में मजबूत आधार प्रदान करेंगी।

जय हिंद 
धन्यवाद