अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
हैदराबाद : 26-04-2017
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1. आज यहां अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में उपस्थित होना वास्तव में प्रसन्नतादायक है। यह एक नया विश्वविद्यालय है परंतु इसका केंद्रीय अंग्रेजी संस्थान,जिसे 1958 में नए भारत के लिए हमारे प्रथम प्रधानमंत्री,पंडित नेहरू की संकल्पना के एक भाग के रूप में,केंद्रीय अंग्रेजी संस्थान और तत्पश्चात 1972में केंद्रीय अंग्रेजी और विदेशी भाषा संस्थान के रूप में स्थापना के बाद से अध्यापन और अध्यापक प्रशिक्षण का एक समृद्ध इतिहास रहा है।
2. 2007 में केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पहले,इसका दायरा बढ़ाने के लिए शिलांग और लखनऊ में प्रादेशिक कैम्पस स्थापित किए गए थे। यह वास्तव में संतोष का विषय है कि यह भाषा शिक्षा की बड़ी चुनौतियों के समाधान ढूंढ़ने और एक जटिल विश्व में नेतृत्व के लिए विद्यार्थियों को तैयार करने के प्रति समर्पित रहा है।
3.इस विश्वविद्यालय के पास हैदराबाद के इस प्रख्यात शहर जिसे कवियों,चित्रकारों, कलाकारों और रचनात्मक प्रतिभाओं का शहर माना जाता है,एक अभिनव भारत के शैक्षिक प्रतिरूप की संकल्पना निर्मित करने और उसे साकार करने का60 दशक का अनुभव है। अपने आप में यह लघु भारत,जहां अनेक भाषाएं और संस्कृतियां,खान-पान और शिल्प मौजूद हैं, एक बहुआयामी शहर है, जिसकी एक सहेजी हुई ऐतिहासिक विरासत और भावी संकल्पना है।
4.अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त इस विश्वविद्यालय का उद्भव,अंतरराष्ट्रीय रूप से विख्यात लोगों की मेहनत और सामूहिक ऊर्जा से हैदराबाद शहर की पुरातन और आधुनिक समरसता के द्वारा उदित हुआ। आज अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय भाषा,साहित्य और सांस्कृतिक विरासत, अध्यापन, भाषा विज्ञान,अध्यापक शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्रों में विशिष्ट योग्यता वाले दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालयों के बीच अधिष्ठापित है।
देवियो और सज्जनो,
5.मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि विश्वविद्यालय ने भाषा और साहित्यिक अध्ययन,सांस्कृतिक और अंतरविधात्मक अध्ययनों में एक उल्लेखनीय शोध रूपरेखा तैयार की है। शोध के अंतर्गत,विश्वविद्यालय के विस्तृत और गहन अन्वेषण नैसर्गिक भाषा प्रक्रिया,प्राचीन और भाषा साहित्य और सिनेमा अध्ययन से लेकर एक ओर दार्शनिक अध्ययन और दूसरी ओर सांस्कृतिक सिद्धांत,निष्पादन अध्ययन और मीडिया विश्लेषण में नए प्रयोगधर्मी शोध शामिल हैं। मुझे बताया गया है कि इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय में शोध के भावी क्षेत्र हैंः फोरेंसिक उद्देश्यों के लिए वाक पहचान के द्वारा फोरेंसिक भाषा विज्ञान;देश की सांस्कृतिक समृद्धियों और सांस्कृतिक कृतियों के अभिलेखन और प्रलेखन के लिए डिजिटल आंकड़ा आधार तथा ध्वनि स्वर विज्ञान,भाषा विकार और भाषा संसाधन पर बल सहित मानसिक विज्ञान शोध।
6.अपनी विस्तृत शोध रूपरेखा के साथ अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय देश में तथा अन्य उभरते हुए राष्ट्रों में उच्च शिक्षा के उन्मुखीकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्रशिक्षण और सहयोगात्मक अध्यापन और शोध के लिए स्कूल से विश्वविद्यालय स्तर तक शैक्षिक पैकेज निर्मित करना संभव होगा।
7.विश्वविद्यालय द्वारा निभाई गई प्रारंभिक भूमिका को पहचानते हुए और इसकी बुनियादी संकल्पना के उपयोगी विस्तार में सहयोग करते हुए,भारत सरकार ने अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय विश्वविद्यालय विद्यार्थी कौशल विकास,राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्राधिकरण और वृहद मुक्त ऑनलाइन पाठ्यक्रम जैसी अनेक अग्रणी और महत्वपूर्ण परियोजनाएं सौंपी हैं।
8.अध्यापक प्रशिक्षण और शिक्षा में विश्वविद्यालय की प्रख्यात भूमिका को स्वीकार करते हुए,विदेश मंत्रालय ने विश्वविद्यालय को राजनयिकों को प्रशिक्षण तथा प्रशिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के निर्माण का अंतरराष्ट्रीय दायित्व सौंपा है। मुझे बताया गया है कि इस संबंध में आसियान देशों में अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं और पांच नए केंद्र अफ्रीकी देशों में खुलने वाले हैं।
9.मुझे जानकर प्रसन्नता हुई कि विश्वविद्यालय ने विश्वविद्यालय-उद्योग संपर्क तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों,समाज कल्याण संगठनों, सरकारी एजेंसियों,मीडिया घरानों और निजी शिक्षा संस्थानों के साथ परस्पर लाभकारी संवाद जैसे सुगम्य कार्यक्रम आरंभ किए हैं।
10.इस शानदार अवसर पर जबकि हम इस विश्वविद्यालय की प्रभावशाली उपलब्धियों पर गौरवान्वित हो रहे हैं,मैं आपके साथ कुछ ऐसे महत्वपूर्ण विचार बांटना चाहता हूं जिनसे शिक्षा की हमारी संकल्पना को आगे बढ़ाने में सुझाव मिल सकें। मेरे विचार से,ज्ञान द्वारा जीवन का मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए;और रहन-सहन में शिक्षा पथ का अनुसरण प्रमुख रूप से शामिल होना चाहिए। प्राचीन काल से ही एशिया महाद्वीप और विशेषकर दक्षिण-पूर्व एशिया में शिक्षा के अभिनव पथ निर्मित हुए। जहां कहीं भी बुद्ध गए ज्ञान के अंकुर फूटे और पल्लवित हुए। तक्षशिला के बाद नालंदा ने सहस्राब्दि तक भूभागों और समुद्रों से पार शिक्षा की ज्योति प्रज्जवलित रखी तथा ज्ञान के इच्छुक लोगों का स्वागत किया और उन्हें एक स्थायी विश्राम स्थल उपलब्ध करवाया।
11.आज भारत में और विश्व के अन्य भागों में उच्च शिक्षा को बनाए रखना और उसमें नई ऊर्जा भरना विशेषकर सार्वजनिक संस्थानों में एक प्रमुख चुनौती बन गई है। ऐसे संस्थानों में बाहरी और अंदरूनी दोनों चुनौतियों विद्यमान हैं। उच्च शिक्षा संस्थान के प्रशासन से संबंधित न्यूनतम चार प्रमुख कारक मौजूद हैं;मेरे अनुसार, ये हैंः (क) शिक्षा की लागत में वृद्धि; (ख) संकीर्ण व्यवहारिकता अर्थात् शिक्षण के एकमात्र लक्ष्य के रूप में बाजारोन्मुख तीव्र कौशल प्राप्ति; (ग) एकाग्रता की अवधि क्षीण करने वाली आक्रामक प्रमुख संचार प्रणालियों का आकर्षण और (घ) विश्वास में कमी।
12.ऐसी स्थिति में उच्च शिक्षा का निर्माण अथवा पुनः अभिमुखीकरण के किसी भी प्रयास के लिए प्रशासनिक दक्षता की आवश्यकता होती है। प्रशासनिक ताकत और संवेदनशीलता से शिक्षा पथ की बाधाएं समाप्त होती हैं और शिक्षा फलती-फूलती है, जैसा कि इस विश्वविद्यालय ने दर्शाया है।
मित्रो,
13.निराशावाद दायित्व से बचने का एक आसान बहाना है। किसी भी संस्था का भविष्य शिक्षकों,विद्यार्थियों और कर्मचारियों द्वारा निराशा पर नियंत्रण करने की क्षमता पर निर्भर करता है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने का एक तरीका प्रत्येक व्यक्ति को सहयोगपूर्ण संस्था निर्माण में भागीदार बनाना है। गहन शोध के साथ-साथ एकाग्र अध्यापन से नए ज्ञान की उत्पत्ति और प्रत्येक के साथ इसे बांटने की विश्वविद्यालय की संकल्पना को आगे बढ़ाया जा सकता है।
14.यह याद करना जरूरी है कि विद्या दान,जो कि इस देश ने बड़े स्तर पर प्रदान किया है,की एकमात्र विशेषता को याद करना आवश्यक है क्योंकि इसका लक्ष्य प्रत्येक को प्रसन्नता प्रदान करना था। सर्वे जनः सुखिनो भवंतु,उपनिषद का युगों पुराना मंत्र बताता है। यह श्लोक किसी भी देश-काल में शिक्षा की किसी भी अवधारणा की प्रेरणा होनी चाहिए। कैनेडी स्नातकों को एक सबसे बड़े लक्ष्य के लिए प्रयास करने की प्रेरणा दिया करते थे,जो कि विश्व शांति है। उन्होंने कहा था, ‘हममें से अधिकांश इसे असंभव मानते हैं। हममें से अधिकांश इसे अवास्तविक समझते हैं। परंतु यह एक खतरनाक पराजयवादी धारणा है। यह इस निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि युद्ध अवश्यंभावी है, कि मानवता का विनाश हो गया है,कि हम ऐसी शक्तियों द्वारा जकड़ लिए गए हैं,जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते।’
शांति का मजबूती से समर्थन करते हुए,उन्होंने कहा था, ‘हमारा कार्य इसे स्वीकार करना नहीं है। हमारी समस्याएं मानव निर्मित हैं,इसलिए इन्हें मानव द्वारा सुलझाया जा सकता है और मानव जितना चाहे उतना बड़ा बन सकता है।’
15.इस उल्लासमय अवसर पर,मैं इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से बाहर कदम रखने वाले और अपनी विरासत को साथ लेकर आगे बढ़ने वाले सभी लोगों को एक खुशहाल,समृद्ध और सार्थक जीवन की शुभकामनाएं देता हूं। मैं उनके भावी प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं।
धन्यवाद
जय हिंद।