मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के 9वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश : 25-12-2012

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इलाहाबाद के इस ऐतिहासिक शहर में, इस दीक्षांत व्याख्यान के लिए आकर मुझे बहुत खुशी हो रही है।

गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर बसा हुआ इलाहाबाद परंपरागत रूप से आध्यात्मिकता, ज्ञान और अध्ययन का केंद्र रहा है। यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र भी था और इस शहर के नागरिकों ने हमारे स्वतंत्रता संघर्ष की अगुआई की।

मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की आधारशिला 3 मई, 1961 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तब रखी थी जब यह क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज कहलाता था, और श्री लाल बहादुर शास्त्री ने इसकी इमारत का उद्घाटन 18 अप्रैल, 1965 में किया था। उनके द्वारा जिस संस्थान को सृजित और पोषित किया गया था, आज वह तकनीकी शिक्षा के सर्वोत्तम संस्थान के रूप में विकसित हो चुका है। भारत सरकार ने इस संस्थान के कार्यों को मान्यता देते हुए इसे राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान का दर्जा प्रदान किया है। यह प्रसन्नता की बात है कि संस्थान के सभी 14 विभाग आज पीएच.डी. कार्यक्रम की सुविधा प्रदान कर रहे हैं। मैं इस गरिमामयी संस्थान से निकल रहे सभी युवाओं को बधाई देता हूं और उम्मीद करता हूं कि भविष्य में वे देश की प्रगति की राह में अमिट छाप छोड़ेंगे।

देवियो और सज्जनो, हमारा देश तेजी से एक आर्थिक शक्ति बन रहा है। क्रय शक्ति की तुलना के आधार पर हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारा देश विकास की दर के मामले में दुनिया भर की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। पिछले नौ वर्षों में से छह वर्षों के दौरान हमने 8 प्रतिशत से अधिक की विकास दर बनाए रखी है। यद्यपि, वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण वर्ष 2010-11 से विकास दर कुछ कम हुई है परंतु भारत इस संकट का सामना करने में सफल रहा है और उसने शानदार सहनशीलता दिखाई है।

भारत की इस सहनशीलता के पीछे का एक प्रमुख कारक है आजादी के बाद से ही उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में इसकी मजबूत आधारशिला। शिक्षा के माध्यम से हम बौद्धिक पूंजी का निर्माण करते हैं तथा ऐसी कुशल कार्मिक शक्ति का सृजन करते हैं जो कि सीधे राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान कर सकती है। अनुसंधान शिक्षा का एक उन्नत उत्पाद है। अनुसंधान से नवान्वेषण, प्रौद्योगिकीय प्रगति तथा प्रक्रिया की सटीकता आती है जिससे बाद में उत्पाद के क्षेत्रों में बदलाव आता है और भावी विकास के लिए क्षमता पैदा होती है।

हमारे देश में उच्च शिक्षा के ढांचे में उद्विकास लाने का यह एक महत्त्वपूर्ण क्षण है। हमारे पास आशावादी होने का कारण मौजूद है। वर्ष 2011-12 को समाप्त वित्तीय वर्ष के अंत में हमारे पास कुल 659 उपाधि प्रदान करने वाले संस्थान तथा 33023 कॉलेज थे। उच्च शिक्षा संस्थानों में पंजीकरण जो 2006-07 में 1.39 करोड़ था, 2011-12 में बढ़कर 2.18 करोड़ हो गया। उच्च शिक्षा में सकल पंजीकरण अनुपात मौजूदा 18 प्रतिशत से बढ़ाकर 2016-17 तक 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है।

तथापि हमारी उपलब्धियों के बावजूद, यह माना जाता है कि हमारे देश की शिक्षा प्रणाली में मात्रा और गुणवत्ता दोनों की बढ़ोत्तरी अपेक्षित है। हमारे विद्यार्थियों की संख्या की जरूरत पूरी करने के लिए हमें अभी बहुत से विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी संस्थानों की जरूरत है। तथापि, हमें सबसे ज्यादा जरूरत अच्छी शिक्षा प्रदान करने की है। मैं आप लोगों को यह बात बताना चाहता हूं कि हाल ही की रिपोर्टों में यह देखकर मुझे बहुत निराशा हुई है कि विश्व के 200 बेहतरीन विश्वविद्यालयों की सूची में भारत का एक भी विश्वविद्यालय अथवा संस्थान नहीं है। मुद्दा यह नहीं है कि क्या उस सर्वेक्षण रिपोर्ट में हमारे विश्वविद्यालयों और संस्थानों की सही स्थिति दर्शाई गई है या नहीं। हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए अनुरूप, हमें अपनी उच्च शिक्षा के स्तर को इतनी ऊंचाई पर पहुंचाना होगा जिससे हम निरपवाद रूप में विश्व में दसवें अथवा कम से कम पचासवें स्थान पर तो हों ही। आज के वैश्विक परिवेश में भारतीय संस्थानों को न केवल भारत में सर्वोत्तम विश्वविद्यालय बनने का बल्कि खुद को ऐसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य तय करना चाहिए जहां अनुसंधान, शिक्षण और अध्ययन का अंतरराष्ट्रीय स्तर हो। उच्च स्तर बनाए रखने के लिए विवविद्यालयों को खुद को उच्चीकृत करते रहना चाहिए। उन्हें न केवल अवसंरचना में निवेश करना चाहिए और शिक्षा प्रदान करने में नवीनतम् प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना चाहिए बल्कि लब्धप्रतिष्ठित संकाय सदस्य नियुक्त करने चाहिए और बदलते समय के अनुसार अपने पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या में बदला करते रहना चाहिए।

अनुसंधान और नवान्वेषण की गति को प्रोत्साहित करने वाला पाठ्यक्रम विकसित करने की बहुत जरूरत है। बड़ी संख्या में विद्यार्थियों की गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक और अधिक पहुंच के लिए, प्रदत्त वित्तीय सहायता में निरंतर अधिक छात्रवृत्तियां, शैक्षिक ऋण और ‘पढ़ते हुए कमाओ’ स्कीम जैसी स्व-सहायता योजनाएं शामिल की जानी चाहिए। ‘मुक्त’ और ‘दूरवर्ती’ शिक्षण जैसे लचीले मॉडलों को प्रोत्साहित और मजबूत किया जाना चाहिए।

अनुसंधान एक ऐसा प्रमुख क्षेत्र है जिसमें शानदार संभावनाएं है और जहां व्यवस्थित प्रयास की आवश्यकता है। गत वर्ष हमारे देश में स्नातक और उससे ऊपर की पढ़ाई कर रहे लगभग 260 लाख विद्यार्थी थे जबकि केवल एक लाख पीएच.डी. विद्यार्थी थे। हम अनुसंधान और नवान्वेषण में बहुत से अन्य देशों से पीछे हैं। वर्ष 2010 में भारतीयों द्वारा पेटेंट के लिए लगभग 6 हजार आवेदन दिए गए थे जो चीनियों के 3 लाख, जर्मनों के लगभग 1.7 लाख, जापानियों के 4.64 लाख और अमरीकियों के 4.2 लाख आवेदनों के मुकाबले बहुत कम हैं। भारतीयों के पेटेंट आवेदनों की संख्या विश्व के कुल आवेदनों का मात्र 0.30 प्रतिशत था।

भारत सरकार की 12वीं योजना कार्यनीति में उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में अनेक पहलें शामिल हैं। इनमें अधिक केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना, तकनीकी शिक्षा और दूरवर्ती शिक्षण, अकादमिक सुधार, शिक्षा ऋण पर ब्याज में छूट पर जोर, नवान्वेषण विश्वविद्यालयों की स्थापना, मौजूदा संस्थाओं का विस्तार तथा अनुसंधान, ढांचागत सुविधा, संकाय और पाठ्यचर्या सामग्री की बेहतर गुणवत्ता पर ध्यान देना शामिल है। इस कार्यनीति में हमारे समाज के सभी वर्गों की अधिक पहुंच और उन्हें अधिक अवसर प्रदान करने पर पूरा बल दिया गया है।

देवियो और सज्जनो,

जब तक समाज के सभी वर्ग पूरी क्षमता के साथ राष्ट्र निर्माण में भाग नहीं लेंगे, तब तक किसी भी राष्ट्र की प्रगति सुनिश्चित नहीं हो सकती। एक राष्ट्र के तौर पर हमारी प्रगति और समृद्धि में महिलाओं को समान अथवा समान से भी अधिक साझीदार मानना और देखना चाहिए। उच्च शिक्षा में महिलाओं की सहभागिता, सामान्यत: पुरुषों से कम है और इंजीनियरी में स्थिति और भी बदतर है। मुझे बताया गया है कि मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में पिछले दस वर्ष में महिला विद्यार्थियों का प्रतिशत लगभग 8 प्रतिशत रहा। यह समान अवसरों वाले राष्ट्र के रूप में हमारी परिकल्पना से बहुत कम है। मुझे उम्मीद है कि एक विधा और मनपसंद पेशे के रूप में इंजीनियरी भविष्य में अधिक से अधिक महिला विद्यार्थियों को आकर्षित करेगी।

मैं दिल्ली की एक युवा लड़की के विरुद्ध क्रूर हिंसा की हाल की घटना के प्रति गहरा दु:ख प्रकट करता हूं। सरकार हालात के प्रति सतर्क है और यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई कर रही है कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं दोबारा न हों।

मैं, इस बहादुर युवा लड़की के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए प्रार्थना करता हूं। महिलाओं के विरुद्ध आपराधिक हमले अक्सर समाज में मौजूद कुछ तत्त्वों द्वारा विचारित और प्रचारित नकारात्मक धारणाओं के कारण होते हैं। इसमें बदलाव आना चाहिए। हमें समाज के प्रत्येक सदस्य में महिलाओं के प्रति उच्च सम्मान की भावना भरनी होगी और देश के युवा विशेषकर मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं के विद्यार्थियों को इस संबंध में आगे आना होगा।

मैं इस घृणित घटना पर युवाओं के जायज गुस्से को समझता हूं परंतु साथ ही मैं विनम्रतापूर्वक उन्हें यह भी याद दिलाना चाहता हूं कि विवेक को नजरअंदाज न करें। आपको भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखना चाहिए। हिंसा कोई समाधान नहीं हैं। मुझे बताया गया है कि उस दौरान ड्यूटी पर मौजूद एक सुरक्षाकर्मी का आज निधन हो गया। मैं ड्यूटी निभाने के दौरान मरने वाले इस व्यक्ति की दुखद मृत्यु पर शोक व्यक्त करता हूं। मैं उसके परिवार के दु:ख में उनके साथ हूं। मुझे उम्मीद है कि भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं होगा।

मानवता के सम्पूर्ण इतिहास में इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी मानव विकास और संस्कृति के लिए सबसे सशक्त प्रेरणादायक शक्ति सािबत हुए हैं। अकादमिक और तकनीकी समुदाय के प्रति अपने कर्तव्य के साथ ही, स्नातक विद्यार्थियों का एक भारी सामाजिक दायित्व है जिसे पूरा करने का उन्हें प्रयास करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के स्नातक राष्ट्र निर्माण के कार्य में भरपूर योगदान देंगे।

मैं, डिग्री प्राप्तकर्ताओं को एक बार पुन: बधाई देता हूं और उनके जीवन व करियर में सफलता के लिए शुभकामनाएं देता हूं। मैं स्नातकों से आग्रह करता हूं कि वे शिक्षा की गरिमा बनाए रखें तथा समाज व राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का पालन करें। सफलता का मार्ग मुश्किल हो सकता है परंतु इसे तय करने वाला व्यक्ति वास्तव में तीर्थ यात्रा पूरी करता है और जिसकी जड़ें मजबूत होती हैं, और बुनियाद सशक्त होती है। नवान्वेषण की लौ जलाए रखें, कभी आत्मसंतुष्ट न हों और कभी भी शॉर्टकट के प्रलोभन में न आएं।

अंत में, मैं गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविता की दो पंक्तियां उद्धृत करना चाहूंगा : ‘‘यात्री को अपने घर तक आने के लिए हर अपरिचित दरवाजे को खटखटाना पड़ता है और अन्तरतम तक पहुंचने के लिए संपूर्ण बाहरी जगत में भटकना पड़ता है।’’