ऊर्जा तथा संसाधन संस्थान द्वारा आयोजित द्वितीय जल फौरम, 2013 के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

विज्ञान भवन, नई दिल्ली : 28-10-2013

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Speech of the Hon'ble President of India at the Inauguration of the Second India Water Forum 2013 Organized by the Energy and Resources Institute (TERI)मुझे आज की सुबह आप लोगों के बीच उपस्थित होकर द्वितीय भारत जल फौरम के उद्घाटन सत्र में भाग लेने पर बहुत प्रसन्नता हो रही है। सबसे पहले मैं, सही मायने में वैश्विक प्रासंगिकता वाले इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए ऊर्जा तथा संसाधन संस्थान को और भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय और पेय जल और स्वच्छता मंत्रालयों तथा विश्व बैंक के जल और स्वच्छता कार्यक्रम इसके सहायक साझीदारों को बधाई देना चाहूंगा। मैं, जल सेक्टर से संबंधित विशेषज्ञों, अकादमिकों, नीति निर्माताओं और विद्यार्थियों की इस प्रबुद्ध सभा को संबोधित करने का मौका दिए जाने पर प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं।

2. लियोनार्डो-द-विंसी ने एक बार कहा था ‘जल प्रकृति का वाहक है।’ भारत में जल लोगों में श्रद्धा जगाता है। इसे ‘वरुण’ नामक देवता का अवतार माना गया है, जिन्हें जल के सभी स्वरूपों के देवता के रूप में पूजा जाता है।

देवियो और सज्जनो, 3. भारत में दुनिया की सतरह प्रतिशत जनता निवास करती है परंतु, यहां विश्व का केवल चार नवीकरणीय जल स्रोत उपलब्ध है। जनसंख्या वृद्धि, तीव्र शहरीकरण तथा विकासात्मक जरूरतों ने उपलब्धता पर भारी दबाव डाला वर्ष 2001 1816 घन मीटर पानी उपलब्धता, 2011 तक घटकर 1545 रह गई। यह आकलन किया गया कि 2050 1140 जाएगी। सुरक्षा समस्या, जो पहले ही एक चुनौती है, भविष्य बढ़ने वाली 4. ऐसे समय जब हम घटते संसाधनों बढ़ती मांग से जूझ रहे हैं, दक्षता लाभ हो सकता आज के संदर्भ ‘जल को बचाना उत्पादन है’ नामक कहावत कहीं अधिक सटीक बैठती इस सम्मलेन उपयोग केन्द्रित होने से, महत्वपूर्ण मुद्दा नीति संबंधी परिचर्चा शामिल पाएगा। 5. राष्ट्रीय 2012 सुधार जरूरत स्वीकार था। लिए दक्षतापूर्ण प्रोत्साहन संवर्धन नवान्वेषी उपकरणों होगी। इसी साथ इसमें दंड कड़े विनियम लागू करके अदक्षतापूर्ण निपटने भी आग्रह पूर्व मुख्यत: बिना बात ध्यान दिए उसका प्रबंधन कैसे जाएगा, मात्रा बढ़ाने दिया गया। अत: संसाधन विकास’ समेकित प्रबंधन’ दिशा आमूल चूल बदलाव जाना अब जरूरी इसके सेवा प्रदान करने वर्तमान संस्थाओं पुनर्गठित सशक्त करना होगा।

देवियो और सज्जनो,

6. जलवायु परिवर्तन का खतरा वास्तविक और सामयिक है। जल प्रवाह में बदलाव, भूमि जल के पुनर्भरण में कमी, बाढ़ों तथा सूखों की तीक्ष्णता में वृद्धि, तथा समुद्रतटीय जलभृतों में खारेपानी के प्रवेश होने के कारण जलवायु परिवर्तन का जल संसाधनों पर भारी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। इस चुनौती का सामना दक्षतापूर्ण जल प्रबंधन से करना होगा। जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के अंग के रूप में वर्ष 2011 में राष्ट्रीय जल मिशन शुरू किया गया था। जिसका उद्देश्य जल संरक्षण, जल की बर्बादी में कमी लाना तथा समतापूर्ण वितरण था। राष्ट्रीय जल मिशन का एक सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य जल उपयोग दक्षता में बीस प्रतिशत की वृद्धि करना है।

7. ऐतिहासिक रूप से खेती भारत में सबसे बड़ी जल उपभोक्ता है। परंतु अभूतपूर्व शहरीकरण के चलते, शहरी जल मांग ने जल संसाधनों को ग्रामीण से शहरी उपभोक्ताओं की ओर स्थांतरित होने के लिए मजबूर कर दिया है, जिससे अंतर-सेक्टर प्रतिस्पर्धा पैदा हुई है। जल संसाधनों में बदलाव न होने के कारण भविष्य में जल के आबंटन संबंधी इस अंतर-सेक्टर प्रतिस्पर्धा के बढ़ने की संभावना है। इस परिस्थिति के समाधान के लिए विभिन्न सेक्टरों के बीच दक्षतापूर्ण जल आबंटन की आवश्यकता है।

8. कृषि हमारे देश में जल की मांग का बड़ा केन्द्र है। इसलिए इस सेक्टर में जल प्रबंधन हमारी समग्र जल सततता के लिए आवश्यक है। अत: कम प्रयोग, पुनर्चक्रण तथा पुन: प्रयोग की तीन-सूत्रीय कार्ययोजना को हमारे खेतों में उपयोग में लाना होगा। हमारी सिंचाई प्रणाली में जल के उचित प्रयोग को प्रोत्साहन देना होगा तथा प्रयुक्त जल के पुनर्चक्रण तथा पुन:उपयोग के प्रयासों को दोगुना करना होगा। भारत को इजरायल जैसे देशों से भी सीख लेनी होगी, जहां दक्षतापूर्ण जल नीतियों तथा प्रौद्योगिकीय प्रगति के कारण कृषि में दक्षतापूर्ण जल उपयोग हो रहा है। घटते भूजल के स्तर पर, उन्नत जल उपयोग प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके तथा जलभृतों के बेहतर प्रबंधन के द्वारा रोक लगानी होगी। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना जैसी मौजूदा ग्रामीण विकास योजनाओं के साथ जोड़कर वर्षा जल संचयन को लोकप्रिय बनाना होगा। समेकित जलागम विकास की हमारी पहलों का लक्ष्य मिट्टी में नमी बढ़ाना, तलछट की कटाई में कमी लाना तथा जल की उत्पादकता में सुधार होना चाहिए।

9. उपयोग योग्य जल एक दुर्लभ वस्तु है। इसकी मूल्यनिर्धारण प्रणाली को बचत के लिए प्रोत्साहन तथा बर्बादी के लिए दंड के रूप में काम करना होगा। जल उपयोग एसोसिएशनों को जल प्रभारों की वसूली तथा जल वितरण प्रणाली के प्रबंधन की पर्याप्त शक्ति देकर उनकी भूमिका में मजबूती लानी होगी।

10. सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था पूरी दुनिया में एक गंभीर विकासात्मक पहल बन चुकी है। मनुष्यों की काफी बड़ी जनसंख्या की, इस बुनियादी जरूरत तक पहुंच नहीं हो पाई है। सुरक्षित पेयजल तक निर्धनों की पहुंच में ऐसी मध्य बाजार प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके बढ़ोतरी करनी होगी जो वहनीय जल शोधन उपकरण प्रदान कर सकें। इस तरह के उपकरणों की प्राप्ति के लिए सुरक्षित पेयजल की सामूहिक प्राप्ति को बढ़ावा देने के लिए सूक्ष्म वित्तीय संस्थानों का सहयोग लेना होगा।

देवियो और सज्जनो, 11. भारत में जल से संबंधित मौजूदा कानूनी ढांचा इस जटिल परिस्थिति निबटने के लिए असमान तथा अपर्याप्त है। संबंधी सामान्य सिद्धांतों का सर्वव्यापी राष्ट्रीय ढांचा, देश शासन पर अनिवार्य कानून मार्ग प्रशस्त कर सकता सेक्टर की नीतियों विनियमों को स्पष्ट, संयोजित सारगर्भित बनाने समन्वित प्रयासों भी जरूरत तभी आसन्न संकट असर कम 12. ऊर्जा संसाधन संस्थान द्वारा किए जा रहे बेहतरीन कार्य मुझे जानकारी खुशी हो रही है कि समेकित प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन घरेलू औद्योगिक प्रबंधन क्षेत्र विशेषज्ञता रखने वाले ने समारोह आयोजन अगुवाई की। पूर्ण विश्वास तीन दिवसीय सम्मेलन उपयोग दक्षता विभिन्न पहलुओं गंभीर विचार-विमर्श होंगे, जिससे एक सर्वसम्मत राय बन पाएगी। उम्मीद देशों विकसित उन्नत ज्ञान सफल प्रौद्योगिकियों प्रदर्शन होगा सुरक्षा चुनौतियों समाधान अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान बढ़ावा मिलेगा। मैं आयोजकों शुभकामनाएं देता हूं। मैं उनके प्रयासों में सफलता की भी कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जयहिंद!