‘नवोन्वेष: जीने का एक तरीका’ विषय पर विडियो सम्मेलन के माध्यम से सिविल सेवा अकादमियों में उच्च शिक्षा के छात्रों और संकायों में अनुसंधान संस्थाओं और अधिकारी प्रशिक्षुओं को भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का संबोधन
राष्ट्रपति भवन : 10-08-2016
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1. नए अकादमिक सत्र के आरंभ में आप लोगों के साथ वार्ता करने के इस अवसर पर मैं बहुत प्रसन्न हूं। शुरुआत में मैं आप सभी छात्रों का स्वागत करता हूं जो विश्वविद्यालयों और उच्च लर्निंग के अन्य केंद्रों में नए हैं। मैं उन अधिकारी प्रशिक्षुओं को भी शुभकामनाएं देता हूं जो अपने निर्धारित अकादमियों में उनका परिवीक्षाधीन प्रशिक्षण ले रहे हैं। मैंने जनवरी, 2014 में उच्च शिक्षा में अकादमिक संकाय को संबोधित करने का अभ्यास आरंभ किया। यह इस प्रकार का छठा मौका है और मैं यह स्वीकार करता हूं कि मैं ई-प्लेटफॉर्म पर इस आवधिक बातचीत के लिए उत्सुक हूं। मैं राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र टीमों के साथ जोड़ने के लिए आप सभी को धन्यवाद देता हूं।
2. भारत विश्व का सर्वाधिक युवा आबादी वाला देश है। भारत के 1.8 अरब की कुल आबादी में छह सौ करोड़ से अधिक व्यक्ति 25 वर्ष के नीचे हैं। हमारे पास पर्याप्त संख्या में रचनात्मक, आतुर और जिज्ञासु व्यक्ति हैं। आज के नेटवर्क युक्त वातावरण में हमें ऐसी युवा शक्ति की आवश्यकता है जो एक अभिलाषी भारत की पूर्ण क्षमता को उपयोग कर सके। इसके लिए हमारे रोजमर्रा के जीवन के एक भाग के रूप में रचनात्मक सोच और नवोन्वेष की अभिलाषा होनी चाहिए। इसलिए मैंने ‘नवोन्वेष: जीने का तरीका’ पर आज आपसे बात करने के लिए विषय चुना है।
मित्रो,
3. पिछले कुछ दशकों में भारत का आर्थिक निष्पादन सराहनीय रहा है। तथापि हमने पर्याप्त समस्याओं जैसे गरीबी, असमानता, बेरोजगारी, संसाधनों की कमी और खराब अवसंरचना का सामना किया है। जबकि हमें विश्व स्तरीय अवसंरचना की तीव्र रचनात्मकता और इसे बनाए रखने के अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है, हमें विकास की प्रक्रिया में कमजोर वर्गों को शामिल करने संबंधी समाधानों की भी आवश्यकता है। जैसे-जैसे गणतांत्रिक अभिलाषाएं जन्म लेती हैं, हमें असमानताओं को कम करने के लिए नए तरीके ढूंढ़ने होंगे। अनेक बार हम केवल अपने प्रयासों को दोगुना करके समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते। हमें अपने दृष्टिकोण, डिजायन, वितरण के तरीके और साधनों में परिवर्तन करने की आवश्यकता है। हमारी परिस्थितियां हमारे आकार, विविधता और जटिलता के कारण अपूर्व हैं। विकास के लिए वैश्विक मॉडल को अपनाना सीमित उपयोग का सर्वोत्तम उपाय हो सकता है। हमारे विकास आदर्शों को हमारी जनता की अभिलाषाओं से जोड़ना होगा और उनकी आवश्यकताओं को पूरा करना होगा। नवोन्वेष से हमारी अनेकता की रक्षा होनी चाहिए और समाज के विस्तृत क्षेत्र को लाभ मिलना चाहिए।
मित्रो,
4. नवोन्वेष के अनेक आयाम हैं। कुछ नवोन्वेष प्रकृति से परिवर्तनीय हैं जहां परिवर्तन करना हानिकारक है। सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के ऊपर से नीचे तक करोड़ों लोगों की दैनिक जीवन को प्रभावित करते हुए इसके परिणामों सहित डिजिटल क्रांति ऐसा ही एक उदाहरण है। उसके बाद समावेशी समर्थक नवोन्वेष हैं जो मौजूदा प्रौद्योगिकी के संशोधन के द्वारा निम्न आय समूहों और मध्यम वर्ग के लिए वहनीय बनाते हुए एक उत्पाद के मूल्य और सेवा को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करते हैं। इसमें मितव्ययी नवोन्वेष शामिल हैं जो एक कम लागत वाली कार अथवा एक कम लागत वाली एयरलाइन की तरह एक उत्पाद की कार्यक्षमताओं को बनाए रखते हैं। एक अन्य श्रेणी के नवोन्वेष में सामाजिक नवोन्वेष हैं जिनका प्राथमिक उद्देश्य उन ग्राहकों को सामाजिक रूप से उपयोगी सेवाएं प्रदान करना है जो भुगतान करने की स्थिति में नहीं हैं। तथापि नवोन्वेष का एक अन्य आयाम ‘जमीनी’ नवोन्वेष जो विद्यमान प्रौद्योगिकी में एक मध्यम और निम्न आय समूह के लिए वहनीय उत्पाद और सेवा की लागत को महत्त्वपूर्ण रूप से कम करते हैं जो उन स्थानीय समुदायों द्वारा आरंभ किया जाता है जो अधूरी सामाजिक आवश्यकताओं और अपर्याप्त वितरण प्रणाली के अंतर को अपने लिए रचनात्मक समाधानों को विकसित करके समाप्त कर देते हैं।
मित्रो,
5. आज मैं आप लोगों के साथ कुछ ऐसे पाठ साझा करना चाहता हूं जो हमने राष्ट्रपति भवन में विभिन्न पहलुओं के द्वारा पिछले चार वर्षों में पढ़े हैं। मैं उन चुनौतियों का भी जिक्र करना चाहूंगा जो सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति में भारत को अधिक करुणामयी और सहयोगी बनाने से रोकती है। मैं इस बात से प्रसन्न हूं कि प्रधान मंत्री ने हाल ही में अपने मन की बात में देशवासियों से नवोन्वेष पारितंत्र के सर्जन के लिए आग्रह किया है। उन्होंने एक बहुत ही सकारात्मक पहल अटल नवोन्वेष मिशन की बात की जो पूरे देश में ‘नवोन्वेष’ को और ‘स्टार्ट अप’ दोनों को प्रोत्साहन देने के लिए थी। मैं नवोन्वेष के द्वारा अग्रणी होने के संदेश के उद्देश्य से पूर्णत: सहमत हूं। बच्चों की रचनात्मकता को बाहर लाने का विचार भी बिलकुल सही है। बच्चों में बचपन से ही कल्पना, प्रयोग, नवोन्वेष और उद्यमिता के विचार डाले जाने चाहिए। मुझे बताया गया है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग एनआईएफ के समर्थन से एक ‘मिलियन माइंड्स ऑफ एंटी नेशनल एंस्पीरेशन एंड नॉलेज’ मानक कार्यक्रम आरंभ करने जा रहा है ताकि एक करोड़ से आधे में से प्रत्येक से कम से कम दो नवोन्वेष विचार प्राप्त किए जा सकें और उनमें से योग्य विचारों को आगे बढ़ाया जा सके।
मित्रो,
6. अगला प्रश्न है कि हम समेकित नवोन्मेष आंदोलन को आगे कैसे ले जाएं? भारत कुछ उच्च तकनीकी नवोन्वेषों में पिछड़ा हो सकता है परंतु जब बात रोजमर्रा की समस्याओं के विकास की आती है तो हमने अलग कुछ कर दिखाया है। मैं पिछले तीन वर्षों से एक आवासीय कार्यक्रम के अंतर्गत राष्ट्रपति भवन में मेरे अतिथियों के रूप में लेखकों और कलाकारों ने नवोन्वेष विद्वानों का स्वागत करता आ रहा हूं जहां नवोन्वेषी विचारक ‘अपनी रचनात्मक बैट्रियों को रिचार्ज’ करने के लिए आते हैं। मैं शिक्षाविदों, निगम के नेताओं और सामुदायिक नेताओं का आह्वान करता हूं कि वे हमारे देश के रचनात्मक और नवोन्वेषी जनता तक इस पहचान को पहुंचाने के बारे में सोचें। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने व्यस्त हैं, एक वर्ष में कुछ समय अपनी कल्पना को सजीव करने के लिए ऐसे लोगों के लिए भी निकालें।
7. रचनात्मक और नवोन्वेष द्वारा विकासात्मक भाग्य की जिम्मेदारी लेने के कारण उनकी भावना का सम्मान करने के लिए, राष्ट्रपति भवन नवोन्वेष का एक साप्ताहिक उत्सव मनाता आ रहा है। इस उत्सव में वैश्विक गोलमेज और अन्य वार्तालाप सत्र, बिक्री योग्य उत्पादों में अपने विचारों को बदलने के लिए नवोन्वेषकों, उद्यमियों और फाइनेंसर्स को एक प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं।
8. उच्च शिक्षा के 117 केन्द्रीय संस्थानों के कुलाध्यक्ष के रूप में मैंने इन संस्थानों को नवोन्वेष क्लब स्थापित करने के लिए कहा। केन्द्रीय संस्थानों में अब उच्च शिक्षा के ऐसे 85 से अधिक क्लब, नवोन्वेष इन्क्यूबेटर और हब हैं।
9. 19 मई, 2016 को राष्ट्रपति भवन एक स्मार्ट टाउनशिप बन गया। हमारे लिए एक स्मार्ट टाउनशिप का अर्थ एक मानवोचित, उच्च तकनीकी युक्त, विरासती और खुशहाल टाऊनशिप है जो एक ऐसे जीवन की संवर्धित गुणवत्ता निश्चित करता है जो इसके निवासियों की खुशहाली में सहायक है। मैं समझता हूं कि हमारे स्मार्ट शहर, कस्बे और ग्राम जैसा हम उनका विकास करते हैं, वे भी मानवोचित, उच्च तकनीकी युक्त और खुशहाल होने चाहिए जो प्रौद्योगिकी संचालित और सहानुभूतिशील समाज की रचना कर सकें।
मित्रो,
10. मैं अपने जीवन काल में एक विकसित भारत देखने की उम्मीद करता हूं। हमारा सामूहिक सपना तभी पूरा होगा जब हम सभी नागरिकों को परिरक्षा, स्थिरता और बदलाव का मार्ग प्रदान करते हुए उनके रचनात्मक विचारों पर कार्य करेंगे।
12. मैं भारत के इससे भी अधिक समावेशी, विविध, स्थिर और नवोन्वेषक समाज की ओर बढ़ने से होने वाले लाभ के लिए नौ सूत्रों का सुझाव देता हूं :
(क) एक : जब बच्चे हमसे ऐसे प्रश्न पूछते हैं जिनका हमारे पास कोई उत्तर नहीं होता तो हमें बच्चे की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। हमें अपनी अज्ञानता को स्वीकार करना चाहिए और उन लोगों से सूचना का संदर्भ लेना चाहिए जो जानते हैं और उनकी जिज्ञासा को बढ़ा सकते हैं। जब तक हमारे बच्चे प्रश्न पूछना, प्रयोग करना नहीं सीखेंगे उनकी कल्पना का विकास नहीं होगा; और उनकी नवोन्वेषी क्षमता बाहर नहीं आ सकेगी।
(ख) दो : हमें अपने उन विश्वासों पर प्रश्नचिह्न लगाकर एक वैज्ञानिक व्यवहार को बढ़ावा देना और लागू करना होगा जो वैज्ञानिक तरीके से सोचने के योग्य नहीं हैं। भावी समाज अपरंपरागत विचारों पर निर्भर करते हैं। वे असफलताओं से नहीं डरते, वे जोखिम उठाते हैं और जानबूझकर की गई गलतियों को माफ करते हैं।
(ग) तीन : स्कूलों, कॉलेजों और अनुसंधान संस्थाओं में नवोन्वेष क्लब और परिवर्तनीय प्रयोगशालाएं स्थापित की जानी चाहिए। युवाओं को खोजने, प्रचार-प्रसार करने और समावेशी नवोन्वेषों की प्रशंसा करना सीखना चाहिए और उन्हें अपने क्षेत्रों में समुदायों की अपूर्ण सामाजिक आवश्यकताओं की समझ होनी चाहिए। मैंने अपने गांवों में धान का पौधा रोपते देखा है जब महिलाएं घंटों धान के पौधारोपण के लिए जल में पैर डाले हुए, दर्दनाक स्थिति में कमर झुकाए हुए कार्य करती हैं। हम वहनीय मैनुअल धान पौधारोपण में सुधार और डिजायन क्यों नहीं कर सकते? महिलाओं द्वारा किए जाने वाले कार्यकलापों में प्रौद्योगिकियों के कदम इतने धीमे क्यों हैं? आइए, हम इन समस्याओं को समयबद्ध तरीके से निपटाने की दिशा में कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध हों। हमें अपने देश के रोजगार वर्गों, वयस्कों और विशेष रूप से अयोग्य व्यक्तियों के द्वारा सामना की जा रही समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। केवल तभी करुणात्मक रचनात्मकता विकसित होगी।
(घ) चार : हमें औपचारिक और अनौपचारिक ज्ञान प्रणालियों के बीच व्यवहार्य और स्थिर सेतु का निर्माण करना होगा। जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के साथ और क्षितिज पर बड़े पैमाने पर बढ़ती अनिश्चितता; सदियों से इन अनिश्चितताओं के साथ समुदायों के ज्ञान को अनदेखा नहीं किया जा सकता। जैसे-जैसे संसाधनों का अभाव होगा, हमें अधिक से अधिक साझेदार होना सीखना होगा। निजी उद्यमिता से हटकर सार्वजनिक और सामान्य हित को बढ़ाने वाली मूल्य प्रणाली को व्यक्तिगत हित में सशक्त करना होगा।
(ङ) पांच : हमारी रोजगार गारंटी योजनाओं और कौशल विकास को क्रियान्वित करते हुए हमें सांस्कृतिक, प्रौद्योगिकीय और पारंपरिक कौशल को विधिवत मान्यता देनी चाहिए। वास्तव में कोई भी अकुशल नहीं है। ज्ञानवान समाज को प्रत्येक व्यक्ति की अद्वितीय क्षमता को उपयोग में लाना होगा। हमें कलाकारों, कार्य निष्पादकों, वास्तुकारों आदि को स्कूल में हमारे बच्चों को उनकी कला सिखाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा और उस युवा पीढ़ी को पोषित करना होगा जो सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था में योगदान देना चाहती है।
(च) छह: मैं पिछले चार वर्षों से उच्च शिक्षण के विभिन्न संस्थाओं के कुलपतियों और निदेशकों से बातचीत करता रहा हूं। मैंने उनसे शिक्षा के प्रत्येक सबसेट में नवोन्वेष को प्रोत्साहित करने के लिए दबाव डाला है ताकि युवा पीढ़ी एक रचनात्मक और समस्या के समाधान करने वाले मस्तिष्क में विकसित हो सके। हमें अपनी शैक्षिक प्रणाली को समकालीन सामाजिक अपेक्षाओं के अनुकूल बनाना होगा।
(छ) सात : हम अपने रोजमर्रा के जीवन में बहुत सी छोटी-छोटी समस्याओं का सामना करते हैं परंतु पद्धतिबद्ध समाधानों की अपेक्षा हम इन समस्याओं के साथ रहना सीख जाते हैं। हमें अपनी मानसिकता में गहन रूप से अंत:स्थापित जड़त्व से निपटना होगा और अपने आप से लगातार प्रश्न पूछना होगा : मैं इस समस्या को कैसे सुलझा सकता हूं? क्या मैं अब भी प्रयास कर सकता हूं? इसमें कोई हर्ज नहीं यदि मैं अनेक बार असफल भी रहूं।
(ज) आठ : हमें तात्कालिकता की समझ का विकास करना होगा। समय किसी का इंतजार नहीं करता। एक भयंकर स्पर्द्धात्मक वातावरण में जल्दबाजी में होना और अधीर होना एक आवश्यक गुण है।
(झ) नौ : हमें अदक्षता, क्षुद्रता और कार्य की बेकार गुणवत्ता को सहन नहीं करना चाहिए। वस्तुएं और सेवाएं प्रदान करते हुए हमारे प्रयास सौंदर्य और कार्य निष्पादन के उच्च मानदंड हासिल करने के होने चाहिए।
13. इससे भी कहीं अधिक है जो किया जा सकता है और किया जाना चाहिए। मुझे भारत को एक रचनात्मक, करुणामयी, सहयोगी और नवोन्वेषी समाज बनाने के लिए आपके विचार सुनने में प्रसन्नता होगी। मेरी सरकार आपके विचारों को रचनात्मक ढंग से उपयोग में लाना चाहती है। इससे भी अधिक श्रेष्ठ भविष्य के लिए ज्ञान और संस्कारों से समृद्ध परंतु आर्थिक रूप से गरीब हमारे समर्थन के पात्र हैं। अगर हम अपने जड़त्व पर कुछ हद तक विजय पा सकें, अपने इर्द गिर्द होने वाले गलत के प्रति सदैव शिकायत न करते रहें और उसके स्थान पर सही उज्ज्वल और रचनात्मक पर ध्यान दे सकें तो हम सचमुच अपने कार्य करने के ढंग और मानसिकता में परिवर्तन ला सकते हैं। महान देशों को अपनी सामाजिक समृद्धि को फिर से वापस लाना होगा और पंक्ति के अंत में शामिल करने के लिए सामाजिक अभिलाषाओं को पुन: परिभाषित करना होगा।
14. मैं आपके स्वाथ्यवर्द्धक, खुशहाल और सफल भविष्य की कामना करता हूं। आप हमारे समाज में रचनात्मक और ताकतों के साथ संलग्न रहें। इसी प्रकार से भारत न केवल विकसित होगा बल्कि एक सचेत और साझेदार समाज बन सकेगा।
जय हिंद!