आतंकरोधी सम्मेलन-2016 के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण
जयपुर : 02-02-2016
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1. मुझे आज संध्या राजस्थान सरकार के सहयोग से इंडिया फाउंडेशन द्वारा आयोजित आतंकरोधी सम्मेलन के दूसरे संस्करण का उद्घाटन करने के लिए आपके बीच उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है। यह जानकर खुशी हुई है कि इस सम्मेलन के द्वारा विश्व आतंकवादी संगठनों से मुकाबला करने के तरीकों पर विचार-विमर्श के लिए आतंकरोधी अभियानों,योजनाओं तथा जागरूकता प्रसार में शामिल क्षेत्र अभियानकर्ताओं,सुरक्षा एजेंसियों के वरिष्ठ अधिकारियों,नीति निर्माताओं, विद्वानों तथा सरकारी नेताओं को एकजुट किया गया है।
2. शांति, तार्किक चेतना का प्रमुख उद्देश्य तथा एक नैतिक क्षेत्र है। यह सभ्यता की नींव तथा आर्थिक सफलता की आवश्यकता है। तथापि हम कभी भी एक आसान सवाल का उत्तर नहीं दे पाए हैं : शांति हमसे इतनी दूर क्यों है?शांति प्राप्त करना टकराव से अधिक कठिन क्यों है?ये प्रश्न हैं जिन पर हमें एक सभ्यता और समाज के तौर पर विचार करना होगा।
देवियो और सज्जनो,
3. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय क्रांति के साथ बीसवीं सदी के समाप्त होने के बाद,हमारे पास शांति और समृद्धि के प्रति आशान्वित होने के कुछ कारण थे। यह आशा इस सदी के प्रथम पचास वर्षों में फीकी पड़ गई है। क्षेत्रीय अस्थिरता में चिंताजनक वृद्धि के कारण व्यापक हिस्सों में अभूतपूर्व अशांति है। आतंकवाद की बुराई ने युद्ध को इसके सबसे बर्बर रूप में बदल दिया है। इस भयानक दैत्य से अब विश्व का कोई भी कोना सुरक्षित नहीं है।
4. आतंकवाद उन्मादी उद्देश्यों से प्रेरित है,नफरत की अथाह गहराइयों से संचालित है,यह उन कठपुतलीबाजों द्वारा भड़काया जाता है जो निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार के जरिए विध्वंस में लगे हुए हैं। यह बिना किसी सिद्धांत की लड़ाई है,यह एक कैंसर है जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता;यह केवल बुराई है।
5. निस्संदेह आतंकवाद वर्तमान में मानवता के प्रति एकमात्र सबसे गंभीर खतरा है। आतंकवाद एक विश्व खतरा है जो सभी राष्ट्रों के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती पैदा कर रहा है। कोई भी कारण आतंकवादी कृत्यों को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकता। यह अत्यावश्यक है कि विश्व एकजुट होकर बिना राजनीतिक सोच-विचार के आतंकवाद के विरुद्ध कार्रवाई करे। इसलिए,चाहे कोई कारण या स्रोत हो आतंकवादी को न्यायसंगत न ठहराने का संकल्प लेना होगा।
6. 20वीं शताब्दी के अंत तक,आतंकवाद के क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय संबंध थे। पहले अलकायदा और अब आई एस के उभरने से ये सीमाएं टूट चुकी हैं। गैर-राष्ट्रीय तत्त्व स्वयं राष्ट्र बनने का प्रयास कर रहे हैं,समाजों में कट्टरवादी विचारधाराएं फैला रहे हैं,युवाओं को आकर्षित करने के लिए पूरी ताकत से प्रौद्योगिकियों का प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में,राजनीतिक और सैन्य रणनीतियां पर्याप्त नहीं होंगी। हमें सामाजिक,आर्थिक, धार्मिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा।
देवियो और सज्जनो,
7. आतंकवाद के इतिहास में, 11सितंबर, 2001 को अमरीका पर हुआ आतंकी हमला निश्चित तौर पर एक परिवर्तनकारी घटना थी। इस घटना ने अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में आधुनिक आतंकरोध का उद्भव सुनिश्चित किया। इस अकेली घटना ने आतंकरोध क्षेत्र में बहुत से ऐसे प्रयासों को जन्म दिया जिन्हें हम अंतरराष्ट्रीय स्तर तथा क्षेत्रीय और घरेलू स्तरों पर देख रहे हैं। आतंकवाद के खतरे का सामना करने पर,पाश्चात्य जगत ने कार्यनीति और व्यूहकौशल पर काफी कुछ किया है तथा परिणाम भी हासिल किए हैं। हमें ध्यानपूर्वक जांच-पड़ताल करनी होगी और इन कार्यनीतियों की सफलता और विफलता से सबक सीखने होंगे।
8. इसी तरह हमें यह भी भलीभांति याद रखना चाहिए कि दक्षिण एशिया दशकों से विभिन्न रूपों में आतंकवादी हिंसा का सामना कर रहा है। इस आतंकवाद का विचित्र स्वरूप है। इसका मुकाबला करने के लिए भारत सहित दक्षिण एशियाई देशों ने कुछ क्षमताएं विकसित की है। इसी प्रकार हमें इन कार्यनीतियों की प्रभावशीलता तथा अपनी आतंकरोधी क्षमताओं पर इनके असर पर चर्चा और विचार-विमर्श करना होगा।
9. आतंकरोधी रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण पहलू गोपनीय सूचनाओं के संग्रहण और मिलान के जरिए हमलों को रोकने के लिए क्षमता निर्माण,प्रौद्योगिक क्षमताओं का विकास, विशेष बलों की स्थापना तथा विशेष कानूनों को लागू करना है। यद्यपि हमने इस दिशा में कुछ तंत्रों का विकास किया है परंतु इन प्रयासों को तेज करने की अभी और गुंजायश है।
10. आतंकवाद विरोध का अर्थ सामान्यत: कार्यनीतियों,शस्त्रों, बल के स्तरों और गोपनीय सूचनाओं का संग्रहण माना जाता है। ये तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं परंतु प्रमुख जोर आतंकवाद के राजनीतिक प्रबंधन पर होना चाहिए। इसमें विचारधारा के मुद्दों पर ध्यान देना तथा उन देशों से निपटना शामिल है जो आतंकवाद को प्रायोजित या उनका सहयोग करते हैं। यह अत्यावश्यक है कि विश्व एक स्वर में,बिना भेदभाव के आतंकवाद के सभी तरीकों को अस्वीकार करे तथा उन राष्ट्रों पर प्रतिबंध लगाए जो राज्य नीति के साधन के तौर पर आतंकवाद को सहयोग या प्रायोजित करते हैं।
11. हम इस सच्चाई को नहीं भूल सकते कि नागरिक समाज मोर्चा और रणक्षेत्र दोनों हैं जिसकी सुरक्षा और हिफाजत करनी होगी। नागरिक समाज की एकजुटता की बजाय उसका विघटन करना बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यनीति नहीं है। बाद वाला रास्ता कट्टरतावाद की ओर जाता है जिससे बाद में स्पर्द्धात्मक हिंसा पैदा होती है। सामाजिक अखंडता की इस प्रक्रिया में प्रबुद्धजनों और नागरिक समाज को बड़ी भूमिका निभानी है। भारत जैसा बहुलवादी और समावेशी समाज बहुसांस्कृतिक रहन-सहन के लिए एक मॉडल प्रस्तुत करता रहा है। इसी कारणवश विश्व आतंकवादी संगठन भारत में आश्रय प्राप्त करने में असमर्थ रहा है। एक राष्ट्र के तौर पर हमें इस बहुलवाद को मजबूत बनाना है ताकि यह कट्टरवादी विचारधाराओं और विचार प्रक्रियाओं के विरुद्ध रक्षक का काम करे।
देवियो और सज्जनो,
12. ये पहलू इस सच्चाई को दर्शाते हैं कि भावी खतरों को दूर करने के लिए व्यापक कार्यनीतियों तथा और अधिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। हमारे आतंकरोधी प्रयास को और लक्ष्यपूर्ण,एकाग्र, अधिक उद्देश्यपरक और कार्यकुशल बनाना होगा। ऐसा करते समय सदैव यह दुविधा रहती है कि क्या हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता अथवा मानवाधिकारों को नुकसान पहुंचा रहे हैं?इसलिए हमें व्यापक स्वतंत्रताओं और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के प्रति सजग रहना है। हमें जन-विचार बदल कर,समाज निर्माण तथा गोपनीय सूचनाओं के आदान-प्रदान में अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर आधारित एक ठोस और समेकित आतंकरोधी नीति बनाकर सभी स्तरों पर इस बुराई से मुकाबला करना होगा। कहने की आवश्यकता नहीं है कि इसमें आतंकवाद को सहयोग और उसे कायम रखने वाले वित्तीय नेटवर्कों को बंद करने के लिए ठोस कार्रवाई भी करना शामिल है।
13. मुझे विश्वास है कि यह सम्मेलन वैश्विक आतंकवादी संगठनों द्वारा पैदा की गई चुनौतियों पर विचार-विमर्श करेगा तथा इस खतरे के व्यापक आयामों का मुकाबला करने की दृष्टि से क्षमताओं के आदान-प्रदान की संभावनाओं का पता लगाएगा। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं। मैं आपको तथा सम्मेलन की सफल परिचर्चा के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
जय हिंद!