भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति निलायम पर पुस्तक की प्रति राज्यपाल नरसिम्हन को भेंट की

राष्ट्रपति भवन : 21-12-2015

भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने आज (21दिसम्बर, 2015) राष्ट्रपति निलायम सिंकंदराबाद में तेलंगाना और आंध्रपेदश के राज्यपाल ईएसएल नरसिंम्हन को राष्ट्रपति निलायम,सिकंदराबाद पर पुस्तक की एक प्रति भेंट की। इस अवसर पर हैदराबाद से सुश्री अनुराधा नायक, संरक्षक, वास्तुविद, जिन्होंने बोलारम और राष्ट्रपति निलायम पुरस्तक के अध्याय लिखे हैं, उपस्थित थीं।

पुस्तक का शीर्षक (द प्रेजिडेंसियल रिट्रीट्स ऑफ इंडिया) जिसमें राष्ट्रपति निलायम और द रिट्रीट एट मशोबरा का वर्णन है, को राष्ट्रपति सचिवालय और इंदिरा गांधी नेशलन सेंटर फॉर आर्ट्स से मंगाया गया था। इसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन प्रभाग द्वारा प्रकाशित किया गया है और शीघ्र ही यह इसके काउंटरों पर उपलब्ध होगी। इस पुस्तक का औपचारिक रूप से विमोचन नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 11 दिसम्बर, 2015 को राष्ट्रपति के जन्म दिवस पर किया गया था। पुस्तक का संपादन श्रेष्ठ लेखक गिलियन राइट द्वारा किया गया है जिन्होंने राष्ट्रपति निलायम में जीवन के अध्याय में योगदान दिया है। पुरस्कार विजेता फोटोग्राफर एंडरी जिन पियरे फैंथोम ने फोटो खींचे हैं। राष्ट्रपति निलायम पर अध्यायों के शीर्षक हैं ‘‘द सुप्रीम कमांडर्स सर्दन रिट्रीट: बोलारम’’, ‘‘ऑफ प्रेजिडेंट्स एंड दियर रेजिडेंट्स: राष्ट्रपति निलायम की कहानी’’ और ‘‘द सदर्न सजर्न’’।

पुस्तक में निहित कुछ महत्वपूर्ण रूप से पायी गई बातें:

रेजिडेंसी हाउस, बोलारम 1833 में निर्मित किया गया। इस समय तक कोटि में ब्रिटिश रेजिडेंसी जो कि 1803 में निर्मित की गई थी,रेजिडेंट के प्रधान गृह के रूप में थी। एक गृह बोलारम में निर्मित किया गया था ताकि प्रेजिडेंट अपने सैन्य टुकड़ियों के निकट और निजाम के न्यायालय और बाजारों से दूर रह सके। रेजिडेंसी हाउस की अवस्थिति को सावधानीपूर्वक चुना गया था। यह दक्षिण की ओर सिकंदराबाद सैन्य क्षेत्र द्वारा और उत्तर की ओर बोलारम सैन्य क्षेत्र के द्वारा संरक्षित है।

ब्रिटिश और निजाम के बीच, पूरी 19वीं शताब्दी के दौरान विद्यमान तनाव के बावजूद रेजिडेंस और शासक बोलारम में पड़ोसी की तरह साथ-साथ रहते थे।

यद्यपि देखने में यह उपनिवेशी था, भवन को स्थानीय सामग्री और निजाम सरकार द्वारा दिए गए श्रमिकों के उपयोग से निर्मित किया गया था। 1914 में रेसिडेंसी हाउस के विद्युतीकरण के लिए दी गई संविदा पाई गई है जिसमें भवन का मौलिक ढांचा और कमरों का संगठन दिया गया है। कमरों की व्यवस्था ब्रिटिश उपनिवेश शैली वाले वास्तुकार से अलग है जिसमें इंगित है कि यद्यपि भवन स्थानीय मिस्त्रियों और ठेकेदारों द्वारा निर्मित और निरीक्षित किया गया था तथापि यह ब्रिटिश इंजीनियर द्वारा डिजायन किया गया था।

उपनिवेश डिजायन की एक और पहचान थी मुख्य गृह से रसोईघर का अलग होना। रेजिडेंसी हाउस में ये दोनों स्काइलाइट जैसी पनडुब्बी सहित वॉल्टेड टनल द्वारा जोड़ दिए गए हैं जिससे पूरे घरेलू प्रयोजन के लिए एक आकर्षक और विचित्र रास्ता है।

बंगले की बाह्य सुंदरता की सरलता को आंतरिक बेहतरीन सुंदरता के अनुसार पूरा किया गया था। उत्कृष्ट रूप से एक शताब्दी और उससे भी अधिक अदृश्य रिकॉर्ड्स अब भी हैं जो रेजिडेंसी हाउस की सुंदरता का एक ब्यौरा देते हैं।

रेजिडेंट्स की पत्नियां निजाम के स्तर से कम नहीं रहना चाहती थीं। सर फरिदून जंग को एक पत्र में रेजिडेंसी के विद्युतीकरण और लैंप के प्रतिस्थापन के बाद लेडी वॉयलेट पिन्ही ने लिखा, ‘मौजूदा प्रकाशसज्जा पुराने झूमरों की हैं,जो कि अपने आप में अतिसुंदर हैं परंतु, उनके खाली जगह में मोमबत्तियां नहीं हैं जिससे बहुत भद्दा लग रहा है। मैं उन्हें किंग कोठी पर महामहिम के लैंप की तरह बनाना चाहती हूं’।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैन्य क्षेत्र में गतिविधियों के कारण स्वतंत्रता तक अंतिम दशक में रेजिडेंट्स ने हैदराबाद रेजिडेंसी का उपयोग पूरी तरह से छोड़ दिया और बोलारम चले गए।

अनुसंधान से स्पष्ट हुआ है कि इस क्षेत्र में पहली सैन्य टुकड़ी का उल्लेख नवम्बर 1782 में थी। 1812 में रसल ब्रिगेड के बनने पर बोलारम का पहला सैन्य आधार बना। यह उचित नहीं है कि बोलारम सिकंदराबाद का विस्तारित हिस्सा था और 19वीं शताब्दी के मध्य में विकसित हुआ था।

बोलारम सदैव एक लघु सैन्य क्षेत्र था, और स्थानीय लोगों द्वारा इसको चिन्नालश्करर लघु छावनी का नाम दिया गया। बोलारम में स्थायी निर्माण 1841 में शुरू हुआ (सिकंदराबद के जैसे नहीं, जिसका निर्माण 1860 के बाद हुआ)।

बोलारम के घरों में सबसे प्रधानघर रेजिडेंट के प्रथम सहायक का घर, निजाम और सलारजंग के घर थे। 1846 से विद्यमान बोलारम में द होली ट्रिनिटी चर्च निजाम द्वारा दान में दी गई भूमि पर निर्मित किया गया था,निर्माण की लागत क्वीन विक्टोरिया द्वारा दी गई थी। लगभग डेढ़ शताब्दी बाद क्वीन एलीजाबेथ द्वितीय ने अपने पति प्रिंस फिलिप के साथ चर्च का दौरा किया।

ब्रिटिश लाइब्रेबी में प्राप्त रिकॉर्डों से बोलारम रेजिडेंसी तक वायसराय के दौरे के प्रमाण मिलना संभव हो गया है उदाहरण के लिए 1884में लॉर्ड रिपन यहां पर रहे जब वे प्रशासनिक अधिकारों सहित युवा निजाम महरूम अली खान को प्रशासनिक शक्तियां प्रदत्त के लिए औपचारिक रूप से यहां आए। 1919 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद जिसमें 74,000 भारतीय सैनिकों ने अपने जान की बाजी लगा दी, लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने ब्रिटिश और भारतीय अधिकारियों के लिए यहां पर एक स्वागत समारोह आयोजित किया, और 1944 में आधुनिक भारतीय इतिहास के एक नाजुक दौर में लॉर्ड वॉवेल एक एक रेजिडेंट से मिला क्योंकि उन्होंने पड़ोसी और ऐतिहासिक कोर्स में गोल्फ का एक राउंड खेला था।

1947 में रेजिडेंसी हाउस को निजाम सरकार में परिविर्तित कर दिया गया, जिसमें हैदराबाद रेजिडेंसी और अन्य राजनैतिक भवन जो ब्रिटिश द्वारा उपयोग में लाए गए थे, शामिल थे।

अगस्त 1947 और सितम्बर 1948 के बीच के घटनापूर्ण वर्ष में रेजिडेंसी हाउस के उपयोग के लिए अनेक प्रस्ताव आए। निजाम सरकार का स्वास्थ्य विभाग इसे टी.बी सैनिटोरियम बनाना चाहता था और शिक्षा के निदेशक इसे एक सार्वजनिक स्कूल के रूप में इस्तेमाल करना चाहते थे जिसमें दोनों राजकुमार छात्र के रूप में रहे।

के.एम मुंशी, भारत का एजेंट जनरल (5 जनवरी से 21 सितम्बर 1948) ने लॉर्ड माउंटबेटेन की सिफारिश पर इसे 05 से 15 जनवरी 1949 तक अल्पावधि के लिए अपने निवास के रूप में उपयोग किया।

हैदराबाद राज्य का भारतीय युनियन के साथ विलय होने के बाद मिलिट्री राज्यपाल, जनरल जे.एन चौधरी ने इसे अपने सरकारी आवास के रूप में उपयोग किया। वे रेजिडेंसी हाउस में हैदराबाद सोसाइटी के सदस्यों से मुलाकात करते थे।

हैदराबाद राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री एम.के बेलौडी (1949से 1952) को रेजिडेंसी हाउस के मैदान में 01दिसम्बर1949को शपथ दिलाई गई थी और उन्होंने भवन का सचिवालय के रूप में उपयोग किया।

1955 में भारत सरकार द्वारा रेजिडेंसी हाउस को राष्ट्रपति का (दक्षिण में स्थायी मौसमी निवास) बनाने का निर्णय लिया गया और इसे ‘राष्ट्रपति निलायम’ का नाम दे दिया गया।

रोचक तौर पर पूर्व विंग में जो कमरे रेजिडेंट के द्वारा मूल रूप से प्रयोग में लाये जाते थे वे आज राष्ट्रपति के स्टॉफ को आबंटित हैं और पश्चिमी सूट वाले कमरे जिसमें बॉलरूम और रेजिडेंट के अतिथि के लिए कमरे शामिल थे वे आज भारत के राष्ट्रपति के निजि कमरों के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं।

प्रेजिडेंसी हाउस के अंदर से ध्यान हटकर बाहर कर दिया गया है। सुंदर रूप से रखरखाव किए गए बगीचे और उद्यानों में अब प्रत्येक सर्दियों में आगंतुकों का स्वागत होता है जिसका लाभ हैदराबाद के नागरिक भी उठाते हैं। शानदार ग्रेनाइट के शिलाखंड और पुराने इमली, आम, बरगद, नीम और फ्रैंगीपनी के पेड़ आगंतुकों को लुभाते हैं। आम, अनार, अमरूद, कस्टर्ड सेब और नारियलों के पौधे लगाए गए हैं। एक हर्बल गार्डन और एक नक्षत्र गार्डन जो नव नक्षत्रों को दर्शाने के लिए डिजायन किए गए हैं,निलायम के प्राकृतिक दृश्य के उभार में सार्थक हैं।

भारत के राष्ट्रपति ने निलायम को राष्ट्रीय एकता के एक ठोस प्रतीक और दक्षिण में दौरे के एक आधार के रूप में महत्व दिया है। राष्ट्रपति के निलायम के दौरे को सर्दन सर्जन कहा गया है।

यह विज्ञप्ति 14:50 बजे जारी की गई।