भारत के राष्ट्रपति,30 मार्च 2013 को राष्ट्रपति के अंगरक्षक को रजत तूर्य और तूर्य पताका प्रदान करेंगे

राष्ट्रपति भवन : 29-03-2013

भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी,30 मार्च 2013 को, राष्ट्रपति भवन में एक समारोह में, राष्ट्रपति अंगरक्षक को,रजत तूर्य तथा तूर्य पताका प्रदान करेंगे|

राष्ट्रपति भवन के अग्र प्रांगण में एक घंटे के इस समारोह में राष्ट्रपति के अंगरक्षक, राष्ट्रपति के तूर्य तथा तूर्य पताका को ग्रहण करेंगे| प्रस्तुतीकरण परेड के बाद,रजत तूर्य तथा तूर्य पताका के इतिहास और उसके महत्व पर और राष्ट्रपति के अंगरक्षक की वर्तमान भूमिका पर प्रकाश डालते हुये एक दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति होगी|

पेशेवरना सटीकता और कुशल प्रशिक्षण से सज्जित,ये घुड़सवार विभिन्न प्रकार के परंपरागत भारतीय घुड़सवारी कौशल दिखाएँगे और उसके बाद सैन्य बैंड के संगीत के साथ ताल मिलाते हुए दुलकी चाल का प्रदर्शन करेंगे| यह घोड़े और घुड़सवार दोनों के तालमेल की एकसरता,संतुलन और समारोहिक तैयारी का प्रदर्शन होगा|

भारत के राष्ट्रपति के अपने अंगरक्षक होने के नाते,राष्ट्रपति के अंगरक्षक को ऐसी अकेली सैन्य टुकड़ी होने की प्रतिष्ठा प्राप्त है,जिसे राष्ट्रपति के रजत तूर्य तथा तूर्य पताका को धारण करने का गौरव प्राप्त है|

अंगरक्षक को यह सम्मान सबसे पहले 1923 में लॉर्ड रीडिंग द्वारा तब प्रदान किया गया था जब अंगरक्षक ने 150 वर्ष की प्रतिष्ठापूर्ण सेवा पूर्ण कर ली थी | उन्होंने अंगरक्षक को दो तूर्य और तूर्य पताकाएँ प्रदान की थी: एक पताका में कोर के युद्धक ध्वज के साथ `स्टार ऑफ इंडिया` को अलंकृत किया गया था और दूसरे में वायसराय के कोट ऑफ आर्म को उकेरा गया था|

इसके बाद प्रत्येक नए वायसराय ने अंगरक्षक को रजत तूर्य तथा तूर्य पताका प्रदान की| इस परंपरा का आज तक,प्रत्येक नए राष्ट्रपति ने निर्वाह किया है| पताका पर कोट ऑफ आर्म की जगह राष्ट्रपति का मोनोग्राम उकेरा जाता है| डॉ राजेंद्र प्रसाद ने,अंगरक्षक को 14 माय,1957 को अपनी रजत तूर्य तथा तूर्य पताका प्रदान की थी|

इस तूर्य तथा तूर्य पताका को इसके बाद राष्ट्रपति के अंगरक्षक द्वारा हर एक घुड़सवार परेड के दौरान धारण किया जाता है|इस पताका पर राष्ट्र के प्रतीक चिन्हों के साथ केंद्र में राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते हैं|

भारत के राष्ट्रपति,श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा 30 मार्च 2013 को आयोजित यह प्रस्तुति इस प्राचीन परंपरा के अनुरूप होगी तथा यह स्वतंत्रता के बाद रेजिमेंट को मिलने वाली 12वीं रजत तूर्य तथा तूर्य पताका होगी|

राष्ट्रपति के अंगरक्षक इस वर्ष अपनी विशिष्ट सेवा के 240 वर्ष पूरे करेंगे| यह भारतीय सेना की वरिष्ठतम यूनिट है| इसे सभी सरकारी तथा समारोहिक अवसरों पर `राइट ऑफ द लाइन`का सम्मान प्रदान किया जाता है| इस प्रकार राष्ट्रपति के अंगरक्षक सभी रेजिमेंटों और कोरों में अग्रता प्राप्त करते हैं|

आज राष्ट्रपति के अंगरक्षक के रूप में जानी जाने वाली यह यूनिट 1773 में तत्कालीन गवर्नर जनरल,सर वारेन हेस्टिंग्स ने 50 चुनिंदा घुड़सवारों के साथ गठित की थी| बाद में, अंगरक्षक की इस संख्या में,बनारस के राजा चेत सिंह द्वारा भेंट किए गए 50 और घुड़सवार जोड़े गए और इस प्रकार अंगरक्षक की पूरी संख्या 100 घोड़े और घुड़सवार की हो गयी|

वर्षों से, अंगरक्षक एक चुनिंदा घुड़सवार यूनिट बनी रही है,जिसका कार्य मुख्यतः गवर्नर जनरल की व्यक्तिगत तथा युद्ध भूमि में सुरक्षा करना था,जो प्रायः युद्ध भूमि में अपनी सेना का नेतृत्व करते थे|

आज, राष्ट्रपति के अंगरक्षक खास शारीरिक मानदंडों वाले चुनिंदा सैनिकों की एक छोटी सी यूनिट है, जिसे एक कड़ी चयन प्रक्रिया से चुना जाता है| इसके अधिकारी और सैनिक,टैंक कर्मियों तथा वायुधारित सैनिकों,दोनों के रूप में युद्धक कार्यों में प्रशिक्षित किए जाते हैं| इस विशिष्ट सैन्य टुकड़ी का भारतीय सेना की बेहतरीन परंपरा के अनुरूप सेवा का एक शानदार और प्रशंसनीय रिकॉर्ड है तथा यह अकेली ऐसी रेजिमेंट है,जिसके सैनिक प्रशिक्षित घुड़सवार,छाताधारी सैनिक और टैंककर्मी हैं|

यह विज्ञप्ति 12:15 बजे जारी की गई