पंढरपुर अर्बन को-आपरेटिव बैंक लिमिटेड के शताब्दी समारोहों के उद्घाटन के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

पंढरपुर, मुंबई : 29-12-2012

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विशिष्ट देवियो और सज्जनो,

भारत में ‘दक्षिण की काशी’ मानी जाने वाली इस तीर्थ नगरी के लोगों के बीच आकर मुझे वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव तथा चोखामेला जैसे महान संतों ने यहां अपने आध्यात्मिक जीवन का महत्त्वपूर्ण समय बिताया। पंढरपुर अपने पवित्र और धर्मपरायण लोगों के लिए जाना जाता है जहां लोग भेदभाव त्याग कर आपसी सम्मान और एकता के साथ रहते हैं। मैं आप सभी को अपनी बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

भारत में सहकारिता आंदोलन की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में पाई जाती है। भारत में पहली आपसी सहायता समिति संभवत: ‘अन्योन्य सहकारी मंडली’ थी जिसे पूर्व बड़ोदा रियासत में 1889 में गठित किया गया था। सहकारी ऋण समितियां अपने शुरुआती दौर में, सामुदायिक आधार पर अपने सदस्यों की उपभोग आधारित ऋण की जरूरतों को पूरा करने के लिए जानी जाती थी। बचत तथा स्वयं सहायता की आदतों का समावेश करने वाली वेतनभोगी सोसाइटियों ने, खासकर मध्य वर्ग और संगठित श्रमिकों के बीच, इस आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1904 में सहकारी ऋण समिति अधिनियम के बनने से इस आंदोलन को वास्तविक प्रोत्साहन मिला। पहली अर्बन सहकारिता ऋण समिति गतिविधि पूर्व मद्रास प्रदेश के कांचीपुरम में अक्तूबर, 1904 में सामने आई थी। सहकारी ऋण समिति अधिनियम 1904 में, गैर-ऋण समितियों के गठन को बढ़ावा देने के लिए, इसके आधार को व्यापक बनाने के लिए 1912 में संशोधित किया गया था। यह जल्दी ही एक ऐसी सुसंगठित और उपयोगी प्रणाली के रूप में स्थापित हो गई कि 1913-14 के बैंकिंग संकट के दौरान जब 57 से अधिक संयुक्त स्टॉक बैंक विफल हो गए तो स्टॉक बैंकों से सहकारी अर्बन बैंकों में धन जमा करने के लिए भगदड़ मच गई थी। वर्षों के दौरान, अर्बन सहकारिता बैंकों की संख्या, आकार तथा व्यवसाय की मात्रा में बहुत बढ़ोतरी हुई है।

हमारे देश में सहकारी बैंकों को बहुत-सी चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है; उनके कार्यनिष्पादन में सेक्टरों, गतिविधियों तथा क्षेत्रों के अनुसार अंतर है; उन्हें अपनी दक्षता में सुधार करके अपना पुन: अभिमुखीकरण करना होगा, और जिन समुदायों को वह सेवा दे रहे हैं, उनकी जरूरत के मुताबिक खुद को पेशेवराना तरीके से विकसित करना होगा। संभवत: वे अभी भी हमारे देश के सुदूर क्षेत्रों तक पहुंचने का सबसे अच्छा साधन हैं जहां निर्धन तथा सीमांत तबके के पास विश्वसनीय बैंक विकल्प मौजूद नहीं हैं।

पंढरपुर अर्बन बैंक, 1912 में केवल 45 सदस्यों और 957/- रुपए की छोटी सी जमा राशि से शुरू हुआ था और मैं समझता हूं कि आज इसके 38152 सदस्य हैं, 16 शाखाएं हैं तथा एक हजार करोड़ रुपए से अधिक का व्यवसाय है। मुझे बताया गया है कि इस बैंक ने नए क्षेत्रों में व्यवसाय शुरू किया है और अपनी सेवाओं का काफी विविधिकरण किया है। वर्षों के दौरान इसने कई धर्मार्थ तथा परोपकारी पहलें शुरू की हैं।

मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि स्थिर प्रगति और सुदृढ़ नीतियों की अपनी पृष्ठभूमि के चलते, पंढरपुर अरबन को-आपरेटिव बैंक निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा और इस समुदाय के आर्थिक क्रियाकलापों की सेवा और सहायता करता रहेगा।

मैं, पंढरपुर सहकारी बैंक के प्रबंधन तथा इसके शेयरधारकों को इसके शताब्दी समारोहों के अवसर पर एक बार फिर से बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। मैं आप सभी के सुखद और मंगलमय नववर्ष के लिए कामना करता हूं।

जय हिंद!