ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कोरापुट के चौथे स्थापना दिवस पर राष्ट्रपति का अभिभाषण

नई दिल्ली से वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए, राष्ट्रपति भवन : 30-08-2013

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1. मुझे आपके विश्वविद्यालय के चौथे स्थापना दिवस के अवसर पर आपको संबोधित करते हुए प्रसन्नता हो रही है। मुझे 2011 में प्रथम दीक्षांत समारोह पर इस विश्वविद्यालय के साथ संपर्क का अवसर मिला था। मैं तब वित्त मंत्री था। आज जबकि मैं आपसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा के माध्यम से आपसे बात कर रहा हूं, यह पहली बार है कि मैं वर्चुअल मीडिया का प्रयोग करते हुए एक उच्च शिक्षा संस्थान को संबोधित कर रहा हूं। इस वर्ष राष्ट्रपति भवन में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसमें एक प्रौद्योगिकी सक्षम साधन के लिए एक सिफारिश की गई थी। मैं प्रौद्योगिकी के नवान्वेषी प्रयोग के आह्वान को स्वीकार करने के लिए इस विश्वविद्यालय की सराहना करता हूं। इस पहल से दूरियां समाप्त करने और अकादमिक समुदायों को मिलाने में सफलता मिलेगी।

2. ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना 2009 में महत्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले क्षेत्र कोरापुट में हुई थी। इसने गुणवत्तायुक्त शिक्षा के विस्तार के निरंतर प्रयास किए हैं। मुझे बताया गया है कि यह विश्वविद्यालय भाषा, सामाजिक विज्ञान, मौलिक विज्ञान और विकास अध्ययन में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहा है। मैं अनुभव करता हूं कि यह विश्वविद्यालय प्राचीन विचारों को आधुनिक शिक्षा के शिक्षा के साथ सामंजस्य करने की आदर्श स्थिति में है। इस कार्य को करने का एक तरीका प्राचीन भारतीय भाषाओं के अध्ययन को प्रोत्साहित करना है। उभरती हुई शाखाओं को आरंभ करने के निरंतर प्रयासों से विद्यार्थियों को व्यापक पेशेवर विकल्प उपलब्ध होंगे। इससे क्षेत्र के विद्यार्थियों का सार्थक रूपांतर हो पाएगा। यह श्रेय प्रबंधन और शिक्षकों को जाता है कि इस विश्वविद्यालय ने चार वर्ष की छोटी सी अवधि में उल्लेखनीय विकास किया है। इसने इस वर्ष जनजातीय क्षेत्रों में सर्वोत्तम उभरते हुए विश्वविद्यालय पुरस्कार प्राप्त किया है। मैं इस पुरस्कार के लिए आप सभी को बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि आप निष्ठा और समर्पण की इसी भावना के साथ आगे बढ़ते रहेंगे।

प्यारे विद्यार्थियों :

3. भारत लोकतांत्रिक शासनतंत्र और बहुलवादी समाज का एक ज्वलंत उदाहरण है। लोकतंत्र में न केवल अधिकार बल्कि दायित्व भी शामिल होते हैं। शिक्षित युवकों को एक पुन: उत्थानशील नए भारत के निर्माण में एक प्रमुख भूमिका निभानी होगी। राज्य और समुदाय शिक्षा और आत्मविकास की सुविधाएं प्रदान करने के लिए युवाओं में निवेश करते हैं। आप जो शिक्षा प्राप्त करेंगे उससे आपको कुछ अलग करने का अवसर मिलेगा। यही समय है जब आप हमारे सुंदर, जटिल और कभी कभी कठिन और मुखर लोकतंत्र के साथ जुड़ने के लिए स्वयं को तैयार करेंगे।

4. अपने सपनों का देश बनाने के लिए हमें योग्य और समर्पित लोगों की आवश्यकता है। हमारे विश्वविद्यालयों को चरित्रवान और ईमानदार पुरूष व महिलाएं तैयार करने होंगे। इन मूल्यों के बिना जीवन में कुछ भी महत्वपूर्ण हासिल करना असंभव है। शैक्षिक कौशल के साथ-साथ हमारे विश्वविद्यालयों को चरित्र निर्माण पर अत्यधिक बल देना चाहिए।

5. महात्मा गांधी ने कहा था ‘‘वास्तविक शिक्षा आपकी सर्वोत्तम प्रतिभा को उजागर करती है। मानवता की पुस्तक से बेहतर कोई पुस्तक नहीं है।’’ मानवता की पुस्तक का अनुकरण करने के बापू के आह्वान से वर्तमान युवाओं की नैतिक दुविधाओं का समाधान हो सकता है। हमारे समाज में मूल्य पतन को रोकना होगा। हमारे शैक्षणिक संस्थानों का कर्तव्य है कि वे हमारे युवाओं के मन को संवारें और उनमें मातृभूमि के प्रति प्रेम, कर्तव्य निर्वहन, सभी के प्रति सहृदयता, बहुलवाद के प्रति सहिष्णुता, महिलाओं के प्रति सम्मान; जीवन में ईमानदारी; आचरण में आत्मसंयम; कार्य में दायित्व और अनुशासन जैसे आवश्यक सभ्यतागत मूल्यों का समावेश करें।

6. उच्च आर्थिक विकास हमारी विकास कार्यनीति का एक अभिन्न हिस्सा है। इसे प्राप्त करना ज्ञानपूर्ण अर्थव्यवस्था का उपयोग करने की हमारी क्षमता पर निर्भर है। इसे एक ठोस उच्च शिक्षा प्रणाली की नींव पर निर्मित करना होगा। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि अभूतपूर्ण विस्तार का एक चरण था। इक्कीस केन्द्रीय विश्वविद्यालयों सहित, पैंसठ केन्द्रीय संस्थाएं इस दौरान आरंभ की गई। परंतु श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले अकादमिक संस्थान अभी भी बहुत कम संख्या में हैं। परिणामस्वरूप बहुत से प्रतिभावान विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले जाते हैं। यदि हम एक विश्वशक्ति बनना चाहते हैं तो हमें इस प्रतिभा भंडार को नहीं खोना चाहिए। एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में एक भी भारतीय विश्वविद्यालय को विश्व के दो सौ सर्वोच्च विश्वविद्यालयों में शामिल नहीं किया गया। हमारी प्राचीन अकादमिक प्रणाली में तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदंतपुरी जैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय शामिल थे। इसका संचालन कुशल प्रबंधन शक्ति से होता था। उच्च शिक्षा में अपने नेतृत्व की हैसियत को पुन: प्राप्त न कर सके इसका कोई कारण नहीं है। हमें उत्कृष्टता की संस्कृति निर्मित करनी होगी। भावी चुनौतियों को पूरा करने के लिए हमें अपनी उच्च शिक्षा प्रणाली में एक लचीला दृष्टिकोण और नवान्वेषी कार्यनीति अपनानी होगी।

7. अधिकांश विद्यार्थी भौगोलिक अवस्थिति या आर्थिक कठिनाई की वजह से उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाते। हमारे विश्वविद्यालयों को सुगम्यता, गुणवत्ता, वहनीयता और शिक्षकों की कमी की समस्याओं पर ध्यान देने के लिए ई-शिक्षा जैसे प्रौद्योगिकी समाधानों का प्रयोग करना चाहिए। सुगम्यता और वहनीयता से अधिक समावेशन हो पाएगा। इससे प्रवेश दर बढ़ेगी और स्नातकों की गुणवत्ता में विस्तार होगा।

मित्रो:

8. केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को देश में उच्च शिक्षा के मानदण्ड स्थापित करने की अग्रणी भूमिका सौंपी गई है। उन्हें इस क्षेत्र में अन्य शिक्षण संस्थाओं की सुदृढ़ता का माध्यम बनना चाहिए। उन्हें शिक्षा और सामाजिक विकास के बीच कड़ी मुहैया करवानी चाहिए। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि केंद्रीय ओडिशा विश्वविद्यालय ने शिक्षा आधारित विकास के एक मॉडल का निर्माण किया है। 2010 में स्थापित केन्द्रीय जनजातीय सशक्तीकरण और समुदाय विकास केन्द्र स्थानीय जनजातीय युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान कर रहा है। मुझे बताया गया है कि जनजातीय अध्ययनों पर राजीव गांधी पीठ क्षेत्र के जनजातीय लोगों के जीवन पर अनुसंधान करने के लिए स्थापित की जा रही है।

9. हमारे विश्वविद्यालयों ने निकटवर्ती इलाकों में विस्तार कार्य के जरिए स्थानीय प्रतिभावान युवाओं के सक्रिय सहभागिता को सुनिश्चित किया है। इससे रोजगार क्षमता बढ़ी है और वंचितों की ऊपर की ओर गतिशीलता भी शुरू हुई है। इससे एक ऐसे भारत का सपना साकार करने में मदद मिलेगी जो प्रगतिशील और समतापूर्ण होगा। यहां मैं एक चेतावनी देना चाहूंगा शिक्षा के लोकतंत्रीकरण के नाम पर, अकादमिक उत्कृष्टता के प्रयास को कम प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए। हमें ऐसी किसी भी प्रवृति को रोकना होगा।

प्यारे विद्यार्थियो:

10. नवान्वेषण भविष्य में विकास का एक प्रमुख कारक होगा। हमारी शैक्षिक प्रणाली में नवान्वेषण कार्यकलाप को प्रोत्साहित करना चाहिए। इस वर्ष आरंभ की गई विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवान्वेषण नीति में जमीनी नवान्वेषण पर नजर रखने को आवश्यक बताया गया है। हमारे उच्च शिक्षा केन्द्रों को इस नीति को अमल में लाने का मुख्य माध्यम बनना चाहिए। मैं, ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय से आग्रह करता हूं कि वह एक नवान्वेषी संस्कृति के प्रोत्साहन के ठोस उपाय शुरू करे।

11. अंत में, मैं आपसे कहना चाहूंगा कि आप सत्य, ज्ञान और कठोर परिश्रम को अपने जीवन के स्थायी मित्र बना लें। इससे आपको चुनौतियों पर विजय प्राप्त करने का विश्वास तथा जीवन में सफलता के साधन हासिल होंगे। कन्फूशियस ने कहा था ; ‘‘शिक्षा से आत्मविश्वास पैदा होता है; आत्मविश्वास से उम्मीद पैदा होता है; उम्मीद से शांति पैदा होती है।’’ आपको सदैव अपने मन को खुला रखना चाहिए और खुद में सीखने की एक दृढ़ आकांक्षा पैदा करनी चाहिए। मैं आपके प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं। मैं ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रबंधन और शिक्षकों के लिए आने वाले वर्षों में और अधिकाधिक उपलब्धियों के लिए भी कामना करता हूं।

धन्यवाद। 
जय हिन्द।