राष्ट्रपति ने कहा, विदेश सेवा के अधिकारी विश्व के समक्ष भारत की गाथा के प्रवक्ता, व्याख्याता और वाचक हैं
राष्ट्रपति भवन : 06-04-2016
भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी प्रशिक्षुओं (2014और 2015 बैच) ने आज (6 अप्रैल, 2016) राष्ट्रपति भवन में भारत के राष्ट्रपति से भेंट की।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि विदेश सेवा के अधिकारी विश्व के समक्ष भारत की गाथा के प्रवक्ता, व्याख्याता और वाचक हैं। राष्ट्रपति ने याद दिलाया कि किस प्रकार कौटिल्य दूत नियुक्त करने के विषय में राजा को सतर्क रहने का परामर्श देते थे। कौटिल्य ने कहा था कि दूत के रूप में नियुक्त व्यक्ति लोभी, मूर्ख और मिथ्याभाषी नहीं होना चाहिए। उन्हें ज्ञानी होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी विदेश नीति की नींव पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने रखी और यह हमारे प्रमुख सभ्यतागत मूल्यों पर आधारित है। जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर दृष्टि रखी और गौर किया कि किस प्रकार उन्हें भारत के हितों के साथ जोड़ा जा सकता है। विदेश नीति विदेशों की परिस्थितियों के संदर्भ में देश के जागरूक स्वहित का विस्तार है। राष्ट्रपति ने ध्यान दिलाया कि यूरोप ने संघर्षपूर्ण शताब्दियों के उपरांत और एक शक्तिशाली संघ का निर्माण किया था। वर्तमान विश्व में ‘भुगतान संतुलन’ और ‘व्यापार शर्तों’ ने शक्ति संतुलन का स्थान ले लिया है।
यह ध्यान दिलाते हुए कि उन्होंने दो बार विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया है, राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा कि उन्हें विदेश मंत्रालय का नेतृत्व करके आनंद आया। विदेश मंत्रालय संभवत: वित्त मंत्रालय के बाद दूसरा उनका पसंदीदा मंत्रालय था, जहां उन्होंने सबसे लम्बे समय तक कार्य किया। उनके मन में अनेक विदेश सेवा अधिकारियों से अपनी बौद्धिक बातचीत की मधुर स्मृतियां हैं, उन सभी के प्रति उनका गहरा सम्मान है।
उन्होंने इस चुनौतीपूर्ण और रोमांचकारी जीवनवृत्त को चुनने के लिए अधिकारी प्रशिक्षुओं को बधाई दी। उन्होंने भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों को विदेश में देश का स्वर बताया और उन्होंने अधिकारियों प्रशिक्षुओं से भारत की नीतियों को अभिव्यक्त करने और उन्हें स्पष्ट करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि उनके आरंभिक वर्ष कठिन हो सकते हैं। उनके पारिवारिक जीवन में व्यवधान आ सकता है और उन्हें मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। परंतु उन्हें विश्वास है कि एक बार समायोजित हो जाने के बाद वे उन्हें काम में पूरी तरह से आनंद आएगा और वे विश्व के विशालतम लोकतंत्र तथा सभ्यता जिसने शताब्दियों तक मानवत का पथप्रदर्शन किया है, के योग्य प्रतिनिधि बन सकेंगे।
यह विज्ञप्ति 1735 बजे जारी की गई