अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर वर्ष 2014 के लिए स्त्री शक्ति पुरस्कार और नारी शक्ति पुरस्कार प्रदान करने के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन; नई दिल्ली : 08-03-2015

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देवियो और सज्जनो,

1. सर्वप्रथम, मैं आपको और आपके माध्यम से भारत की सभी महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई एवं तहेदिल से शुभकामनाएं देता हूं।

2. भारत में हम इस दिन को, भारत की महान महिलाओं की वीरता और अनन्य विरासत,जो हमारी परिकल्पना को लगातार प्रेरित करती रही हैं तथा हमारे देश में महिलाओं के सशक्तीकरण के प्रयासों का स्मरण करते हुए मना रहे हैं। यह उपयुक्त ही है कि भारत सरकार प्रतिवर्ष ऐसी असाधारण आधुनिक महिलाओं को,जिन्होंने महिलाओं के सशक्तीकरण में असाधारण योगदान दिया है,इन महिलाओं के नाम पर राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करते हुए उनको स्मरण करती है।

3. जैसा कि हम जानते हैं संस्कृत में ‘शक्ति’एक संकल्पना का तथा स्त्री की सृजनात्मक शक्ति के मानवीकरण का प्रतीक है। स्त्री शक्ति का अर्थ है महिला की अपने जीवन पर नियंत्रण में सुयोग्यता तथा खुद को सामाजिक,राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से नियंत्रित करना। इसका तात्पर्य है कि उनमें समाज की बाहरी परिधि से हटकर मुख्य धारा में आने तथा इसके केंद्र से प्रभाव का प्रयोग करने की शक्ति है।

4. मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि हमने आठ अतिरिक्त नारी शक्ति पुरस्कार शुरू किए हैं। मुझे यह देखकर भी खुशी हो रही है कि सभी पुरस्कार विजेताओं ने अपने असाधारण परिश्रम,मजबूत बुनियादी उपस्थिति तथा महिलाओं के हितों की गहन जानकारी के द्वारा महिलाओं की सशक्तीकरण के लिए प्रेरणादायक पहलें की हैं।

5. देवियो और सज्जनो, मैं इस अवसर पर उन अनगिनत महिलाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करता हूं जो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ रज्जु हैं। वे हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए खेतों में तथा हमारे देश के आर्थिक विकास के लिए फैक्टरियों में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर मेहनत करती हैं, वे हमारी राष्ट्रीय अवसरंचना को खड़ा करने के लिए परियोजना स्थलों पर कार्य करती हैं तथा वे कारपोरेट कार्यालयों और बैंकों में काम करती हैं। पेशेवरों के रूप में वे अपनी उपलब्धियों में किसी से कम नहीं हैं तथा चिकित्सकों और नर्सों के रूप में, अंतरिक्ष एवं परमाणु वैज्ञानिकों के रूप में तथा सरकारी अधिकारियों और राजनीति में हमारी जनता की प्रगति और विकास की राह तैयार करने में उनकी सेवाएं बहुमूल्य है।

6. इसलिए यह उपयुक्त ही है कि हम यह याद रखें कि महिलाओं का सशक्तीकरण तथा उनकी समानता,स्वतंत्रता तथा गरिमा हमारे देश की महिलाओं का कोई सुदूर लक्ष्य अथवा खयाली आकांक्षा नहीं है। यह उनका पावन अधिकार है। यह कोई ऐसी विशेष सुविधा नहीं है जिसके लिए उन्हें प्रयास करना चाहिए। यह3000 वर्षों से अधिक वर्ष पूर्व हमारे प्राचीन समाजों द्वारा स्वयं के लिए निर्धारित आचार संहिता का एक प्रमुख तत्त्व रहा है। वैदिक सभ्यता में महिलाओं को सदैव उच्चतम सम्मान तथा आजादी दी जाती थी तथा इसके साथ ही उनकी सुरक्षा और हिफाजत समाज का पावन कर्तव्य होता था। यह हमारी संस्कृति है, यह हमारी विरासत है। हमें खुद को यह भूलने नहीं देना है। जब स्वतंत्र भारत के संस्थापकों ने हमारे संविधान का निर्माण किया,तो उन्होंने सुनिश्चित किया कि इसके सिद्धांतों और प्रावधानों में महिला अधिकारों और समानता पर पूरा बल दिया जाए। हमारी केंद्र और राज्य सरकारें महिलाओं के विकास को समुचित प्राथमिकता दे रही हैं।

7. अभी भी, ऐसे सामाजिक रवैए और मनोवृत्तियां मौजूद हैं जो हमारे समाज और अर्थव्यवस्था में भारतीय महिलाओं की स्थिति और दर्जे के सुधार की गति में बाधक है। इसके लिए तत्काल व्यक्तिगत और सासमूहिक आत्मविश्लेषण की जरूरत है। हमें इन कमजोरियों और उनके मूल कारणों की पहचान करनी होगी। हमें भारत की महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन को बाधित करने वाली ढांचागत और संस्थागत रुकावटों को दूर करने के जरूरी प्रयास करने चाहिए। उदाहरण के लिए,महिलाओं के विरुद्ध हिंसा हमारे देश की महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा,कल्याण और क्षमता के प्रति खतरा बनी हुई है। उनमें डर का अहसास भी उनके घूमने-फिरने की स्वतंत्रता तथा शिक्षा,कामकाज और आवश्यक सेवाओं तक पहुंच में बाधक बनता है।

8. अपनी महिलाओं को अपेक्षित स्तर की सुरक्षा तथा हिफाजत प्रदान करने की दिशा में प्रगति की गति में इसके लिए बनाए गए कानूनों के बेहतर कार्यान्वयन के द्वारा तेजी लाने की जरूरत है। हमारे सभी लोगों को महिलाओं के प्रति अपने नजरिये और भंगिमाओं पर और ध्यान देने की जरूरत है। इस बात पर बल देना बहुत जरूरी है कि सभी महिलाओं के साथ सम्मान और शालीनता के साथ संबोधन तथा व्यवहार किया जाना चाहिए। यह प्रशिक्षण बहुत छोटी आयु से ही बच्चों को दिया जाना चाहिए।

9. सबसे प्रमुख मुद्दा जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए, वह यह है कि सच्चे सशक्तीकरण के लिए महिलाओं के जीवन को प्रभावित करने वाले सभी पहलुओं में तालमेल जरूरी है चाहे वह सामाजिक,आर्थिक अथवा राजनीतिक हो। एक दूसरे के साथ संपर्क तथा सशक्तीकरण के सर्वांगीण नजरिये के तहत आपस में जुड़े हुए आयामों के कारण किसी भी एक क्षेत्र में प्रयास न होने या कम होने से परिणाम स्थाई नहीं होंगे अथवा दूसरे अंग द्वारा शुरू की गई गति बेकार हो जाएगी। इसलिए, इस तरह की सतत् प्रक्रिया हमारी सरकारी योजनाओं में बनानी होगी। राज्यों और संघ क्षेत्रों द्वारा महिलाओं के विकास के लिए अपनाई जा रही अच्छी परिपाटियों की पहचान करके उन्हें अपनाना होगा तथा भारत सरकार की स्कीमों में उन्हें व्यापक बनाना होगा। महिला समूहों तथा गैर सरकारी संगठनों के व्यापक नेटवर्क के प्रयासों और पहलों को केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

10. देवियो और सज्जनो, आइए हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर उनकी पूर्ण क्षमता का उपयोग करने तथा हमारे देश के विकास के सभी पहलुओं में सार्थक सहभागिता के लिए भारत की महिलाओं की लैंगिक समानता और सशक्तीकरण सुनिश्चित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुन: दोहराएं।

11. इन्हीं शब्दों के साथ मैं एक बार फिर से स्त्री शक्ति और नारी शक्ति पुरस्कार विजेताओं को बधाई देता हूं। मैं इस कार्यक्रम के आयोजन तथा एक महान कार्य हेतु विशिष्ट पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं को प्रोत्साहित करने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय को बधाई देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिंद!