किंग्स कॉलज, लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड के विद्यार्थियों से भेंट के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 09-09-2014

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मुझे किंग्स कॉलेज,लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग,स्कॉटलैंड के विद्यार्थियों और संकाय सदस्यों से मिलने के लिए इस शाम आपके बीच उपस्थित होकर वास्तव में प्रसन्नता हो रही है। भारत और यूनाइटेड किंग्डम,एक दीर्घ परम्परा और इतिहास तथा बहुआयामी संबंधों से जुड़े हुए हैं। आज शाम आपकी यहां उपस्थिति दोनों देशों के बीच सद्भावना और विश्वास की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है।

देवियो और सज्जनो,

मैं, कनेक्ट इंडिया कार्यक्रम के तहत ‘डिसेबिलिटी एंड इन्क्लूसन: पर्सेप्संस एंड इसूज इन कंटेपरेरी इंडिया’पर अल्पकालीन पाठ्यक्रम आयोजित करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा दिल्ली विश्वविद्यालय की सराहना करता हूं।

मुझे बताया गया है कि इस अल्पकालीन पाठ्यक्रम को निशक्तजनों की समावेशिता की अवधारणा तथा जरूरतों और सहायक प्रणालियों को ध्यान में रखकर डिजायन किया गया है और मुझे विश्वास है कि इस प्रकार के संयोजनों से नई सहस्राब्दि की चुनौतियों और मुद्दों की बेहतर आपसी समझ बन पाएगी। मुझे बताया गया है कि वर्तमान पाठ्यक्रम में भाग ले रहे किंग्स कॉलेज,लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड के विद्यार्थी अध्ययन की विभिन्न विधाओं से जुड़े हुए हैं। इस उद्देश्य के लिए अनेक शैक्षिक रुचियों और पृष्ठभूमियों के विद्यार्थियों का दूसरे देशों में एकत्रित होना भारत के नवीनतम शैक्षिक प्रयासों के प्रति वैश्विक आकर्षण को दर्शाता है।

इस बात को समझते हुए कि हमारे समाज के वंचित तबके, खासकर निशक्तताग्रस्त व्यक्ति,हमारे देश के समग्र विकास की दिशा में महत्वपूर्ण संसाधन हैं,भारत ने इस तरह के वर्गों,खासकर निशक्तताग्रस्त व्यक्तियों, को सशक्त करने के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं। हमारा संविधान अन्य बातों के अलावा,समानता,शिक्षा और जीवन को भारत के प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार मानता है। सामाजिक समावेशन को सही रूप में सुनिश्चित करने के लिए दो स्तरीय कार्यनीति अपनाई गई है। जहां एक ओर,एक समतामूलक सामाजिक व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ने के लिए विशेष उपाय किए गए हैं,वहीं दूसरी ओर, हम अनेक अंतरराष्ट्रीय घोषणाओं और समझौतों को उनकी मूल भावना के साथ कार्यान्वित करने में आगे रहे हैं।

नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर,अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम1995 के प्रावधानों को और मजबूत बनाने के लिए 2006 में एक राष्ट्रीय नीति दस्तावेज भी अपनाया गया है। यह नि:शक्तजनों का शिक्षा,रोजगार और समाज में पूर्ण समावेशन सुनिश्चित करने तथा प्रौद्योगिकी और अन्य सहयोगी प्रावधानों के जरिए पहुंच के तरीकों के लिए उठाए जाने वाले विशेष कदमों को दर्शाता है। भारत नि:शक्तजनों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र तथा दृष्टि बाधित लोगों की पहुंच मुद्रित सामग्री तक बढ़ाने के लक्ष्य से हाल ही में संपन्न मराकेश संधि जैसी अन्य महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधियों का भी हस्ताक्षरकर्ता है।

इस प्रकार जहां एक ओर,भारत उभरती हुई विश्व चुनौतियों तथा आवश्यकताओं के नजरिए से आर्थिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है,वहीं हम यह सुनिश्चित करने के लिए भी कटिबद्ध हैं कि हमारे विकास तथा प्रगति का लाभ हमारे समाज के हर तबके तक पहुंचे। मैं उम्मीद करता हूं कि आपकी भारत की यात्रा के दौरान,आपको भारत द्वारा अमल में लाए जा रहे, तथा जिसके लिए वह कृतसंकल्प हैं उस समावेशन पर आधारित विकास के खाके को नजदीक से जानने और अनुभव करने का अवसर मिला होगा।

हम, सभी के लिए एक समावेशी समाज के महत्व को समझते हैं और हम सभी क्षेत्रों में समता और समानता की दिशा में कार्य कर रहे हैं। इस उद्देश्य के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकियों का उपयुक्त प्रयोग अत्यंत प्रभावी सिद्ध हो सकता है। यह महसूस करते हुए, भारत उन्नत प्रौद्योगिकियों का प्रयोग करके अपनी शैक्षिक पहुंच और सामाजिक सशक्तिकरण को व्यापक बनाने की दिशा में तेजी से अग्रसर है। देश के हर एक स्कूल में ई-कक्षा की अवधारणा को हकीकत बनाने के प्रयास जारी हैं। आज विश्व में नवान्वेषी विचारों का प्रभावी प्रयोग करने पर जोर दिया जा रहा है ताकि सभी इन विचारों से लाभान्वित हो सकें।

हमें शिक्षा और प्रौद्योगिकी का प्रयोग सभी नागरिकों का समावेशन और समानता सुनिश्चित करने के साधनों के तौर पर करना चाहिए। जिन देशों ने अपने ज्ञान और शैक्षिक प्रणालियों को मजबूत बनाया है,उन्होंने ही विकास के उच्च स्तर हासिल किए हैं। सामाजिक चेतना और जागरूकता कार्यक्रम, आंकड़ों का आदान-प्रदान तथा मानव संसाधन की तैयारी ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जिनमें प्रौद्योगिकी बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। शिक्षा और विकास की चर्चा करने पर इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि हमारे समाज के उपेक्षित वर्ग महत्वपूर्ण संसाधन हैं और वे अधिक ध्यान दिए जाने के हकदार हैं।

ऐतिहासिक रूप से, भारत में स्कूल और विश्वविद्यालय दोनों स्तरों पर एक सशक्त शिक्षा प्रणाली रही है। हमारे प्राचीन विश्वविद्यालय तक्षशिला,नालंदा,विक्रमशिला, वल्लभी, सोमपुरा और ओदंतपुरी शिक्षा के विख्यात पीठ थे जो विश्व के विभिन्न भागों के विद्वानों को आकर्षित किया करते थे। वास्तव में,ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में तक्षशिला की स्थापना से लेकर ईसा की बारहवीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय के पतन तक लगभग1500 वर्षों तक भारत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विश्व अग्रणी था। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के‘कनेक्ट टू इंडिया’ कार्यक्रम के माध्यम से,मैं आपको अपनी शिक्षा प्रणलियों की अंतर्दृष्टि तथा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और समाज की जानकारी हासिल करने के लिए आमंत्रित करता हूं।

उम्मीद है कि भविष्य में और अधिक आदान-प्रदान तथा सहयोगात्मक अनुसंधान कार्यक्रम होंगे जो पूरे विश्व में उच्च शिक्षा को और अधिक उत्कृष्ट बनाने के प्रेरक के तौर पर कार्य करेंगे।

मैं आशा करता हूं कि जिस 10दिवसीय पाठ्यक्रम में आप भाग ले रहे हैं,वह आपके मन पर विविध भारतीय संस्कृति तथा इस देश की सामाजिक शक्ति का प्रभाव छोड़ेगा। आपके सभी भावी प्रयासों के लिए मेरी शुभकामनाएं।

जय हिन्द!