नैशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) के वार्षिक दीक्षांत समारोह में भारत के राष्ट्रपति का अभिभाषण
बैंगलोर, कर्नाटक : 28-08-2016
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1. मैं आज बैंगलोर में इस सुविख्यात लॉ स्कूल के दीक्षांत समारोह में उपस्थित होकर प्रसन्न हूं।
2. नैशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू) न्यायपालिका,बार काउंसिल ऑफ इंडिया, कर्नाटक बार काउंसिल,बंगलोर विश्वविद्यालय और कर्नाटक सरकार के संयुक्त प्रयासों के परिणामस्वरूप1986 में अस्तित्व में आया। देश में अपने प्रकार का प्रथम लॉ स्कूल,एनएलएसआईयू की स्थापना कानूनी शिक्षा में सुधार लाने और भारत में कानूनी शिक्षा और अनुसंधान के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने के लिए की गई। मुझे मालूम हैं कि भारत में लॉ स्कूलों के निरंतर संचालित अधिकांश सर्वेक्षणों में एनएलएसआईयू पहला नंबर रहा है। इसके छात्रों, पूर्व छात्रों और संकाय ने पहले से ही देश-विदेश में अपने ज्ञान,बुद्धि, चरित्र और नेतृत्व कौशल के द्वारा अपने लिए एक शानदार कीर्ति स्थापित की है। इसलिए मैं इस उल्लेखनीय उपलब्धि पर इस संस्थान के प्रबंधन,संकाय, पूर्व छात्रों और छात्रों को मुबारकबाद देता हूं। मैं इस प्रसिद्ध संस्थान में आज स्नातक होने वाले छात्रों को भी उनकी सफलता के लिए मुबारकबाद देता हूं।
मित्रो, देवियो और सज्जनो,
कानूनी शिक्षा ने पिछले दो दशकों में परिवर्तन की एक मिशाल कायम की है। एनएलएसआईयू को सैद्धांतिक अवधारणाओं और व्यवहारिक प्रयोग के बीच अंतर को कम कर देना चाहिए। इसे पूछताछ और सही मसलों पर प्रश्न पूछने की भावना को सुलझाना चाहिए।
मैं यह जानकर खुश हूं कि एनएलएसआईयू के पास में आरंभ से ही एक कानूनी सेवा क्लीनिक और महिलाओं का एक केंद्र और एक कानून है जो महिलाओं और समाज के अन्य अलाभान्वित लोगों को कानूनी सहायता और सलाह देता है,और मध्यस्थता और समझौता करके विवादों का सामाधान करता है। एनएलएसआईयू के संकाय और छात्र कॉलेजों और स्कूलों में और बंगलौर के आस पास के शहरों में कक्षाओं के द्वारा महिलाओं और लड़कियों के बीच कानूनी जागरूकरता पैदा करने में भी मदद करते हैं।
मित्रो,
भारत का संविधान विश्व के सर्वश्रेष्ठ संविधानों में से एक है। इसका संचालय सिद्धांत राज्य और नागरिकों के बीच एक समझौता,एक सशक्त जनता- निजी साझेदारी है जिसे न्याय उदारता और समानता के द्वारा पोषित किया गया है। संविधान में एक दूसरी उदारता का प्रतिनिधित्व किया गया है जिसमें इस समय की लिंग,जाति, समुदाय में पारंपरिक असमानता से मुक्ति के साथ-साथ लंबे समय से हमें श्रृंखला में बांधे हुए बेडि़यों से मुक्ति मिली है।
मैं आप सभी कानून के छात्रों से संविधान का ठीक से अध्ययन करने के लिए आग्रह करता हूं। आप हमारी राजनीतिक प्रणाली,इसकी संस्थाओं और संविधान और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को समझें। उन विकल्पों का विश्लेषण करें जो ऐसे देश के निर्माण के लिए बनाए गए थे जैसा कि देश आज है। आप पहचान करें कि देश की अधिकतम क्षमता तक पहुंचने के योग्य होने के लिए बौद्धिक विकल्प आवश्यक है। आप इन विकल्पों में भागीदार हों केवल चुप न रहें। आप इस देश में प्रतिभाशील मस्तिष्कों में से हैं। आपको नीति निर्माताओं को सही नीतियां बनाने में मदद करनी चाहिए। आपको राष्ट्रीय मसलों पर विचार पढ़ने,सीखने और बनाने में इच्छुक होना चाहिए। एक लोकतंत्र बगैर सूचित भागीदरी के स्वस्थ नहीं हो सकता। केवल आवधिक रूप से वोट डालना ही पर्याप्त नहीं है। इसके लिए प्रभावी क्रियान्वयन की आवश्यकता है। शासन और राज्य से संबंधित सभी मामलों में भागीदारी के द्वारा आप वांछित परिवर्तन करें। हमारे सुंदर, जटिल और कभी-कभी शोरगुल युक्त लोकतंत्र के साथ संलग्न होना चुनें। हमारी कानूनी और राजनैतिक संस्थाओं को सुदृढ़ करने और परिशोधन करने में सहायक हों। जो आपने यहां सीखा है उसे आगे बढ़ाएं और दूसरे लोगों को उनके अधिकार और दायित्वों के बारे में समझने में मदद करें। देश को ऐसे बेहतर नागरिक बनाने में सहायता पहुंचाएं जो उन सभी अवसरों तक पहुंचने के योग्य हों जो हमारे देश और समाज ने दिए हैं।
अधिवक्ताओं को इस देश में एक विशेष स्तर दिया गया है क्योंकि समाज उनके द्वारा निष्पादित विशेष कार्यों को पहचानता है। अधिवक्ताओं का कर्तव्य है कि वे जहां भी अन्याय हो,अन्याय का मुकाबला करें । भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने लोकहित अभियोग के द्वारा सामान्य जनता के हाथों में एक सशक्त यंत्र दे दिया है जो लोकतंत्र को मजबूत करता है। मैं भारत के सर्वोच्च न्यायालय प्रति अपना गहरा आभार प्रकट करता हूं।
आपको बहादुर बनना है। यदि आपको रिश्वत लेने के लिए कहा जाए तो आपके भीतर मना करने का साहस होना चाहिए,यदि आपको हिंसा, भ्रष्टाचार अथवा यातना का समर्थन देने के लिए कहा जाए तो आप नहीं कहने का साहस जुटाएं। यदि आप प्रतिहिंसा से डरते हैं तो याद रखें कि एक अन्यायपूर्ण प्रणाली को तोड़ना लगभग कठिन विकल्प चुनना है। महात्मा गांधी जो कि एक अधिवक्ता थे, यदि वे बहादुर न होते और और दक्षिण अफ्रीका में उपनिवेशी शासकों के विरुद्ध लड़ाई करने में कठिन विकल्पों का चुनाव करने में साहस से काम न लेते तो कभी भी सत्याग्रह का यंत्र नहीं बन पाते और भारत की जनता का नेतृत्व कर पाते और स्वतंत्रता में भारत की जनता का नेतृत्व नहीं कर पाते।
कानूनी भाईचारा विशेषकर कानून के छात्र हमारी जनता के अधिकारों और कल्याण की लड़ाई के अग्रणी होने चाहिए। एनएलएसआईयू जैसे विश्वविद्यालय समकालीन चुनौतियों से निपटने में और यह सुनिश्चित करने में आगे होनी चाहिए कि मातृभूमि के प्रति हमारे प्रेम के सभ्यतागत मूल्य, कर्तव्यनिर्वहन,सबके लिए दया, सहिष्णुता,बहुलवाद, महिलाओं का सम्मान,जीवन में निष्ठा, आचार में आत्म नियंत्रण,कार्य की जिम्मेदारी और अनुशासन युवा मस्तिष्कों में पूर्ण रूप से आरोपित हों।
मित्रो, देवियो और सज्जनो,
मैं एनएलएसआईयू के छात्र समुदाय को मस्तिष्क में यह वास्तविकता रखने के लिए अनुरोध करता हूं कि आपकी शिक्षा राज्य और समाज का एक उपहार है। यह भूमि जिसपर आपका विश्वविद्यालय खड़ा है। ये भवन,पुस्तकें जो आपके पुस्तकालय में हैं ऑनलाइन डाटा बेसिस आदि ये सभी आप पर राज्य का निवेश है। इस प्रसिद्ध विश्वविद्यालय से स्नातक छात्रों को निरंतर ऐसे उपाय करने चाहिए जिससे आप अपने देश को वापस चुकता कर सकें।
मैं ‘‘टू ए यंग जज’’ऑन बिइंग सोर्न इन से निम्न उद्धृत करता हूंः-
यह कविता युवा अधिवक्ताओं और इससे अधिक न्यायाधीशों पर लागू होती है। जब आप स्नातक हों तो आप लिखित कानून के प्रति कविता में प्यार करने वाले माली की तरह हैं। अपना गरम खून और अपना हृदय दें। बुद्धिमान और निःस्वार्थ हों। मुझे विश्वास है कि आप सब तकनीकी रूप से समर्थ ज्ञानवान और सामाजिक रूप से सक्रिय व्यवसायिक बनकर हमारे देश के उम्मीदों और अपेक्षाओं की पूर्ति करेंगे। भारत के संविधान को बनाए रखेंगे और हमारे देश के लिए पूर्ण योगदान देंगे। क्योंकि इससे नई सहस्राब्दि की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी।
जय हिन्द।
धन्यवाद।