भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी द्वारा कुलाध्यक्ष सम्मेलन, 2016 के दौरान समापन टिप्पणी

राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली : 18-11-2016

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1. हम इस कुलाध्यक्ष सम्मेलन के समापन तक पहुंच गए हैं। पिछले वर्ष प्रथम कुलाध्यक्ष सम्मेलन से पहले मुझे फरवरी, 2013और फरवरी, 2015 के बीच राष्ट्रपति भवन में आयोजित सात सम्मेलनों में आप में से कुछ का स्वागत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसलिए अपने समापन टिप्पणी करने से पहले मैं राष्ट्रपति भवन में इन सम्मेलनों में सहयोग और भागीदारी के लिए आप सबका आभार प्रकट करता हूं। अपने द्वारा प्रतिनिधित्व करने वाले संस्थानों के प्रमुख के रूप में अपने व्यस्त कार्यक्रम के बावजूद आप मेरे अनुरोध पर सम्मेलन में उपस्थित होते हैं। मैं इसके लिए आप सबके प्रति आभार प्रकट करता हूं।

2. स्पष्ट रूप से मेरे राष्ट्रपति बनने से पहले और उस हैसियत से उच्च शिक्षा के संस्थानों का कुलाध्यक्ष होने में मेरी समझ उच्च शिक्षा क्षेत्र के संबंध में सीमित थी। उच्च संस्थानों को अपने संबोधन में मैंने बार-बार उत्कृष्टता में सुधार लाने और रैंकिंग में सुधार लाने की बात पर बल दिया है। मुझे विश्वास नहीं होता कि हमारे संस्थान उत्कृष्ट नहीं हैं तथापि किसी भी प्रकार से हम रैंकिंग प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहे थे। फिर भी हमारे कुछ संस्थान अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में सर्वोच्च स्थिति में नियमित रूप से स्थान ले रहे हैं। मुझे विश्वास है कि आगामी वर्षों में अन्य भी यहीं करेंगे।

विशिष्ट कुलपति एवं निदेशक ः

3. कुलाध्यक्ष सम्मेलन एक ऐसा मंच प्रदान करता है जिसमें कृषि,फर्माक्यूटिकल्स और मानवता प्रौद्योगिकी,इंजीनियरिंग, विज्ञान और सूचना विचार-विमर्श में प्रौद्योगिकी को संयुक्त रूप से जोड़ते हैं। ऐसे बड़े विद्वानों के एक साथ आने पर हम बहुलवाद के जीवंत उदाहरण बन गए हैं। प्रोफेसर रामचंद्र गुहा कल की बात कर रहे थे, मुझे विश्वास है कि यह सक्रिया विचारों के आदान प्रदान को और हमारे उच्च शिक्षा प्रणाली द्वारा सामना किए जा रहे विभिन्न समस्याओं के समाधान में परिणत होगी। यह मंच ऐसी छतरी नहीं है जो चुनौतियों की स्थिति में आपको शरण देगी बल्कि पेड़ का वह तना है जो उसकी अनेक शाखाओं को बढ़ने में पोषण का कार्य करेगी।

प्रिय मित्रो,

4. उच्च शैक्षिक संस्थान प्रगति के मशालवाहक हैं। संस्थानों का निर्माण केवल ईंट और चूने मसाले का कार्य नहीं है। यह भविष्य की दूरदृष्टता का प्रतिनिधत्व करता है जो हम अपने देश और आने वाली पीढ़ी के लिए चाहते हैं। जाति,लिंग, विश्वास अथवा सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के बावजूद उच्च शिक्षा के संस्थान ऐसे स्थान हैं जहां उत्कृष्टता के अनुसरण में निजी पहचान के ऊपर योग्यता की विजय होती है।

विशिष्ट शैक्षिक संस्थानों के प्रमुखः

5.पिछले चार वर्षों में मैंने बार-बार शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता की उन्नयन की आवश्यकता पर जोर दिया है। यह केवल संकाय की गुणवत्ता में सुधार,संकाय के अभाव को पूरा करने, स्वस्थ अनुसंधान निर्मित करने और नवोन्वेष पारितंत्र,रैंकिंग प्रक्रिया को प्रमुखता देने और उद्योग,विदेशी विश्वविद्यालयों और पूर्व छात्रों के साथ विकास संपर्क बनाने,से ही संभव है। हमें कुछ सफलताएं प्राप्त हुईं हैं। अभी बहुत कुछ किया जाना है। परंतु मुझे विश्वास है कि हम सही दिशा में जा रहे हैं। मैंने आज विभिन्न समूहों और पैनल विचार-विमर्श में आज सुना है,मैंने पाया कि हमें पेंशन पोर्टेबिलिटी,भूमि अधिग्रहण और विकास, अनुसंधान का पोषण आदि जैसे मामलों को अभी सुलझाना है। जब हम इनपर कार्य करेंगे तो हमारी दृष्टि निम्न तथा स्पष्ट रूप से अंकित होनी चाहिएः

संकाय

(क) संकाय में कमी ने लंबे समय तक हमारे संस्थानों को त्रस्त रखा है। आपके द्वारा दिए गए आंकड़ों के समेकन से मैंने यह नोट किया कि रिक्ति स्तर सीमांतिक रूप से2014 में 39 प्रतिशत से2016 में 36 प्रतिशत तक कम हुआ है परंतु केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए हम70 प्रतिशत रिक्तियों की भर पाए हैं जो कि एक बहुत बढि़या निष्पादन है। हमें दीर्घावधिक आधार पर इस समस्या को निपटाने के लिए नवोन्वेषी तंत्र की आवश्यकता है। मैं मानव संधान मंत्रालय को पिछले वर्ष ग्लोबल इनिशिएटिव और एकेडमिक वर्क्स (ज्ञान) लॉंच करने के लिए बधाई देता हूं जिसके अंतर्गत लगभग 800 विदेशों से विशेषज्ञों ने भारतीय संस्थानों में पढ़ाने के लिए अपनी रुचि दिखाई है। इस कार्यक्रम को और आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि अगामी एक दो वर्षों में800 नहीं बल्कि 8000विदेशी विशेषज्ञ इस पहल में पंजीकृत हो सकें। अधिकांश हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापनों में मैंने देखा कि महत्वपूर्ण घटक‘संकाय का आदान प्रदान’है। इन समझौता ज्ञापनों का प्रभावी कार्यान्वयन विदेशी संकाय के अतिरिक्त कॉरपोरेट क्षेत्र से सहायक संकाय उपलब्ध करएगा। इस खुली हवा से उच्च शिक्षा प्रणाली पुनर्जीवित हो गई।

अनुसंधान

(ख) हमारा सर्वाधिक ध्यान गुणवत्ता अनुसंधान पर होना चाहिए। प्रधानमंत्री की फैलोशिप की फॉर डॉक्टरल रिसर्च जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और सीआईआई का सामूहिक प्रयास है और पूर्णकालीन पीएचडी विद्वानों का समर्थन करता है एक अच्छी पहल है। यह हमारे देश में उच्च स्तरीय अनुसंधान को आगे बढ़ने में सहायता करेगी। हमें हमारे संस्थानों में अनुसंधान को इसकी प्रासंगिकता के आधार पर प्राथमिकता देनी चाहिए। राष्ट्रीय महत्व के इन संस्थानों में गुणवत्ता अनुसंधान द्वारा समाज के तत्काल आवश्यकता पूरी करने में इंप्रिंट इंडिया की आरंभिक आईआईटी-आईआईएससी पहल की बहुत बड़ी भूमिका है। मैं दोहराता हूं मैं मुक्त कला संस्थानों के शैक्षिक प्रमुखों और मानवता का इसी प्रकार के पहल आरंभ करने के लिए आह्वान करता हूं।

नवोन्वेष

(ग) जैसा कि मैंने कहा है कि नवोन्वेष भविष्य की निधि है। हमारे द्वारा वर्ष2015 में आरंभ किए गए साप्ताहिक नवोन्वेष उत्सव अब जमीनी नवोन्वेषकों से आईटी व्यवसायिकों तक नवोन्वेषी मस्तिष्कों का बहुत बड़ा समागम हो गया है। समावेशी नवोन्वेष और नवोन्वेष के वित्त पोषण पर गोलमेज विमर्श जमीनी नवोन्वेषों,उद्यमियों और वित्तपोषकों के लिए एक मंच प्रदान करते हैं। नवोन्वेष मूल्यश्रृंखला में ये इन निकायों के बीच संपर्क में एक आकार ले लिया है। अटल इन्नोवेशन मिशन की शुरुआत इस विचार को आगे ले जाएगी और शैक्षिकों,उद्यमियों और अनुसंधानकर्ताओं के लिए एक फर्म प्रदान करेगी। यह नवोन्वेष की संस्कृति तैयार करेगी और विश्व स्तरीय नवोन्वेष हब के नेटवर्क को बढ़ावा देगी। उन्नत भारत अभियान एक अन्य क्षेत्र है जो उच्च शिक्षा क्षेत्रों का ध्यान आकर्षित करता है। यह पहल संस्थानों में स्थानीय समुदायों से ग्रामीण भारत के विकासात्मक चुनौतियों का समाना करने के लिए उत्कृष्ट तरीके से जोड़ता है। यह जनता/छात्रों के बीच एक समस्या समाधान दृष्टिकोण का भी विकास करता है। हमारे स्मार्ट ग्राम अनुभव से कुछेक उदाहरण हो सकते हैं। में होता है। नर्तक कलाकार द्वारा अभिनय नृत्य, नृत्य,ताल और सुर सभी एक साथ सम स्वर में वादित होते हैं जो दर्शकों को एकाग्र करता है।

7.मुझे सूचित किया गया है कि कथक में निर्देश देने के अतिरिक्त कथक केंद्र तबला और पकवाज में डिप्लोमा भी प्रदान करता है।

8.स्वामी विवेकानंद जो आज उद्धाटन किए गए इस सुंदर ऑडिटोरियम के नाम को सुसज्जित करता है,एक अच्छे गायक ही नहीं थे बल्कि एक अपवाद वादक भी थे। हम स्वामी जी के गहन आध्यत्मिक प्रोग्रेस,उनके एकल पांडित्य, वाक्पटुआ और आकर्षण के कार्य में बहुत अधिक बोलते हैं परंतु उनके द्वारा सबसे पहले लिखी गई पुस्तक संगीत पर थी। उन्हें हिंदुस्तान में शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षण दिया गया और यह कहा जाता है कि अपने जीवन के दूसरे भाग में उषाकाल में वे अपने तानपुरा की धुन बजाते थे और बेलुरमठ के आश्रम के अन्य निवासियों को जगाने के लिए राग हित भैरव में तानसेन द्वारा रचित ध्रुपद गाया करते थे।

9.भारत की इस महान कलात्मक विरासत को आगे ले जाते और मजबूत करते हुए संगीत नाटक अकादमी और कथक केंद्र में उदाहरणीय कार्य किया है। मैं उन्हें उनके परिश्रम में निरंतर सफलता की कामना करता हूं और समझता हूं कि वे इससे भी बड़ी पहुंच के एिल संघर्ष करेंगे। मैं इस सभागार को सभी कथक के गुरुओं,छात्रों और शिष्यों को समर्पित करता हूं और उम्मीद करता हूं कि स्वामी विवेकानंद उन्हें उत्कृष्ट दूरदर्शिता से सदैव आर्शीवाद देंगे। मैं उम्मीद करता हूं कि सघन और पूर्ण रूप से यंत्र सुसज्जित सभागार इच्छुक और विवेकी दर्शकों के साथ कथक नृत्य को प्रोत्साहित करेगा।


जय हिन्द।

धन्यवाद।