इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के दीक्षांत समरोह के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का अभिभाषण

देहरादून : 05-05-2017

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speech2015-17 के बैच के भारतीय वन सेवा अधिकारियों के दीक्षांत समारोह के अवसर पर, आपके बीच उपस्थित होना वास्तव में अत्यंत प्रसन्नतादायक है। दीक्षांत समारोह निःसंदेह आपके जीवन का एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि आप औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करके राष्ट्र की सेवा के लिए अपनी मातृ संस्था के बाहर कदम रखेंगे। यह आपके अध्यापक, अभिभावकों और मित्रों के लिए भी एक ऐतिहासिक घटना है। 1951 के अखिल भारतीय सेवा अधिनियम के अंतर्गत गठित भारतीय वन सेवा का विशिष्ट दायित्व न केवल भारत की विशाल जैव-विविधता बल्कि विविध संस्कृति, परंपराओं और इस जैव-विविधता के साथ जुड़ी हुई आजीविकाओं का भी पर्यवेक्षण और देखरेख करने का विशिष्ट दायित्व भी है।

2.मुझे विश्वास है कि इस ग्रीन दून वैली में स्थापित, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी में अधिकारियों को पर्याप्त कौशल और प्रशिक्षण प्रदान किया गया होगा और देश सेवा और मानवता की पूर्व सेवा के लिए भी तैयार किया होगा। वास्तव में, सच्चाई यह है कि अकादमी वानिकी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा का एक प्रतिष्ठित संस्थान है जो अपनी मूल क्षमता को प्रमाणित करने में सफल रहा है।

देवियो और सज्जनो,

3.वनस्पति, जीव और वन्य जीवन की अत्यधिक जैव-विविधता के कारण भारत को पृथ्वी पर स्वर्ग सही कहा गया है। हमारे वन जल, स्वच्छ ऑक्सीजन और अनेक औषधीय पौधे प्रदान करते हैं जबकि हमारा वन्य जीवन इस अत्यंत आवश्यक खाद्य शृंखला को कायम रखता है जो कि पारिस्थितिकी के रख-रखाव के लिए बहुत जरूरी है।

मित्रो,

4.हमारी पारिस्थितिकी और जैव-विविधता की निरंतरता और रख-रखाव को युगों से महत्व दिया गया है। अथर्ववेद में उल्लेख किया गया है कि ‘हमारी भूमि इतनी ऊर्वर होनी चाहिए कि इससे शीघ्र प्राप्त उपज हो जाए और इसे हमारे किसी भी गतिविधि से कोई नुकसान न हो।’ वन प्रबंधन भारतीय संस्कृति और परंपराओं में एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह विचार चंद्रगुप्त मौर्य के काल से भी पुराना है। यदि यह उन दिनों प्रासंगिक था तो यह आज भी प्रासंगिक है जबकि विश्व सतत विकास की चुनौतियों का सामना कर रहा है।

5.यद्यपि आरंभिक औपनिवेशिक काल के दौरान मनमाने अवनीकरण तथा धन की निकासी के बड़े खेल में वन संसाधनों का दोहन हुआ। औपनिवेशिक मालिकों के एक बार यह महसूस करने पर कि ऐसे संसाधनों का विदोहन हमेशा के लिए नहीं चल सकता है, उन्होंने 1864 में वैज्ञानिक वन प्रबंधन के लिए इंपीरियल वन विभाग स्थापित किया गया। शुरू में, इंपीरियल वन विभाग के अधिकारियों को दो वर्ष के प्रशिक्षण के लिए फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन भेजा गया, लेकिन 1926 में देहरादून में इंपीरियल वन अनुसंधान संस्थान की स्थापना की गई।

देवियो और सज्जनो और आज उत्तीर्ण अधिकारियो,

6.मैं असाधारण विरासत, जिसमें आप शामिल होंगे, पर बल देने के लिए, आपका ध्यान आधुनिक भारतीय वानिकी के 100 वर्ष से ज्यादा पुराने इतिहास की ओर आकृष्ट करना चाहूंगा। अब आप एक महान परंपरा के अंग हैं और आपको इसके मानदंडों पर खरा उतरना होगा।

मित्रो,

7.आज भारत में 79.4 मिलियन हेक्टर का वन निर्धारित क्षेत्र है। यह देश का लगभग 19.32 प्रतिशत है। वर्ष 1952 की वन नीति में, देश की कुल भूमि का एक तिहाई वन क्षेत्र के रूप में बनाए रखना आवश्यक है। इससे लगभग 15 प्रतिशत के अंतर का स्पष्ट रूप से पता चलता है जिसे समाप्त करना होगा। वास्तव में, 1986 में भारतीय वन सेवा की स्थापना के अप्रत्यक्ष में एक लक्ष्य 33 प्रतिशत वन क्षेत्र के लक्ष्य को प्राप्त करना था और यही समय है, जब इस दिशा में ठोस उपाय किए जाएं।

8.जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, भारतीय वन सेवा पर न केवल देश के वन क्षेत्र का दायित्व है बल्कि वन क्षेत्र की वृद्धि और जैव-विविधता के संरक्षण और वन आधारित आजीविका के प्रोत्साहन के अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन पर ध्यान देने की एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। वास्तव में, यह संतोष का विषय है कि भारतीय वन सेवा अधिकारियों के परिश्रम के साथ-साथ ई-निगरानी और भौगोलिक सूचना प्रणाली अनुप्रयोग जैसी प्रौद्योगिकियों की सहायता से देश का वन क्षेत्र, वर्तमान रिपोर्टों के अनुसार 1987 के 64.2 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 79.4 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। यह अपने आप में एक शानदार उपलब्धि है परंतु अभी भी बहुत कार्य करना शेष है।

मित्रो,

9.इस कार्य को करने का दायित्व अब आपके हाथ में है और इस समय मैं आपके कार्य के चार पहलुओं की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा, जिनका समग्र राष्ट्रीय जीवन और मानवता के लिए अत्यधिक महत्व हैः

(i) आपका पहला कर्तव्य वन की रक्षा करना, इसकी उत्पादकता बढ़ाना और वैज्ञानिक प्रयासों के माध्यम से वनों द्वारा स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं में सहयोग होना चाहिए। जैसा कि हम सभी को विदित है जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख विश्व मुद्दा बन गया है। इससे निपटने में गरीबों की सीमित क्षमता के कारण, उन पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। वनों को स्थानीय लोगों को पूरक आय प्रदान करने के अलावा, स्थानीय जलवायु प्रभाव को कम करने, लोगों को प्राकृतिक विपदाओं से बचाने के लिए जाना जाता है इसलिए आपका कार्य जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के इन प्रभावी साधनों का संरक्षण होना चाहिए।

(ii) इस पर ध्यान देने के लिए, जिस दूसरे पहलू की आपको आवश्यकता है, वह आपकी यूनिट के उपलब्धता तंत्र की कुशलता बढ़ाना है। कुशलता और प्रमाणिकता आपके दायित्व के निर्वहन के आधार स्तंभ होने चाहिए। जब लोग आपके पास समस्या लेकर आएं तो आपको पेशेवर तरीके से उनके मुद्दों को सुलझाने का भरसक प्रयास करना चाहिए। आपके समक्ष रखी गई फाइलें खाली कागजों का बंडल नहीं है बल्कि उनमें लोगों की आकांक्षाएं, किसी का सपना और किसी की आजीविका जुड़ी है। मानवीयता और कुशलता से युक्त प्रशासन आपके जैसी अखिल भारतीय सेवा की पहचान होनी चाहिए।

(iii) तीसरा, आपको निष्पादन सुधारने के लिए अपनी और अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की क्षमता को बढ़ाने का निरंतर प्रयास करने चाहिए। उपयुक्त प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा सुधार की गुंजाइश ढूंढने के लिए ऐसा आपके तकनीकी कौशल के उन्नयन और आपके अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा पालन की गई निर्धारित प्रक्रियाओं के सुधार द्वारा संभव हो पाएगा। मुझे विश्वास है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी में आपके प्रशिक्षण से आपको विभिन्न क्षेत्रीय संयोजनों को समझने का पर्याप्त अनुभव प्राप्त हुआ होगा ताकि सेवाएं प्रदान करने में सहयोग प्राप्त करने की युक्तियां तैयार की जा सकें।

(iv) एक और महत्वपूर्ण बात। आपको विकास बनाम संरक्षण की परिचर्चा में कुशल समाधान उपलब्ध करवाने होंगे। इस परिचर्चा में जो पहली बात हमें समझनी है, वह यह है कि विकास और संरक्षण विरोधाभाषी दिखते हैं परंतु परस्पर विरोधी नहीं हैं। इनका दृढ़ संबंध हो सकता है। लोग अकसर पर्यावरण अथवा विकास का पक्ष लेते हैं। तथापि इन दोनों को विरोधी नहीं पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए। इस मुद्दे का समाधान समावेशी विकास है जो विकासात्मक सूची के पर्यावरणीय पहलू के लिए महत्वपूर्ण है।

10.मुझे विश्वास है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी में प्रशिक्षण से आप इन सभी पहलुओं से प्रभावी रूप से निपटने के लिए तैयार हो जाएंगे लेकिन आपको महात्मा गांधी के इस मंत्र ‘धरती व्यक्ति के लालच को नहीं बल्कि आवश्यकता को पूरा करती है’ द्वारा कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान अपने प्रत्येक निर्णय के दौरान शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। हमें धरती मां के उन संसाधनों को नष्ट करने का कोई अधिकार नहीं है जो हमें विरासत में मिले हैं।

देवियो और सज्जनो,

11.मैं एक बार पुनः आज आपके प्रशिक्षण कार्यक्रम की सफल पूर्णता के लिए बधाई देता हूं। मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं। अपने निर्णयों में सदैव न्यायपूर्ण, सही और ईमानदार बनें।

12.अंत में, युवा अधिकारियो, मैं आपके प्रयासों के सफल होने की कामना करता हूं।

धन्यवाद, 
जय हिन्द।