भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का गज उत्सव-2023 समारोह में सम्बोधन (HINDI)
काजीरंगा-असम : 07.04.2023
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गज-उत्सव का उद्घाटन करके मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है। भारत सरकार द्वारा प्रायोजित ‘Project Elephant’ के 30 वर्ष सम्पन्न हो गए हैं। उस महत्वपूर्ण project से जुड़े इस उत्सव के आयोजन के लिए केंद्र सरकार के ‘पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ तथा असम सरकार के ‘वन विभाग’ के सभी कर्मचारियों और अधिकारियों की मैं सराहना करती हूं।
हाथियों की सुरक्षा करना, उनके natural habitats का संरक्षण करना तथा elephant corridors को बाधा-रहित बनाए रखना ‘Project Elephant’ के प्रमुख उद्देश्य हैं। साथ ही, ‘Human-Elephant Conflict’ से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य भी है और चुनौती भी। ये सभी उद्देश्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। Captive elephants के हित में कार्य करना भी ‘Project Elephant’ का उद्देश्य है।
‘Human-Elephant Conflict’ सदियों से एक मुद्दा बना रहा है। प्राचीन संस्कृत कवि त्रिपुरारि-पाल ने लिखा था कि ‘हाथी को बंधन में डालकर मनुष्य को अपनी बुद्धिमत्ता पर गर्व नहीं करना चाहिए। यह तो हाथी का शांत और विनयशील स्वभाव है जिसके कारण वह बंधन को स्वीकार कर रहा है। यदि क्रोध में आकर वह अपने विनय को छोड़ दे तो वह सब कुछ तहस-नहस कर सकता है’।
यदि गहराई से विचार किया जाए तो यह स्पष्ट होता है कि जो कार्य प्रकृति तथा पशु-पक्षियों के हित में है, वह मानवता के हित में भी है और धरती-माता के हित में भी है। जो जंगल और हरे-भरे क्षेत्र Elephant Reserves हैं, वे सभी, बहुत प्रभावी Carbon Sinks भी हैं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि हाथियों के संरक्षण से सभी देशवासी लाभान्वित होंगे तथा यह ‘Climate Change’ की चुनौती का सामना करने में भी सहायक सिद्ध होगा। ऐसे प्रयासों में सरकार के साथ-साथ समाज की भागीदारी भी ज़रूरी है।
देवियो और सज्जनो,
प्रकृति और मानवता के बीच एक बहुत पवित्र रिश्ता होता है। इस रिश्ते की पवित्रता ग्रामीण और आदिवासी समाज में अभी भी दिखाई देती है। Academy Award से पुरस्कृत documentary film, ‘The Elephant Whisperers’ में इसी पवित्र रिश्ते को समझाते हुए यह दिखाया गया है कि काट्टु-नायक समुदाय के लोग जब जंगल में जाते हैं तब वे अपने पैरों में कुछ नहीं पहनते हैं। सामान्य रूप से लोग अपने जूते-चप्पल उतारकर ही पवित्र स्थानों में प्रवेश करते हैं।
प्रकृति का सम्मान करने की यह संस्कृति हमारे देश की पहचान रही है। भारत में प्रकृति और संस्कृति एक दूसरे से जुड़े रहे हैं और एक दूसरे से पोषण प्राप्त करते रहे हैं।
हमारी परंपरा में हाथी या गजराज सबसे अधिक सम्मानित रहे हैं। पूजा-अर्चना में, ‘गजानन’ अर्थात हाथी की मुखाकृति वाले, श्री गणेश जी का पूजन सबसे पहले किया जाता है। देवताओं के राजा इंद्र की सवारी, गजराज ऐरावत का प्रभावशाली वर्णन प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। भारत की शास्त्रीय नृत्य-विधाओं में ‘गजलीला-गति’, यानी प्रसन्न होकर आगे बढ़ते हुए हाथी की चाल की कलात्मक प्रस्तुति की जाती है। हाथी को हमारे देश में समृद्धि का प्रतीक भी माना गया है। हमारे देश की परंपरा के संदर्भ में यह सर्वथा उचित है कि इस भव्य गजराज को भारत के ‘National Heritage Animal’ का स्थान दिया गया है। हाथी की रक्षा करना हमारे national heritage की रक्षा करने के राष्ट्रीय उत्तरदायित्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हाथी को बहुत बुद्धिमान और संवेदनशील माना जाता है। हाथी भी मनुष्यों की तरह एक सामाजिक प्राणी है। वह परिवार के साथ और समूह में रहना पसंद करता है। यदि समूह के एक हाथी पर कोई संकट आता है तो सभी हाथी इकट्ठा हो जाते हैं और उसकी सहायता करते हैं। यदि कुछ अनहोनी हो जाती है तो सभी एक साथ दुख की अभिव्यक्ति करते हैं। यह बातें मैं इसलिए कह रही हूं कि हाथी तथा अन्य जीवधारियों के लिए हम सबको उसी तरह संवेदना और सम्मान का भाव रखना चाहिए जैसे हम मानव-समाज के लिए रखते हैं। मैं तो यह भी कहना चाहूंगी कि निस्वार्थ प्रेम का भाव पशु-पक्षियों में अधिक होता है। उनसे मानव-समाज को सीखना चाहिए।
वन विभाग के अधिकारियों तथा इस क्षेत्र से जुड़े अन्य सभी संस्थानों का यह प्रयास होना चाहिए कि यदि कोई हाथी अपने समूह से बिछड़ जाए और जंगल से बाहर आ जाए तो उसे हर संभव प्रयास करके उसके परिवार और समूह से वापस मिला दें, जैसे मेले में भूले-भटके बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाया जाता है। यदि किसी कारण से उन्हें वापस उनके परिवार से न मिलाया जा सके तो उन्हें बहुत प्यार से रखना चाहिए।
मैं जिस परिवेश में पली-बढ़ी हूं, वहां प्रकृति और पशु-पक्षियों के प्रति सम्मान का भाव मैंने देखा है। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में रहने वाले हाथी भी मेरे जन्म-स्थान के क्षेत्र से गुजरते रहते हैं। सभी बच्चों को हाथी बहुत प्यारे लगते हैं। मुझे भी बचपन से ही, हाथियों से लगाव रहा है। वे अकारण किसी भी तरह का नुकसान नहीं करते हैं। जब Human-elephant conflict का विश्लेषण होता है तो यही पता चलता है कि हाथियों के प्राकृतिक आवास या आवागमन में अवरोध पैदा किया गया है। अतः इस conflict की ज़िम्मेदारी मानव-समाज पर ही आती है। इसलिए मानव समाज को हमेशा संवेदनशील और सचेत रहना चाहिए तथा उनसे प्यार से व्यवहार करना चाहिए।
देवियो और सज्जनो,
हमारी आध्यात्मिक परंपरा में भी, मानवता, प्रकृति और पशु-पक्षियों के एकात्म होने पर ज़ोर दिया गया है। समस्त प्रकृति से तथा जीव-जगत से प्रेम करने का यही भारतीय आदर्श ‘The Elephant Whisperers’ नामक फ़िल्म में दिखाया गया है।
उस फ़िल्म में हाथियों के अनाथ बच्चों, रघु और अम्मू को, बेल्ली और बोम्मन वैसे ही प्यार करते हैं और उनकी देखभाल करते हैं जैसे माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश करते हैं। ऐसे बहुत से ग्रामीण, आदिवासी और महावत परिवारों के लोग हाथियों को प्यार करते हैं, उनकी देखभाल करते हैं। बेल्ली और बोम्मन की तरह उनकी कहानी भी सबके सामने आनी चाहिए। बेल्ली और बोम्मन जैसे, प्रेम का आदर्श प्रस्तुत करने वाले अपने देशवासियों पर मुझे गर्व है और मैं उन सबके प्रति हृदय से सम्मान व्यक्त करती हूं।
देवियो और सज्जनो,
असम के ‘काज़ीरंगा नेशनल पार्क’ और ‘मानस नेशनल पार्क’ केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की अनमोल विरासत हैं। इसीलिए इन दोनों विशाल तथा सुंदर उद्यानों को UNESCO द्वारा ‘World Heritage Site’ का दर्जा दिया गया है। मुझे बताया गया है कि जंगली हाथियों की कुल संख्या की दृष्टि से असम का देश में दूसरा स्थान है। यहां मानव-समाज की देख-रेख में रहने वाले हाथियों की संख्या भी बहुत बड़ी है। इसलिए, गज-उत्सव के आयोजन हेतु असम का यह काजीरंगा उद्यान बहुत ही उपयुक्त स्थल है। Project Elephant तथा गज-उत्सव के उद्देश्यों में सफलता के लिए सभी stakeholders को मिलकर आगे बढ़ना होगा। स्कूल के बच्चों में प्रकृति तथा जीव-जंतुओं के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता का प्रसार करना बहुत महत्वपूर्ण है।
हमारे सभी परंपरागत पर्व प्रकृति के लय के साथ जुड़े होते हैं। असम का रोंगाली बिहू भी प्रकृति के उल्लास को व्यक्त करता है। मैं असम के सभी भाइयों और बहनों को रोंगाली बिहू की अग्रिम बधाई देती हूं। मैं गज-उत्सव तथा Project Elephant की सफलता के लिए अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करती हूं। हमारा देश प्रकृति और जीव-जंतुओं के संरक्षण के आदर्श प्रस्तुत करेगा, इस विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!