भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संगीत नाटक अकादमी के 'अकादमी रत्न'और 'अकादमी पुरस्कार'प्रदान करने के अवसर पर सम्बोधन (HINDI)

नई दिल्ली : 23.02.2023

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मुझे यहां उपस्थित आप सभी उत्कृष्ट कलाकारों के बीच आकर बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। मैं ‘अकादमी रत्न’ और ‘अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किए गए सभी कलाकारों और कलाविदों को बहुत-बहुत बधाई देती हूं। मुझे बताया गया है कि यह पुरस्कार performing arts के क्षेत्र में सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान है। अतः इस उपलब्धि के लिए मैं सभी पुरस्कार विजेताओं को विशेष बधाई देती हूं।

मुझे ज्ञात हुआ है कि इन पुरस्कारों द्वारा पूरे देश की विभिन्न कला विधाओं को मान्यता दी जाती है। कलाकारों के साथ-साथ कला-मर्मज्ञ विद्वानों को भी पुरस्कृत किया जाता है। इससे भारतीय कलाओं से जुड़ी ज्ञान-परंपरा में वृद्धि होती है।

‘संगीत नाटक अकादमी’ पिछले सात दशकों से, विभिन्न भारतीय कला- विधाओं - संगीत, नृत्य, लोक-नाट्य तथा रंगमंच को प्रोत्साहित कर रही है। इन विधाओं के व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार हेतु भी अकादमी द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। अकादमी ने युवा पीढ़ी को कलाओं से जोड़ने के प्रयास भी शुरू किए हैं। अकादमी द्वारा ‘अमृत युवा कलोत्सव’ के आयोजन की मैं सराहना करती हूं।

देवियो और सज्जनो,

सभ्यता द्वारा हमारी भौतिक उपलब्धियां सामने आती हैं, लेकिन संस्कृति द्वारा हमारी अमूर्त विरासत की धाराएं प्रवाहित होती हैं। संस्कृति द्वारा ही किसी देश की वास्तविक पहचान होती है। भारत के अद्वितीय performing arts ने, हमारी अतुल्य संस्कृति को सदियों से जीवंत बनाए रखा है। हमारी कलाएं और कलाकार, हमारी समृद्ध संस्कृति के संवाहक हैं। ‘विविधता में एकता’ भारत की संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है। असम के बिहू नृत्य से लेकर केरल के कथकलि तक, पूर्व में छऊ से लेकर पश्चिम में गरबा तक, नृत्य विधाओं में हमारी संस्कृति की इंद्रधनुषी छटा दिखाई देती है। यही विशेषता अन्य कला विधाओं के विषय में भी उतनी ही सार्थक है।

सभी देशवासियों को इस तथ्य पर गर्व होना चाहिए कि हमारे देश में कला की सबसे प्राचीन और सबसे श्रेष्ठ परिभाषाएं और परम्पराएं विकसित हुई हैं। भरत मुनि और आचार्य अभिनव गुप्त जैसी विभूतियों ने प्राचीन काल में ही कला तथा साहित्य के स्वरूप और उद्देश्य के विषय में जो विचार व्यक्त किए वे सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। आधुनिक युग में हमारे सांस्कृतिक मूल्य और अधिक उपयोगी हो गए है। आज के तनाव तथा संघर्ष से भरे युग में, भारतीय कलाओं द्वारा मानसिक शांति और सौहार्द का प्रसार किया जा सकता है। भारतीय कलाएं भारत की soft-power का भी सर्वोत्तम उदाहरण हैं।

जिस तरह हवा और पानी जैसे प्राकृतिक उपहार मानवीय सीमाओं को नहीं मानते, उसी तरह संगीत-नाटक जैसी कला विधाएँ भी भाषा तथा भौगौलिक सीमाओं से ऊपर होती हैं। भारत रत्न से सम्मानित एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी, पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, लता मंगेशकर, पंडित भीमसेन जोशी और भूपेन हजारिका के संगीत की शक्ति किसी भाषा या भूगोल से बाधित नहीं होती थी। उन्होंने अपने अमर संगीत से भारत ही नहीं, पूरे विश्व के संगीत प्रेमियों के लिए अमूल्य विरासत छोड़ी है। लगभग 450 वर्ष पहले अपने संगीत की अमृत धारा प्रवाहित करने वाले संगीत सम्राट तानसेन के संगीत के चमत्कार से जुड़ी कहानियां भारत के जनमानस में आज भी प्रचलित हैं। ऐसी कला-विभूतियां हमारी संस्कृति की महानता के सर्वोत्तम प्रतीक हैं।

भारतीय परंपरा में कला को ईश्वर का वरदान माना गया है। लास्य और तांडव नृत्य करने वाले भगवान शिव, वीणा-वादिनी देवी सरस्वती तथा मुरली-धर श्री कृष्ण भारत के जनमानस में कला के दैवी प्रतीक हैं। इसी तरह, महान संत परम्पराओं में भी भक्ति और संगीत का संगम होता रहा है।

हमारी परंपरा में कला एक साधना है, एक संजीवनी है, सत्य की खोज का माध्यम है। कला द्वारा उपासना, अर्चना और स्तुति की जाती है। लोक कल्याणकारी भावनाओं का प्रसार किया जाता है। जो सुंदर है उसकी प्रतिष्ठा की जाती है। प्रकृति का सम्मान किया जाता है। नई फसल का स्वागत किया जाता है। शास्त्रीय विधाओं के साथ-साथ, लोक तथा जनजातीय कलाओं के मूलभूत आदर्श एक जैसे ही रहे हैं। सामूहिक उल्लास और एकता को भी हमारे नृत्य और संगीत द्वारा अभिव्यक्ति मिलती है। मैं देखती हूँ कि हमारी भाषाओं की विविधता और क्षेत्रों की विशेषताओं को हमारी कलाएं एक सूत्र में जोड़ती हैं।

देवियो और सज्जनो,

कुछ दिन पहले, महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर तमिलनाडु में, पूजा-अर्चना के माध्यम के रूप में संगीत और नृत्य की सुन्दर प्रस्तुति मुझे देखने को मिली। देश-विदेश के लोग बड़ी संख्या में अध्यात्म और कला के रस में एक साथ डूबे हुए थे। भगवान शिव को संगीत और नृत्य का स्रोत क्यों कहा जाता है, इसका भी अनुभव मुझे हुआ। पिछले सोमवार को अरुणाचल प्रदेश में विभिन्न जनजातियों की नृत्य कलाओं को देखते हुए मैं स्वयं उन बहनों के साथ नृत्य में शामिल हो गयी। अनेक अवसरों पर विभिन्न राज्यों में मैंने अपनी बहनों के साथ लोक-नृत्य में शामिल होने के आनंद का अनुभव किया है। ऐसे अवसरों पर एक विशेष ऊर्जा और स्नेह के भाव का संचार होता है। मैं अपने देश की अद्भुत कलाओं को नमन करती हूं।

देवियो और सज्जनो,

आज सम्मानित कलाकारों को, मैं एक बार फिर बहुत-बहुत बधाई देती हूं। मुझे विश्वास है कि आप सब, विभिन्न कला-परम्पराओं को आगे बढ़ाएंगे तथा आने वाली पीढ़ियों को भी इन कलाओं के साथ जोड़ेंगे। आप सब के और हमारे देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी अनेक शुभकामनाएं!

धन्यवाद, 
जय हिन्द! 
जय भारत!

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