भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्बोधन

विज्ञान भवन : 05.09.2022

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भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का शिक्षक दिवस के अवसर पर सम्बोधन

सबसे पहले मैं सभी देशवासियों की ओर से अपने देश के शिक्षक-समुदाय को नमन करती हूं। आज पुरस्कार पाने वाले सभी शिक्षकों को मैं हार्दिक बधाई देती हूं। यह देखकर मुझे प्रसन्नता हुई है कि आज पुरस्कृत 45 शिक्षक-गण भारत के कोने-कोने से आए हैं। उनमें 1 दिव्यांग शिक्षक तथा 18 महिला शिक्षकों को पुरस्कृत करके मुझे विशेष प्रसन्नता हुई है। इस समारोह के प्रभावी आयोजन तथा शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे अनेक प्रयासों के लिए मैं श्री धर्मेंद्र प्रधान जी तथा शिक्षा मंत्रालय की पूरी टीम की प्रशंसा करती हूं।

प्रिय शिक्षक-गण,

शिक्षक दिवस के इस अवसर पर मैं अपने उन शिक्षकों का सादर स्मरण करती हूं जिन्होंने मुझे न सिर्फ पढ़ाया बल्कि प्यार भी दिया और संघर्ष करने की प्रेरणा भी दी। अपने परिवार व शिक्षकों के मार्ग दर्शन के बल पर मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली बेटी बनी। अपनी जीवन-यात्रा में मैं जहां तक पहुंच सकी हूं उसके लिए अपने उन शिक्षकों के प्रति मैं सदैव कृतज्ञता का अनुभव करती हूं।

हमारी संस्कृति में शिक्षक पूजनीय माने जाते हैं। मैं भी यह मानती हूं कि एक निष्ठावान शिक्षक को अपने जीवन में जिस तरह की सार्थकता का अनुभव होता है उसकी तुलना नहीं की जा सकती है। शायद इसीलिए जब भारत के दूसरे राष्ट्रपति, डॉक्टर राधाकृष्णन के प्रशंसकों ने उनका जन्मदिन मनाने का प्रस्ताव रखा तो उस विश्व-प्रसिद्ध दार्शनिक, लेखक एवं स्टेट्समैन ने यह इच्छा जाहिर की कि उनका जन्मदिन ‘शिक्षक-दिवस’ के रूप में मनाया जाए। वे शिक्षक भी रह चुके थे और अपने शिक्षक रूप को ही उन्होंने सबसे अधिक महत्व देना चाहा।

भारत के एक अन्य महान पूर्व राष्ट्रपति, डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से एक समारोह में पूछा गया कि वे एक वैज्ञानिक के रूप में याद किए जाएंगे अथवा एक राष्ट्रपति के रूप में। कलाम साहब ने जवाब दिया कि वे चाहेंगे कि उन्हें एक टीचर के रूप में याद किया जाए।

मैं भी अपने जीवन के उस पक्ष को सबसे अधिक महत्व देती हूं जो शिक्षा से जुड़ा हुआ है। मुझे रायरंगपुर में श्री ऑरोबिंदो इंटीग्रल स्कूल में शिक्षक के रूप में योगदान देने का अवसर मिला था। मैंने ओडिशा के पहाड़पुर में एक residential school की स्थापना की है जहां गरीब विद्यार्थियों को शिक्षा दी जाती है। वंचित वर्गों के बच्चों तथा दिव्यांग बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा सुलभ हो सके यह विशेष प्राथमिकता होनी चाहिए।

प्रिय शिक्षक-गण,

जब मैं झारखंड की राज्यपाल थी तब राज्यपाल होने के नाते, मैं राज्य के सभी विश्व-विद्यालयों की चांसलर भी थी। लेकिन मैंने स्कूल-स्तर की शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। मैं मानती हूं कि यदि स्कूल स्तर की शिक्षा मजबूत नहीं होगी तो उच्च-शिक्षा का स्तर अच्छा नहीं हो सकता। इसलिए मैं झारखंड के स्कूलों में जाती रही। मैं राज्य के अधिकांश कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में गयी। मैं दिव्यांग विद्यार्थियों के स्कूलों में भी गयी। मेरे जाने से ऐसे स्कूलों में सुविधाएं बढ़ीं। उन स्कूलों के विद्यार्थियों और शिक्षकों का उत्साह भी बढ़ा।

प्रिय शिक्षक-गण,

आज की knowledge economy में विज्ञान, अनुसंधान और innovation विकास के आधार हैं। इन क्षेत्रों में भारत की स्थिति को और मजबूत बनाने की आधारशिला स्कूली शिक्षा द्वारा ही निर्मित होगी। मैं मानती हूं कि विज्ञान, साहित्य, अथवा सामाजिक शास्त्रों में मौलिक प्रतिभा का विकास मातृभाषा के द्वारा अधिक प्रभावी हो सकता है। हमारी माताएं ही हमारे जीवन के आरंभ में हमें जीने की कला सिखाती हैं। इसीलिए natural talent को विकसित करने में मातृभाषा सहायक होती है। माता के बाद शिक्षक-गण हमारे जीवन में हमारी शिक्षा को आगे बढ़ाते हैं। यदि शिक्षक भी मातृभाषा में पढ़ाते हैं तो विद्यार्थी सहजता के साथ अपनी प्रतिभा का विकास कर सकते हैं। इसीलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्कूली-शिक्षा तथा उच्च-शिक्षा के लिए भारतीय भाषाओं के प्रयोग पर ज़ोर दिया गया है।

विज्ञान और अनुसंधान के प्रति रुचि पैदा करना शिक्षकों की ज़िम्मेदारी है। मैं एक बार फिर कलाम साहब का उल्लेख करना चाहूंगी। विज्ञान के प्रति उनका रुझान स्कूल में ही मजबूत हो चुका था। उन्होंने कहा है कि उनके एक अध्यापक क्लास के सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए और उड़ती हुई चिड़ियों को दिखाकर ‘Aero Dynamics’ के बारे में रोचक और सरल तरीके से समझाया। डॉक्टर कलाम लिखते हैं कि उन्होंने स्कूल में ही यह फैसला किया कि वे बड़े होकर rocket scientist बनेंगे। यह बात गौर करने लायक है कि टीचर ने पहले क्लास रूम में black board पर चिड़ियों की उड़ान के विषय में समझाया था। टीचर के पूछने पर सभी बच्चों ने कहा कि वे समझ गए थे। केवल कलाम साहब ने कहा कि वे नहीं समझे थे। अंत में यह स्पष्ट हुआ कि असल में कोई भी बच्चा विषय को नहीं समझ पाया था। इसलिए जो विद्यार्थी साफ-साफ कहते हैं कि वे नहीं समझ पा रहे हैं तो उन्हें कमजोर विद्यार्थी नहीं समझना चाहिए। कलाम साहब के निष्ठावान अध्यापक ने नए सिरे से पूरे विषय को क्लास के बाहर ले जाकर सिखाया था। कलाम साहब अपने वक्तव्यों और आलेखों में उन अध्यापक का सादर उल्लेख किया करते थे। अच्छे शिक्षक प्रकृति में मौजूद जीवंत उदाहरणों की सहायता से जटिल सिद्धांतों को आसान बनाकर समझा सकते हैं। टीचर्स के बारे में एक लोकप्रिय कथन है:

The mediocre teacher tells.

The good teacher explains.

The superior teacher demonstrates.

The great teacher inspires.

अर्थात

सामान्य शिक्षक जानकारी देते हैं।

अच्छे शिक्षक समझाते हैं।

श्रेष्ठ शिक्षक करके दिखाते हैं।

महान शिक्षक प्रेरणा देते हैं।

मैं कहना चाहूंगी कि एक आदर्श शिक्षक में चारों बाते होती हैं। ऐसे आदर्श शिक्षक विद्यार्थियों के जीवन की रचना करके सही अर्थों में राष्ट्र-निर्माण करते हैं।

प्रिय शिक्षक-गण,

हमारे देश में जब वाद-विवाद-संवाद की संस्कृति को महत्व दिया जाता था तब हमारे देश में आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, चरक और सुश्रुत जैसे गणितज्ञ, वैज्ञानिक और चिकित्सक सामने आए। आधुनिक विश्व के वैज्ञानिक भी उनके ऋणी हैं। आप सभी शिक्षकों से मेरा अनुरोध है कि विद्यार्थियों में प्रश्न पूछने की तथा शंका व्यक्त करने की आदत को प्रोत्साहित करें। अधिक से अधिक प्रश्नों का उत्तर देने तथा शंकाओं का समाधान करने से आप सब के ज्ञान में भी वृद्धि होगी। एक अच्छा शिक्षक सदैव नयी शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्वयं भी उत्साहित रहता है।

प्रिय शिक्षक-गण,

केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय का एक अच्छा ध्येय-वाक्य है ‘सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा’। प्राइमरी स्कूल के स्तर पर, लगभग पूरे देश में, सभी विद्यार्थियों को शिक्षा के अवसर उपलब्ध हैं। भारत की स्कूली शिक्षा-व्यवस्था, विश्व की सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में शामिल है। 15 लाख से अधिक स्कूलों में, लगभग 97 लाख शिक्षकों द्वारा 26 करोड़ से अधिक विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की जा रही है। लेकिन स्कूल-स्तर पर असली चुनौती अच्छी शिक्षा प्रदान करने की है। वर्तमान में, प्राथमिक विद्यालय स्तर पर अनेक विद्यार्थियों को बुनियादी साक्षरता और संख्या-ज्ञान प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इसलिए, हमारी शिक्षा नीति में वर्ष 2025 तक, प्राथमिक विद्यालय स्तर पर सभी विद्यार्थियों को मूलभूत साक्षरता व संख्या-ज्ञान प्राप्त कराने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है। इस राष्ट्रीय प्रयास में देश के सभी शिक्षकों की मुख्य भूमिका होगी। शिक्षक ही हमारी शिक्षा-प्रणाली की प्राण-शक्ति हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत, भारत को knowledge super power बनाने का लक्ष्य तय किया गया है। भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत से जोड़ते हुए विद्यार्थियों को आधुनिक विश्व की चुनौतियों के लिए सक्षम बनाना है। हमारी शिक्षा नीति में समाहित यह सोच महर्षि ऑरोबिंदो के शिक्षा संबंधी विचारों के अनुरूप है। श्री ऑरोबिंदो के विचारों से प्रेरित शिक्षण संस्थानों द्वारा गहरे मानवीय मूल्यों तथा latest technology का समन्वय करके ‘holistic learning’ का प्रसार किया जाता है। भारतीय चिंतन के अनुसार उन संस्थानों में विद्यार्थियों की शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और आध्यात्मिक आधारशिला का निर्माण किया जाता है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य भी यही है।

मैं एक बार फिर, देश के सभी शिक्षकों के प्रति सम्मान व्यक्त करती हूं। आज के पुरस्कार विजेताओं को बधाई देती हूं तथा यह मंगल कामना करती हूं कि हमारे शिक्षक-गण अपने योगदान से ‘शिक्षित भारत, विकसित भारत’ का निर्माण करेंगे।

धन्यवाद,   
जय हिन्द!

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